(ढाबों से होटलों तक नकली पनीर का खेल)
… काशी रत्न अजय कुमार
भारतीय सनातन के इतिहास में कहीं भी पनीर का उल्लेख नहीं है और न ही ये भारतीय व्यंजन है। क्योंकि भारत में प्राचीन काल से ही दूध को विकृत करने की मनाही रही है। आयुर्वेद में पनीर को निकृष्टतम भोजन के रूप में बताया गया है। बोले तो कचरा और कचरा भी ऐसा वैसा नहीं, ऐसा कचरा जिसे जानवरों को भी खिलाने से मना किया गया है। दूध को फाड़ कर या दूध का रूप विकृत करके पनीर बनता है। जैसे कोई सब्जी सड़ जाए तो क्या उसे खाएंगे ? पनीर भी सड़ा हुआ दूध है।
आज भी ग्रामीण समाज में घर की महिलाएं अपने हाथ से कभी दूध नहीं फाड़ती। पनीर खाने के नुकसान आयुर्वेद ने तो शुरू से ही मना किया था कि विकृत दूध लिवर और आंतों को नुकसान पहुंचाता है, लेकिन अब आधुनिक विज्ञान ने भी अपने नए शोध में साबित किया है कि पनीर खाने से आंतों पर अतिरिक्त दबाव आता है। जिससे पाचन संबंधित रोग होते हैं। पनीर में पाया जाने वाले प्रोटीन पचाने की क्षमता जानवरों में भी नहीं होती है, फिर मनुष्य उसे कैसे पचा सकता है। नतीजा होता है खतरनाक कब्ज, फैटी लीवर और आगे चल कर शुगर, कोलेस्ट्रॉल, हाई ब्लडप्रेशर और यही पनीर पेट की खतरनाक बीमारी IBS को भी पैदा करता है।
ज़्यादा पनीर खाने से खून में थक्के जमने की शिकायत होती है, जो ब्रेन हैमरेज और हार्ट फेलियर का कारण बनता है। वहीं ये पनीर हार्मोनल डिसबैलेंस का कारण बनता है, जिससे हाइपोथायरायडिज्म या हाइपरथायराइडिज्म पनपता है। महिलाओं में गर्भ धारण करने की क्षमता कम होती है।
कुल मिला कर यदि देखा जाए तो ये पनीर लाभ तो केवल जीभ को देता है, लेकिन हानि पूरे शरीर की करता है,
अब जरा ज्ञान से बाहर आकर सड़क पर की दुनिया में आते है। हाईवे पर किसी भी ढाबे पर रुक जाइए या किसी पाँच सितारा होटल का मेन्यू खोल लीजिए—पनीर के बिना सब अधूरा लगेगा। सब्ज़ियों के सेक्शन में आधी से ज़्यादा डिशेज़ पनीर की ही होती हैं। पनीर टिक्का, शाही पनीर, कड़ाही पनीर, पनीर दो प्याज़ा, पनीर मोमोज़, पनीर पिज़्ज़ा… समोसे में पनीर, पकौड़ी में पनीर, बर्गर में पनीर, मतलब जहां देखो वहां पनीर, पनीर पनीर। मानो भारतीय शाकाहारी भोजन की पहचान ही पनीर से हो चुकी है। और दावतों का तो स्टेटस सिम्बल बन चूका है ये पनीर। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि 30 रुपये के छह मोमोज़, 50 रुपये के पनीर पिज़्ज़ा या 100 रुपये के बटर पनीर में इस्तेमाल हुआ पनीर असली है भी या नहीं?
