प्रशांत कटियार
एक समय था जब किसान यूनियन (farmer union) शब्द सुनते ही हमारे मन में एक सच्चे, संघर्षशील और खेतों से जुड़े किसान की छवि उभरती थी जिसका मकसद सिर्फ फसल, जमीन और अधिकार की लड़ाई लड़ना होता था। पिताजी के मुंह से अजय अनमोल, अशोक कटियार (Ashok Katiyar) का नाम खूब सुनता था, एक बार उनको जेब मे बिल्ला भी देखा, अशोक कटियार जी इस समय हमारे ग्रह जनपद फर्रुखाबाद मे आलू विपणन संघ के डायरेक्टर है और खूब किसानो की बात भी करते है लेकिन आज हालात बेहद चिंताजनक हो चले हैं। जिस संगठन की नींव किसान हितों की रक्षा के लिए रखी गई थी, वह आज कुछ असामाजिक तत्वों का छुपने का अड्डा बनती जा रही है।
अब न किसान यूनियन में केवल किसान हैं, न उनके मुद्दे ही किसानों जैसे। भू माफिया, जमीन कब्जाने वाले, फर्जी पट्टे पर उद्योग चलाने वाले, जबरिया मकान कब्जाने और कानून से भागते अपराधी, अब हरी टोपी और हाथ में लाठी लेकर सीधे किसान नेता बन जाते हैं। नीयत साफ़ न हो तो टोपी भी साजिश बन जाती है, और संघर्ष की लाठी दबाव की धमकी में बदल जाती है।
जैसे ही किसी भू माफिया, उद्योगपति या आपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्ति पर कोई मुकदमा दर्ज होता है, वह झट से किसी किसान यूनियन का झंडा पकड़ लेता है। फिर वह तथाकथित नेता बनकर अधिकारियों पर दबाव बनाता है, धरने की धमकी देता है, और सामाजिक सहानुभूति का नकली चोला ओढ़ लेता है।यह प्रवृत्ति न सिर्फ किसान संगठनों की साख को नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि उन असली किसानों के संघर्ष को भी कमजोर कर रही है जो वाकई खेत खलिहान की लड़ाई लड़ रहे हैं। अगर इसी तरह हर आपराधिक छवि वाला व्यक्ति खुद को किसान नेता घोषित करके प्रशासन पर दबाव बनाएगा, तो फिर कानून का राज कहां बचेगा? आज के दौर में कुछ ऐसे भी किस मिल जाएंगे जो खेती के बारे में त म नहीं जानते हैं।
समय आ गया है कि असली और नकली किसान नेताओं में फर्क किया जाए। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि किसान संगठनों का सत्यापन हो, उनके पदाधिकारियों की पृष्ठभूमि जांची जाए और हकीकत में जो किसान हैं उन्हीं को नेतृत्व की जिम्मेदारी मिले। वरना हरी टोपी की असल पहचान हरी भेष में छुपे लालसाओं वाले चेहरों की बनकर रह जाएगी।यह सिर्फ किसान संगठनों की नहीं, बल्कि लोकतंत्र की विश्वसनीयता की भी लड़ाई है जिसे बचाना अब बेहद जरूरी हो गया है।