शिक्षा के अधिकार अधिनियम की अवहेलना, बालिका शिक्षा और सुरक्षा को बताया गंभीर संकट
फर्रुखाबाद, संवाददाता: प्रदेश सरकार द्वारा चलाए जा रहे विद्यालय मर्ज (school merger plan) (विलय) योजना के विरोध में अब राजनीतिक स्वर भी मुखर होने लगे हैं। समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के वरिष्ठ नेता और विख्यात कैंसर सर्जन डॉ. नवल किशोर शाक्य (Dr. Naval Kishore Shakya) ने योजना को बच्चों के भविष्य पर सीधा हमला करार दिया है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय न केवल शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के मानकों के विरुद्ध है, बल्कि इससे ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह चरमरा सकती है।
डॉ. शाक्य ने कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत प्राथमिक विद्यालय बच्चों के लिए अधिकतम 1 किलोमीटर और उच्च प्राथमिक विद्यालय 3 किलोमीटर की परिधि में होना चाहिए। लेकिन वर्तमान मर्ज योजना इन मानकों को तोड़ती है, जिससे बच्चों को दूर-दराज के विद्यालयों में भेजा जाएगा। इसमें कई बार हाईवे पार करना या रेलवे ट्रैक के किनारे चलना जैसी स्थितियाँ बनेंगी, जो बच्चों की सुरक्षा के लिए बेहद खतरनाक होंगी।
उन्होंने विशेष चिंता बालिका शिक्षा को लेकर व्यक्त की। डॉ. शाक्य ने कहा कि ग्रामीण परिवेश में आज भी माता-पिता बेटियों को दूर स्कूल भेजने से कतराते हैं। मर्ज के बाद जब विद्यालय और दूर होंगे, तब बड़ी संख्या में बालिकाएं स्कूल जाना छोड़ देंगी, जिससे ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे राष्ट्रीय अभियान मात्र नारा बनकर रह जाएंगे।
उन्होंने कहा कि गांवों के छोटे-छोटे प्राथमिक विद्यालय केवल भवन नहीं हैं, बल्कि वे बच्चों के सामाजिक, मानसिक और नैतिक विकास का आधार हैं। इन्हें बंद करना गाँव के भविष्य से समझौता करना है। डॉ. शाक्य ने यह भी कहा कि इस निर्णय से गांवों की सांस्कृतिक पहचान भी प्रभावित होगी।
डॉ. शाक्य ने चेताया कि मर्ज योजना के बाद विद्यालयों में छात्रों की संख्या तो बढ़ेगी लेकिन शिक्षकों की संख्या में कोई वृद्धि नहीं होगी। इससे शिक्षकों पर अत्यधिक दबाव पड़ेगा और बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पाएगी। यह स्थिति ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था को गंभीर संकट में डाल सकती है।
सरकार को सुझाया विकल्प
समाजवादी नेता ने सुझाव देते हुए कहा कि यदि सरकार वास्तव में शिक्षा सुधार चाहती है, तो उसे गैर-मान्यता प्राप्त विद्यालयों को बंद करना चाहिए और परिषदीय विद्यालयों में संसाधन व योग्य शिक्षक बढ़ाने चाहिए। इससे विद्यालयों की विश्वसनीयता बढ़ेगी और छात्र संख्या भी स्वतः बढ़ेगी। डॉ. नवल किशोर शाक्य ने ग्रामीणों के विरोध को जायज ठहराते हुए कहा कि वे इस संघर्ष में उनके साथ हैं।
उन्होंने स्पष्ट कहा –
“हम विद्यालय मर्ज नहीं होने देंगे।
हम अपने बच्चों को शिक्षा, सुरक्षा और सम्मान से भरपूर भविष्य देंगे।
हम गाँव की पाठशालाओं को बचाएँगे, सँवारेंगे और नई पीढ़ी को सक्षम बनाएँगे।”
जन आंदोलन की चेतावनी
डॉ. शाक्य ने अंत में कहा कि यदि सरकार ने इस योजना को वापस नहीं लिया, तो यह जनाक्रोश एक व्यापक जन आंदोलन में परिवर्तित हो सकता है, जिसकी जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की होगी।
“विद्यालय मर्ज नहीं, शिक्षा को मजबूती चाहिए!” – यह केवल नारा नहीं, बल्कि ग्रामीणों की पीड़ा और प्रतिरोध की आवाज़ बन चुका है।