लखनऊ। यूपी की राजधानी लखनऊ में पूर्वांचल एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण प्रस्ताव में एक के बाद एक बाधा सामने आ रही है। एक तरफ कार्मिक विरोध कर रहे हैं तो दूसरी तरफ बार-बार नियमावली बदलनी पड़ रही है। शनिवार को निविदा भरने का अंतिम दिन था। ऐसे में सिर्फ दो कंपनियां ही निविदा में हिस्सा ले रही हैं। नियमावली के तहत बिना तीन कंपनी के हिस्सा लिए तकनीकी निविदा नहीं खोली जा सकती है।
पूर्वांचल एवं दक्षिणांचल के निजीकरण प्रस्ताव के तहत ट्रांजक्शन एडवाइजर (TA) की नियुक्ति हो रही है। इसके लिए सात कंपनियों ने निविदा में हिस्सा लेने की तैयारी की थी, लेकिन शनिवार दोपहर तीन बजे तक सिर्फ दो कंपनियों ने ही निविदा भरी है।
मालूम हो कि पूर्वांचल एवं दक्षिणांचल के निजीकरण के मसले पर एनर्जी टास्क फोर्स के प्रस्ताव में बदलाव हो चुका है। इसी के तहत ट्रांजक्शन एडवाइजर की नियुक्ति का फैसला लिया गया। इतना ही नहीं एडवाइजर नियुक्ति मामले में भी कई नियमों में शिथिलता दी गई। फिर भी अभी तक कंपनियां नहीं मिल पा रही हैं।
दो में एक सऊदी अरब की कंपनी
उपभोक्ता परिषद ने शुक्रवार को ही कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट (हितों के टकराव) का मुददा उठाया था। परिषद ने यह भी खुलासा किया था कि जिन कंपनियों ने निविदा में हिस्सा लेने की तैयारी की है, वे किसी न किसी कंपनी से जुड़ी हुई हैं। परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने दावा किया है कि निविदा प्रक्रिया में जिन दो कंपनियों ने हिस्सा लिया है, उसमें एक सऊदी अरब की है। यह कंपनी एक साल के लिए बैन हो चुकी है।
ऐसे में यह कंपनी फरवरी 2026 तक निविदा में हिस्सा नहीं ले सकती है। इस कंपनी को किसी भी कीमत पर निविदा में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। वर्मा ने फाइनेंशियल रिर्पोटिंग काउंसिल (एफआरसी ) हेडक्वार्टर यूके और भारत की नेशनल फाइनेंशियल रिर्पोटिंग अथॉरिटी में कनफ्लिक्ट आफ इंटरेस्ट (हितों के टकराव) के मामले का खुलासा करते हुए एक बार फिर पूरे प्रकरण में सीबीआई जांच की मांग उठाई है।