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Wednesday, June 11, 2025

आईएएस अधिकारी के रिश्वत में पकड़े जाने पर उठे सवाल

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अशोक मधुप

(वरिष्ठ पत्रकार)

उडीसा के कलाहांडी जिले के धरमगढ़ में 2021 बैच के आईएएस अधिकारी डिप्‍टी कलेक्टर धीमन चकमा को ओडिशा विजिलेंस ने 10 लाख रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा ।उनके निवास से 47 लाख रूपये अतिरिक्त बरामद हुए। विजीलेंस की जांच जारी है। मात्र चार साल के शुरूआती कैरियर में रिश्वत लेते पकड़े जाना, यह बताने के लिए काफी है कि आज भारतीय समाज के भ्रष्टाचार की जड़ कितनी गहराई तक पहुंच गई हैं।

व्यवस्था की सभी खंबे आज बेईमानी की जद में हैं।हम अधिकारी ,राजनेता और व्यवस्था के भ्रष्टाचार के खिलाफ तो खूब बोलते और लिखते है, किंतु न्यायपालिका के कदाचार पर चुप्पी साध जाते हैं, जबकि वहां भी हालत सब जगह जैसी ही है। दिल्ली उच्च न्यायालय के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर नई दिल्ली स्थित 30, तुगलक क्रीसेंट स्थित सरकारी आवास के बाहरी हिस्से में 14 मार्च की रात आग लग गई।इसमें बड़ी तादाद में नोट जले।

जस्टिस वर्मा को दिल्ली से इलाहाबाद उच्च न्यायालय भेज दिया गया,किंतु लगभग तीन माह बीत जाने के बाद भी उनके खिलाफ कोई आरोप दर्ज नही हुआ।यदि यह ऐसा मामला किसी मंत्री, राजनेता या प्रशासनिक अधिकारी का होता तो उसके खिलाफ मुकदमा ही दर्ज नहीं होता, जेल भी जाना पड़ता।न्यायिक अधिकारी अपने को मिले विशेष अधिकार के बूते मामले दबा रहे हैं।राज्य सभा अध्यक्ष जगदीप जाखड़ भी इस पर तीखी टिप्पणी कर चुके हैं।

रिश्‍वत के आरोपी अधिकारी धीमन चकमा का जन्म त्रिपुरा के एक छोटे से कस्‍बे कंचनपुर में हुआ। उनके पिता स्कूल टीचर हैं, जबकि मां हाउस वाइफ हैं। धीमन ने अगर्तला के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एनआईटी ) से कंप्यूटर साइंस में बी.टेक किया। पढ़ाई पूरी करने के बाद धीमन ने यूपीएससी की तैयारी शुरू की। उन्हें पहले भारतीय वन सेवा (आईएफएस) में जगह मिली और वह ओडिशा के मयूरभंज जिले में आईएफएस अधिकारी के तौर पर तैनात हुए।उनका सपना आईएएस बनने का था। 2020 में उन्होंने फिर से यूपीएससी की परीक्षा दी और इस बार 482वीं रैंक हासिल की। इस सफलता ने उन्हें 2021 बैच का IAS अधिकारी बनाया और वह ओडिशा कैडर में शामिल हुए।

2020 की कामयाबी के बाद उन्‍होंने एक साल की ट्रेनिंग ली ।इसके बाद वर्ष 2021 बैच का आईएएस नियुक्‍त किया गया।आठ जून 2025 को ओडिशा विजिलेंस ने धीमन चकमा को 10 लाख रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा।बताया जा रहा है कि एक स्‍थानीय व्‍यापारी से 20 लाख रुपये मांगे गए थे।इसी तय राशि में से आधी रकम दी गई थी।

व्‍यापारी का आरोप था कि चकमा ने उनके स्टोन क्रेशर यूनिट के खिलाफ कार्रवाई की धमकी दी थी।इसके बाद विजिलेंस ने जाल बिछाया और चकमा अपने सरकारी आवास पर रिश्वत लेते पकड़े गए। केमिकल टेस्ट में उनके हाथ और दराज दोनों पॉजिटिव पाए गए। इसके बाद उनके आवास से 47 लाख रुपये नकद और बरामद हुए। सोशल मीडिया पर इस घटना को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं.कई लोगों ने इसे सिस्टम की नाकामी बताया, तो कुछ ने इसे व्यक्तिगत लालच का नतीजा माना। एक यूजर ने लिखा-चार साल की नौकरी में इतना भ्रष्टाचार? ये लोग यूपीएससी में एथिक्स कैसे पढ़ते हैं?।यह पहला मामला नही है। अधिकारी रिश्वत लेते पकड़े जाते रहे हैं किंतु सेवा प्रारंभ होने के दौरान ही रिश्वत लेने का पहला मामला है।इस मामले से समझा जा सकता है कि ये अब न पकड़े गए होते तो सेवा के दौरान जनता का कितना खून चूसते।

