-ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिलेगा नया संबल, पशुपालकों की आय बढ़ाने की पहल
दिव्यांशु कटियार
लखनऊ/नई दिल्ली: अब तक ईंधन और खाद के रूप में प्रयुक्त होने वाला गोबर (cow dung), अब ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने का एक नया जरिया बन रहा है। देश में कई स्टार्टअप और अनुसंधान केंद्रों द्वारा गोबर से प्लाई बोर्ड (Ply board) (गोबर प्लाई) बनाने की प्रक्रिया पर काम किया जा रहा है, जिससे न केवल पर्यावरण (Environment) को राहत मिलेगी, बल्कि किसानों को भी आय का नया स्रोत मिलेगा।
प्लाई बोर्ड बनाने की इस नवीन तकनीक में गोबर को पहले सुखाकर प्रोसेस किया जाता है। इसके बाद इसमें प्राकृतिक एडिटिव्स (जैसे बायो-रेजिन, लिग्निन आधारित चिपकने वाले तत्व) मिलाए जाते हैं, जिससे यह मजबूत, टिकाऊ और जल-प्रतिरोधी बनता है। इस तकनीक को IIT दिल्ली, ICAR, और कुछ स्टार्टअप कंपनियों जैसे “Gauply” और “BioCraft Innovation” ने मिलकर विकसित किया है।
भारत में हर साल लगभग 300 मिलियन टन गोबर उत्पन्न होता है। यदि इसका सिर्फ 10% भी प्लाई बोर्ड निर्माण में लगाया जाए, तो लगभग 30 मिलियन टन गोबर का व्यावसायिक उपयोग हो सकता है। इससे किसानों को प्रति टन ₹500-₹700 तक की अतिरिक्त आय प्राप्त हो सकती है। हर 1 टन गोबर से लगभग 40-50 वर्ग फीट गोबर प्लाई बनाया जा सकता है। इसके लिए स्थानीय स्तर पर प्लाई यूनिट्स, गोबर संग्रहण, प्रोसेसिंग, और पैकेजिंग जैसे कई कार्यों की आवश्यकता होगी। एक अनुमान के अनुसार, हर 100 गांवों में 1 यूनिट से 50-70 लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिल सकता है।
हर साल भारत में लाखों पेड़ प्लाईवुड निर्माण के लिए काटे जाते हैं। गोबर प्लाई बोर्ड अपनाने से लकड़ी पर निर्भरता 30% तक घट सकती है। साथ ही, गोबर के खुले में जलने से जो मेथेन और CO₂ जैसी गैसें निकलती हैं, वह भी नियंत्रित होंगी। लाभ हैं जैसे,पर्यावरण हितैषी लकड़ी की जगह गोबर का प्रयोग, वनों की कटाई में कमी होगी।स्थायित्व बायो-रेजिन आधारित प्रक्रिया से यह बोर्ड सामान्य प्लाई जितना ही मजबूत है। कृषक हित किसानों को गोबर बेचने से सीधी कमाई का जरिया है।
स्थानीय रोजगार ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार और लघु उद्योग को बढ़ावा, सस्ते निर्माण विकल्प पारंपरिक प्लाई की तुलना में 15-20% तक सस्ता है।सभी गोबर में आवश्यक फाइबर नहीं होता, जिससे गुणवत्ता में अंतर आ सकता है।शुरुआती मशीनें और सेटअप लागतपूर्ण हैं – एक यूनिट की स्थापना में ₹10-15 लाख तक खर्च हो सकता है। लोगों में अभी जागरूकता की कमी है और “गोबर से बना” सुनकर पूर्वाग्रह भी हो सकता है। पर्याप्त सब्सिडी और तकनीकी प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
कृषि मंत्रालय, MSME मंत्रालय और गौ सेवा आयोग जैसे कई संस्थान गोबर आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सहयोग कर रहे हैं। सरकार की ‘गौधन न्याय योजना’ (छत्तीसगढ़) और ‘ग्रामोद्योग योजना’ के तहत कई गोबर आधारित उद्योग शुरू किए गए हैं। 2023 में शुरू हुआ “गौ-काष्ठ बोर्ड” अब कई सरकारी भवनों में इस्तेमाल हो रहा है।
IIT दिल्ली और NIAM जयपुर में इस तकनीक पर शोध कर टिकाऊ और कम लागत वाली प्लाई विकसित की जा रही है। खादी ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) ने भी “गोबर प्लाई” को छोटे और मध्यम उद्योगों के लिए प्रमोट करने की दिशा में काम शुरू कर दिया है। गोबर से बना प्लाई बोर्ड केवल एक तकनीकी नवाचार नहीं है, यह भारत के ग्रामीणों की आर्थिक आजादी की ओर एक बड़ा कदम है। यह पहल ‘गांव से ग्लोबल’ की अवधारणा को साकार कर सकती है, जिसमें परंपरा, पर्यावरण और प्रोद्योगिकी का सुंदर समागम दिखाई देता है।
अगर सरकार, शोध संस्थान और निजी क्षेत्र मिलकर इसे बढ़ावा दें, तो आने वाले वर्षों में गोबर से बना प्लाई बोर्ड भारत की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण दोनों को नया जीवन दे सकता है। सरकार यदि पंचायत स्तर पर गोबर प्लाई यूनिट की स्थापना के लिए 50% अनुदान, बैंक ऋण और तकनीकी प्रशिक्षण जैसे प्रावधान करे तो ग्रामीण भारत में यह क्रांति की तरह साबित हो सकती है।
लेखक इंद्रप्रस्थ आयल प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ हैँ।