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Tuesday, December 23, 2025

‘एक पेड़ माँ के नाम’ पर सवाल: प्रयागराज के संविलियन विद्यालय में बच्चों से पेड़ तुड़वाने का आरोप, प्रशासन की चुप्पी पर उठे गंभीर सवाल

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प्रयागराज: केंद्र सरकार द्वारा शुरू किया गया ‘एक पेड़ माँ के नाम’ (One Tree in the Name of Mother) अभियान मातृभूमि, मातृत्व और पर्यावरण संरक्षण (environmental protection) का प्रतीक बन चुका है। मिशन लाइफ के अंतर्गत चल रहे इस अभियान में स्कूलों, कॉलेजों और आम नागरिकों की भागीदारी से हरियाली बढ़ाने और भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित पर्यावरण का संदेश दिया जा रहा है। लोग अपनी माँ या धरती माँ के नाम पर पेड़ लगाकर उसकी देखभाल का संकल्प ले रहे हैं।

लेकिन इसी अभियान की भावना के ठीक विपरीत एक चौंकाने वाला मामला संविलियन विद्यालय मैनापुर, भगवतपुर, सदर प्रयागराज से सामने आया है, जहाँ विद्यालय की प्रधानाचार्या सुश्री विनीता शिवहरे के आदेश पर स्कूल में पढ़ने वाले मासूम बच्चों से पेड़ों की डालियाँ तुड़वाने, काटने और छांटने का कार्य कराए जाने का आरोप है। सवाल यह है कि क्या यही वह शिक्षा है, जो सरकार बच्चों को देना चाहती है?

नियमों के अनुसार पाँच वर्ष से अधिक आयु के हरे पेड़ों को बिना सरकारी अनुमति काटना या नुकसान पहुँचाना दंडनीय अपराध है। इसके बावजूद न तो वन विभाग से अनुमति ली गई और न ही किसी सक्षम अधिकारी की स्वीकृति प्राप्त की गई—ऐसा आरोप विद्यालय के ही शिक्षकों द्वारा लगाया गया है।

विद्यालय की शिक्षिका सुश्री प्राची सक्सेना ने बताया कि इस संबंध में विद्यालय की एसएमसी (स्कूल मैनेजमेंट कमेटी) की बैठक में कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया गया था और न ही उच्च अधिकारियों से अनुमति ली गई। इसके बावजूद परिसर में लगे फलदार वृक्षों को बच्चों से तुड़वाया गया, जो न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि बाल सुरक्षा और बाल अधिकारों पर भी गंभीर प्रश्न खड़े करता है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2025 में ‘एक पेड़ माँ के नाम 2.0’ अभियान के तहत सरकार, विभागों और नागरिकों को मिलकर रिकॉर्ड स्तर पर वृक्षारोपण करने का लक्ष्य रखा था। एक ओर सरकार हरियाली बढ़ाने की बात कर रही है, तो दूसरी ओर सरकारी विद्यालय परिसर में बच्चों से पेड़ तुड़वाने जैसे कृत्य अभियान की आत्मा पर सीधा प्रहार प्रतीत होते हैं।

पर्यावरण संरक्षण और बाल अधिकारों की बात करने वाली सरकार के लिए यह घटना एक कसौटी बन गई है—जहाँ कार्रवाई न होना, नीति और नीयत दोनों पर सवाल खड़े कर सकता है।

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