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Monday, October 27, 2025

ब्राह्मण नेताओं की उपेक्षा पर गरमाया सियासी माहौल, सोशल मीडिया पर सपा की आलोचना तेज

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संदीप सक्सेना
फर्रुखाबाद। पूर्व विधायक उर्मिला राजपूत के संयोजन में समाजवादी पार्टी द्वारा संविधान को लेकर आयोजित कार्यक्रम में ब्राह्मण नेताओं की उपेक्षा ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। खासतौर से सोशल मीडिया पर इस मुद्दे ने बड़ा रूप ले लिया है, जहां पार्टी कार्यकर्ताओं से लेकर आम जन तक सवाल उठा रहे हैं कि क्या समाजवादी पार्टी में ब्राह्मण नेताओं के लिए कोई जगह बची है?

कार्यक्रम के पोस्टर और बैनर में महानगर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष राघव दत्त मिश्रा, वरिष्ठ नेता सतीश दीक्षित, मनोज मिश्रा सहित किसी भी ब्राह्मण नेता का नाम या चित्र न होना सोशल मीडिया यूज़र्स को खल गया। कई ब्राह्मण समर्थकों ने इसे सीधा अपमान करार दिया है।

पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष अमित पाठक ने अपनी पोस्ट में सवाल उठाया कि,

“राघव दत्त मिश्रा जैसे समर्पित और वरिष्ठ नेता अगर पार्टी में सम्मान नहीं पा रहे हैं तो फिर समाजवादी पार्टी के मूल्यों पर प्रश्नचिह्न लगना स्वाभाविक है।”

उन्होंने लिखा कि,”आप भाजपा और सरकार की आलोचना करते हैं, लेकिन अपनी ही पार्टी में उपेक्षित हैं। क्या विपक्ष में रहते हुए यह हाल है, तो सत्ता में आने पर क्या होगा?”

समाजवादी पार्टी के पूर्व ज़िला अध्यक्ष नदीम अहमद फारूकी ने भी इस उपेक्षा पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा,”महानगर अध्यक्ष का अगर इस तरह अनदेखा किया जा रहा है तो फिर यह संगठनात्मक ढांचे पर भी गंभीर सवाल है। क्या अब महानगर अध्यक्ष और उनके पद का कोई महत्व नहीं रहा?”

राघव दत्त मिश्रा ने जबाव मे कहा “मैं सिपाही हूं, पोस्टर का भूखा नहीं”उधर, खुद राघव दत्त मिश्रा ने स्थिति को संभालते हुए एक परिपक्व प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा “मैं समाजवादी पार्टी का सिपाही हूं और रहूंगा। मेरा उद्देश्य पार्टी के लिए काम करना है, न कि पोस्टर में छपना।”

उन्होंने भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा कि,”प्रदेश में भाजपा सरकार के शासनकाल में ब्राह्मणों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। सपा में ब्राह्मणों का सम्मान सुरक्षित है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला सिर्फ एक पोस्टर या नाम न छपने तक सीमित नहीं है। यह समाजवादी पार्टी के भीतर सवर्ण नेताओं, विशेषकर ब्राह्मण वर्ग की नाराजगी का संकेत है। लंबे समय से सपा की ‘पिछड़ा-दलित-मुस्लिम’ रणनीति के चलते सवर्ण नेताओं को या तो प्रतीकात्मक स्थान दिया गया या पूरी तरह उपेक्षित किया गया।

भाजपा समर्थकों और नेताओं ने इस विवाद को हथियार बनाकर सोशल मीडिया पर ताबड़तोड़ हमले शुरू कर दिए हैं। कई भाजपा नेताओं ने कहा कि”अब ब्राह्मण समाज को यह तय कर लेना चाहिए कि सम्मान किस दल में सुरक्षित है।”

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