यही सवाल आज सबसे बड़ा है। क्योंकि असली पनीर की लागत इतनी ज़्यादा है कि सस्ते रेस्टोरेंट और बड़े होटल तक उसे परोस ही नहीं सकते। फिर जो आपके सामने परोसा जा रहा है, वह आखिर है क्या? आइए समझते हैं इस पूरे पनीर के खेल का अर्थशास्त्र और सच्चाई।
असली पनीर की असली कीमत :
आज बाज़ार में अमूल का फुल क्रीम दूध 70 रुपये लीटर बिकता है। एक लीटर दूध से मुश्किल से 200 ग्राम पनीर बनता है। यानी एक किलो पनीर बनाने के लिए पाँच लीटर दूध चाहिए, जिसकी कीमत 350 रुपये बैठेगी। इसमें गैस, लेबर, पानी और लॉजिस्टिक खर्च जोड़ें तो असली पनीर की लागत कम से कम 315 से 350 रुपये किलो आती है। अब सवाल उठता है कि जब असली पनीर 350 रुपये किलो से कम में तैयार हो ही नहीं सकता, तो बाज़ार में 200–250 रुपये किलो बिकने वाला पनीर आखिर है क्या? क्या दुकानदार घाटे में आपको पनीर बेच रहा है? बिल्कुल नहीं। असली वजह है—मिलावटी पनीर का धंधा।
नकली पनीर कैसे बनता है? :
नकली पनीर को तकनीकी भाषा में एनालॉग पनीर कहा जाता है। इसमें दूध की जगह पाउडर मिल्क, वनस्पति घी (डालडा), पाम ऑयल, अरारोट और तरह-तरह के स्टेबलाइज़र मिलाए जाते हैं। यह असली पनीर जैसा दिखता है, उसका टेक्सचर भी वैसा होता है और हल्के स्वाद से ग्राहक धोखा खा जाता है। लेकिन हक़ीक़त यह है कि इस पनीर में न तो दूध का पोषण है, न ही असली स्वाद। इससे भी घटिया स्तर पर आता है यूरिया और डिटर्जेंट वाला पनीर। यूरिया को घोलकर दूध जैसा तरल तैयार किया जाता है और उसमें मैदा या साबुन का झाग मिलाकर पनीर जैसा पदार्थ बना दिया जाता है। यही नकली पनीर सस्ते मोमोज़, पिज़्ज़ा, बर्गर और यहां तक कि ढाबों की सब्ज़ियों में भरपूर इस्तेमाल होता है। ऐसा नकली पनीर केवल स्वाद का भ्रम पैदा करता है। पाम ऑयल और वनस्पति घी आर्टरी में जमकर दिल की बीमारियों का कारण बनते हैं। यूरिया और डिटर्जेंट सीधे किडनी और लीवर पर हमला करते हैं। लंबे समय तक इसका सेवन करने से शरीर के अंग धीरे-धीरे काम करना बंद कर देते हैं। यही कारण है कि पिछले तीस वर्षों में लीवर और किडनी की बीमारियों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। डॉक्टर भी मानते हैं कि इन बीमारियों का एक बड़ा कारण दूषित और मिलावटी डेयरी प्रोडक्ट हैं।
दूध और पनीर का गणित :
भारत दूध उत्पादन में दुनिया का सबसे बड़ा देश है। यहां रोज़ाना लगभग 64 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन होता है। इस पूरे दूध को फाड़कर पनीर बनाया जाए तो अधिकतम 1 करोड़ 20 लाख किलो पनीर तैयार हो सकता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि देश में रोज़ाना पनीर की खपत 1.5 करोड़ किलो से ज़्यादा है।
साफ है कि मांग और आपूर्ति में इतना बड़ा अंतर केवल मिलावटी पनीर से ही पूरा किया जा रहा है। यानी बाज़ार का 80 फीसदी से ज़्यादा पनीर नकली होने की आशंका है।
छोटी गलियों के बड़े खेल :
दिल्ली, लखनऊ, पटना, कानपुर, मेरठ जैसे शहरों की गलियों में जाकर देखिए। खुले भगोनों में उबलते हुए रसायन, पाउडर मिल्क और यूरिया के घोल से पनीर तैयार किया जाता है। कोई भी सुरक्षा मानक नहीं, कोई साफ-सफाई नहीं, कोई गुणवत्ता जांच नहीं। यह नकली पनीर ट्रकों से होटलों और रेस्तरां में पहुँचता है और ग्राहक तक मेहमान नवाज़ी के नाम पर परोसा जाता है। जब कभी छापेमारी होती भी है, वह भी ज़्यादातर त्यौहार में क्यूंकि उस समय दो नंबर की कमाई ज़्यादा होती है, तो मिलावटखोर जेल नहीं जाते। उन पर बस कुछ हजार रुपये का जुर्माना लगाकर छोड़ दिया जाता है। यही कारण है कि यह धंधा लगातार फल-फूल रहा है।
खाद्य सुरक्षा कानून होने के बावजूद हालात जस के तस हैं। एफएसएसएआई (भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण) समय-समय पर जांच करता है, लेकिन शादी विवाह के समः तो बिलकुल नहीं, जबकि उस समय खपत ज़्यादा होती है। लेकिन कार्रवाई कागज़ों तक सीमित रह जाती है। मिलावटी पनीर बनाने वालों के लिए न तो कड़ी सज़ा है और न ही जेल की अनिवार्यता। यही वजह है कि वे दोबारा वही काम करने लगते हैं।
सरकार की निष्क्रियता ने इस कारोबार को और मजबूत किया है। जब तक सख़्त कानून और ठोस कार्रवाई नहीं होगी, तब तक मिलावटखोरी का यह खेल बंद नहीं होने वाला। सवाल यह भी है कि क्या सरकार को इन मिलावटखोरों से राजनीतिक और आर्थिक फ़ायदा पहुँचता है, जिसकी वजह से वे खुलेआम कारोबार कर रहे हैं?
