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Saturday, July 19, 2025

कानून पर भारी पड़ा दबाव: सांसद प्रतिनिधि को बिना ठोस सबूत भेजा जेल

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सांसद की भी नहीं सुनी गई आवाज़

फर्रुखाबाद। थाना मऊदरवाजा क्षेत्र की एक आत्महत्या की घटना अब पुलिस की निष्पक्षता और प्रशासनिक साख पर गंभीर सवाल खड़े कर रही है। इस मामले में सांसद मुकेश राजपूत के प्रतिनिधि रजनेश राजपूत को जेल भेजे जाने को लेकर राजनीतिक दबाव, संगठन की धमकी और प्रशासन की भूमिका को लेकर तीखी बहस छिड़ गई है।

दरअसल, भारतीय किसान यूनियन टिकैत के जिला अध्यक्ष अजय कटियार ने आत्महत्या की इस घटना को लेकर खुली धमकी दी थी कि यदि 72 घंटे के भीतर गिरफ्तारी नहीं हुई तो किसान यूनियन थाना मऊदरवाजा का घेराव करेगी। यह चेतावनी सामने आने के कुछ ही घंटों बाद पुलिस ने आनन फानन में कार्रवाई करते हुए सांसद प्रतिनिधि रजनेश राजपूत, दो पुलिसकर्मियों सहित कुल पाँच लोगों पर मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया।

यह वही मामला है जिसमें मऊदरवाजा थाना क्षेत्र के गांव छेदा नगला में एक युवक, जिसकी आदतें शराबी प्रवृत्ति की बताई जा रही थीं, ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। मृतक के पेंट पर लिखा गया कथित ‘सुसाइड नोट’ सबसे बड़ा सवाल बन गया है। नोट में सांसद प्रतिनिधि रजनेश राजपूत सहित पाँच लोगों के नाम प्रताड़ना के आरोप में लिखे गए, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कोई चोट या हिंसा का निशान नहीं पाया गया। नोट ऊपर की दिशा में लिखा गया, जो विशेषज्ञों के अनुसार असंभव प्रतीत होता है। हैंडराइटिंग की पुष्टि अब तक नहीं हो सकी, बावजूद इसके गिरफ्तारी कर दी गई।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह गिरफ्तारी किसके कहने पर और किन हालात में की गई? विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, अपर पुलिस अधीक्षक डॉ. संजय सिंह ने खुद सांसद मुकेश राजपूत को फोन कर कहा था कि रजनेश राजपूत को थाने भेजिए, पूछताछ करनी है। सांसद ने विश्वास करते हुए रजनेश को थाने भेजा, लेकिन वहां उसे पूछताछ के बजाय हिरासत में लेकर जेल भेज दिया गया।

घटना के बाद जब सांसद मुकेश राजपूत ने इस कार्रवाई को लेकर डॉ. संजय सिंह से संपर्क करने की कोशिश की, तो उन्होंने कॉल रिसीव नहीं की और बाद में फोन स्विच ऑफ कर लिया। सांसद ने नगर क्षेत्राधिकारी ऐश्वर्या उपाध्याय को भी फोन किया, लेकिन उन्होंने भी कॉल उठाना मुनासिब नहीं समझा।

इस पूरे मामले ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर संदेह खड़ा किया है, बल्कि यह भी साबित कर दिया है कि अब न्यायिक प्रक्रिया संगठनों की धमकियों और राजनीतिक दबावों के आगे झुकने लगी है। जब एक सांसद के प्रतिनिधि को बिना पुष्टि, केवल बाहरी दबाव में जेल भेज दिया जाता है और खुद सांसद की बात को नजरअंदाज कर दिया जाता है, तो यह लोकतंत्र के लिए एक गंभीर चेतावनी है। जनता के बीच यह सवाल तेजी से उठ रहा है कि क्या सचमुच न्याय हुआ, या फिर दबाव और धमकी ने कानून को मात दे दी

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