लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने आगामी पंचायत चुनाव को विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल मानते हुए पूरे राज्य में सक्रियता बढ़ा दी है। पार्टी ने कार्यकर्ताओं को निर्देश दिए हैं कि वे घर-घर जाकर जनता से संवाद करें, केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का प्रचार-प्रसार करें और विपक्षी दलों की खामियों को उजागर करें।
पार्टी की यह रणनीति 4 से 10 सितंबर तक आयोजित होने वाली बैठकों के माध्यम से लागू की जाएगी। 4 से 6 सितंबर तक क्षेत्रीय स्तर पर और 10 सितंबर तक जिलास्तर पर सम्मेलन आयोजित होंगे। प्रदेश नेतृत्व का मानना है कि पंचायत चुनाव में अच्छा प्रदर्शन विधानसभा चुनाव में जीत की नींव साबित होगा।
हालांकि, भाजपा की यह तैयारी चुनौतियों से भी खाली नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में पिछड़ा वर्ग और दलित समुदायों को दरकिनार किए जाने के आरोपों ने पार्टी के सामाजिक समीकरणों को प्रभावित किया है। इस अवसर का फायदा समाजवादी पार्टी (सपा) उठा रही है और पिछड़े वर्ग में अपनी पैठ मजबूत कर रही है।
साथ ही, ब्राह्मण और अन्य अग्रणी वर्गों में भी नाराजगी देखी जा रही है। कुछ क्षेत्रों में दबंग क्षत्रिय जनों के उत्पीड़न और स्थानीय विवादों के कारण भाजपा को आलोचना झेलनी पड़ रही है। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि भाजपा इन सामाजिक असंतोषों और वर्गीय नाराजगी को संबोधित नहीं करती है, तो पंचायत चुनाव में उसकी पकड़ कमजोर पड़ सकती है।
बीजेपी का बूथ-स्तर पर सक्रिय होना और केंद्र व राज्य योजनाओं के लाभ को ग्रामीण जनता तक पहुँचाना, पार्टी के लिए एक बड़ा हथियार है। वहीं विपक्षी दल भी भ्रष्टाचार, नाकामियों और वादाखिलाफी के मुद्दों को जनता के सामने रखकर अपनी चुनावी रणनीति तेज कर रहे हैं।
इस स्थिति में यह कहना गलत नहीं होगा कि आगामी पंचायत चुनाव केवल सीटों के लिए लड़ाई नहीं बल्कि सामाजिक संतुलन और राजनीतिक प्रभाव की भी परीक्षा होंगे। भाजपा की जीत या हार केवल संगठन की सक्रियता पर निर्भर नहीं करेगी, बल्कि उसकी सामाजिक समावेशिता और वर्गीय संवेदनशीलता पर भी निर्भर करेगी।