अब जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं, बल्कि आम जनता की भी है। जब तक ग्राहक सस्ते पनीर के लालच में नकली पनीर खरीदता रहेगा, यह कारोबार बंद नहीं होगा। हमें यह समझना होगा कि 200 रुपये किलो में असली पनीर मिलना असंभव है।
अगर आप रेस्तरां में पनीर की डिश ऑर्डर करते हैं, तो एक टुकड़ा कच्चा पनीर देखने की मांग करिए। असली दुकानदार कभी इंकार नहीं करेगा। लेकिन नकली पनीर परोसने वाला सौ बहाने बनाएगा। घर पर भी साधारण टेस्ट किए जा सकते हैं—असली पनीर गर्म पानी में नरम रहता है, नकली पनीर रबर जैसा या टूटकर घुल जाता है।
सबसे सुरक्षित उपाय यही है कि पनीर घर पर बनाएं। दूध से पनीर बनाने पर खुद अंदाजा हो जाएगा कि इसकी वास्तविक लागत क्या है और बाजार में बिकने वाला पनीर असली हो भी सकता है या नहीं। साथ ही, हमें यह मांग करनी चाहिए कि सरकार नकली पनीर बनाने वालों को सिर्फ जुर्माना लगाकर न छोड़े, बल्कि कड़ी सज़ा और जेल की सज़ा अनिवार्य करे।
BOX
पनीर भारतीय थाली का अहम हिस्सा है, लेकिन यही पनीर धीरे-धीरे ज़हर में बदल चुका है। सड़क किनारे ढाबे से लेकर पाँच सितारा होटल तक, ग्राहक को नकली पनीर परोसा जा रहा है। सेहत बिगड़ रही है, बीमारियाँ बढ़ रही हैं, लेकिन सरकार खामोश है।
अब वक़्त आ गया है कि हम जागें। स्वाद और सस्तेपन के लालच में हम अपनी सेहत और जीवन से खिलवाड़ न करें। जब तक ग्राहक जागरूक नहीं होगा और सरकार कड़ी कार्रवाई नहीं करेगी, तब तक यह मिलावटखोरी का खेल चलता रहेगा। भारत में शायद जितना दूध पैदा नहीं होता उससे ज़्यादा पनीर बनता होगा। भारतीय लोग तो पनीर के इतने दीवाने हो चुके हैं कि इन्हें जहां पनीर मिल जाता है बहुत ही मजे से चाप लेते हैं, होटल में गए तो बिना पनीर खाये इनके गले से निवाला नहीं निगलता।
BOX
चिकित्सा विज्ञान में सबसे प्राचीन विधा आयुर्वेद में दूध, दही, घी का जिक्र हर जगह है किन्तु इस नामुराद पनीर का जिक्र कहीं नहीं मिलता, आखिर क्यों ?
अतः ज्यादा कुछ नहीं तो कम से कम बाजार के पनीर से बचें और घर बनाएँ। मिलावट से तो बचेंगे। यदि पनीर इतना ही अच्छा है तो इसके बारे में किसी ऋषि ने कुछ लिखा क्यों नहीं ? इसलिए अगली बार पनीर खाने से पहले सोचिएगा अवश्य?
पनीर : सस्ते स्वाद के पीछे छुपा ज़हर, सरकार क्यों खामोश ?