दिल्ली उच्च न्यायालय के जस्टिस वर्मा के घर नई दिल्ली स्थित 30, तुगलक क्रीसेंट स्थित सरकारी आवास के बाहरी हिस्से में 14 मार्च की रात करीब 11:30 बजे आग लगी।इसमें बड़ी तादाद में नोट जले। जस्टिस वर्मा कहते रहे कि रूपये उनके नही है।पूरी कोशिश मामले को दबाने की हुईं। मामले के न दबने पर इन्हें दिल्ली से इलाहाबाद उच्च न्यायालय भेज दिया गया,हालाकि इलाहाबाद के वकीलों ने इनके आने का विरोध किया।परिणाम स्वरूप इन्हें कार्य नही दिया गया,किंतु लगभग तीन माह बीत जाने के बाद भी उनके खिलाफ कोई आरोप दर्ज नही हुआ। जबकि सामान्य मामले में बड़े से बडे अधिकारी, जनसेवक, नेता और मंत्री के खिलाफ मुकदमा ही दर्ज नही होता, वे जेल भी जाते।इन घटनाओं के उदाहरण थोक में मिल जाएंगे। जस्टिस वर्मा का मामला राज्य सभा में भी उठ चुका है।

हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के सदस्यों को संबोधित करते हुए न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने एक पुराने न्यायिक आदेश के कारण एफआईआर दर्ज न होने और जस्टिस वर्मा के आवास से बरामद नकदी के मामले पर सवाल उठाए।

उपराष्ट्रपति ने न्यायिक समितियों की भूमिका और न्यायिक निर्णयों पर पैसों के संभावित प्रभाव पर भी चिंता जताई।उन्होंने कहा कि सरकार आज “लाचार” है क्योंकि एक न्यायिक आदेश एफआईआर दर्ज करने में बाधा बना हुआ है। अगर कोई अपराध हुआ है तो उसकी एफआईआर दर्ज होनी चाहिए थी। यह सबसे बुनियादी और शुरुआती कदम है, जो पहले ही दिन उठाया जा सकता था।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि मौजूदा स्थिति में जब तक न्यायपालिका के सर्वोच्च स्तर से अनुमति नहीं मिलती, तब तक एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती। उन्होंने सवाल उठाया कि ‘अगर यह अनुमति नहीं दी गई तो क्यों?’ ‘क्या किसी न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताव ही इस संकट का समाधान है? उपराष्ट्रपति ने जस्टिस यशवंत वर्मा के निवास से बरामद नकदी की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि यह न्यायपालिका की छवि को गहरा आघात देने वाला मामला है। उन्होंने पूछा, अगर यह घटना सामने नहीं आती, तो क्या हमें कभी पता चलता कि और भी ऐसे मामले हो सकते हैं?जगदीप धनखड़ ने जोर दिया कि जब नकदी मिलती है तो हमें यह जानना चाहिए कि वह पैसा किसका है, उसकी मनी ट्रेल क्या है, और क्या उस पैसे ने न्यायिक निर्णयों को प्रभावित किया।जगदीप धनखड़ ने कहा कि जब जनता का अन्य संस्थाओं से विश्वास उठता है, तब भी वे न्यायपालिका की ओर आशा से देखते हैं। उन्होंने कहा, हमारे न्यायाधीशों की बुद्धिमत्ता और परिश्रम अद्वितीय है लेकिन अगर वहीं संदेह की दृष्टि में आ जाएं तो लोकतंत्र की नींव ही हिल जाएगी। यह सोचना कि मीडिया का ध्यान हटते ही मामला ठंडा पड़ जाएगा, एक बहुत बड़ी भूल होगी। इस अपराध के लिए जो भी जिम्मेदार हैं, उन्हें बख्शा नहीं जाना चाहिए।

धनखड़ ने आगे कहा, मैं पूर्व मुख्य न्यायाधीश का आभार व्यक्त करता हूं कि उन्होंने दस्तावेजों को सार्वजनिक किया। हम ये कह सकते हैं कि नकदी की जब्ती हुई क्योंकि रिपोर्ट कहती है और रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक की। हमें लोकतंत्र के विचार को नष्ट नहीं करना चाहिए। हमें अपनी नैतिकता को इस कदर गिराना नहीं चाहिए। हमें ईमानदारी को समाप्त नहीं करना चाहिए।

इन मामलों को देख हमें सोचना होगा कि समाज कहां जा रहा है।प्रशासन तंत्र,जनसेवक और न्यायपालिका को सामाजिक मानदंड और एथिक्स में क्या पढ़ाया जा रहा है,कैसे पढ़ाया जा रहा है। दरअस्ल भारतीय समाज में बढ़ा कदाचार समाज में बढ़ी भौतिकता की देन है।पहले जीवन आदर्श महत्वपूर्ण थे।ईमानदार व्यक्ति को समाज में सम्मान मिलता था। अब समाज के मानक बदल गए। अब पैसे वाले को सम्मान मिलता है।ये कोई नही पूछता कि पैसा आया कहां से और कैसे आया।

परिवार सदस्य ही परिवार के ईमानदार मुखिया को बेवकूफ मानते हैं।ईमानदारी के लिए समय − समय पर उसका अपमान करते हैं। बढ़ते कदाचार को रोकने के लिए हमें अपने सामाजिक मिथक का पाठ प्रारंभ से ही बच्चों को पढ़ाना होगा।उन्हें ये भी बताना होगा कि कानून के हाथ बड़े लंबे हैं।इसके चंगुल में फंसने पर सजा तो काटनी ही पड़ेगी। सम्मान को भी बट्टा लगेगा। निगरानी तंत्र को मजबूत करना होगा।इन मामलों में त्वरित न्याय की व्यवस्था करानी होगी ताकि इनकी सजा से अन्य सीख लें।

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