शरद कटियार
काशी (Kashi) — वह नगरी, जहाँ आस्था और अध्यात्म की गंगा बहती है, आज फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन से आलोकित हो उठी। ‘हर हर महादेव’ के गगनभेदी नारों और जनसैलाब की उमंग के बीच जब प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) का काफिला बाबतपुर से बरेका की ओर बढ़ा, तो लगा जैसे काशी स्वयं अपने पुत्र का स्वागत कर रही हो।
प्रधानमंत्री का यह दौरा केवल एक राजनैतिक यात्रा नहीं, बल्कि उस सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक है जो आज भारत के विकास की धुरी बन चुकी है। यह वही काशी है जहाँ से भारत का वैभव, आत्मविश्वास और आध्यात्मिक शक्ति दोनों का संदेश एक साथ प्रस्फुटित होता है। 8 नवंबर को प्रधानमंत्री चार नई वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनों की सौगात देश को देंगे — जिनमें सबसे खास वाराणसी-खजुराहो वंदे भारत एक्सप्रेस है। यह ट्रेन केवल दो शहरों को नहीं जोड़ेगी, बल्कि संस्कृति, श्रद्धा और पर्यटन की उस अदृश्य डोर को मजबूत करेगी जो पूर्वांचल से बुंदेलखंड तक फैली है। वाराणसी, प्रयागराज, चित्रकूट और खजुराहो जैसे पवित्र स्थलों को जोड़ने वाली यह रेल सेवा, एक प्रकार से भारत की आत्मा को जोड़ने का भी कार्य करेगी।
यह वंदे भारत केवल स्टील के ढांचे में दौड़ती ट्रेन नहीं है — यह भारत के नए आत्मविश्वास का प्रतीक है। वह आत्मविश्वास, जो कहता है कि अब भारत नकल नहीं करता, नवाचार करता है; अब भारत इंतज़ार नहीं करता, गति तय करता है। काशी में हुए भव्य स्वागत से यह स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री और उनके संसदीय क्षेत्र के बीच केवल राजनीतिक संबंध नहीं, बल्कि भावनात्मक रिश्ता है। लोगों के चेहरों पर जो खुशी थी, वह बताती है कि यह दौरा जनसंपर्क से कहीं अधिक जनसंवेदना का प्रतीक था।
काशी का हर दीप, हर नारा, हर पुष्पवर्षा इस बात का संदेश दे रही थी — कि भारत का पुनर्जागरण केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक भी है। विकास की राह पर चलते हुए जब भारत अपनी जड़ों से जुड़ा रहता है, तब वह केवल विश्वगुरु नहीं, बल्कि विश्वप्रेरक बनता है। काशी का यह दृश्य, वह ऊर्जा और वह आस्था, आज पूरे देश के लिए प्रेरणा है — कि आधुनिकता और परंपरा जब साथ चलते हैं, तभी सच्चे अर्थों में ‘वंदे भारत’ होता है।


