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Sunday, July 6, 2025

पांचाल घाट बना उपेक्षा का प्रतीक, जिम्मेदार गायब कोई सुध लेने वाला नहीं

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– नमामि गंगे योजना की खुली पोल — 8 साल में भी नहीं बन पाया पक्का घाट
– श्रद्धालु बेहाल, निर्माण एजेंसी और प्रशासन बेपरवाह

प्रशांत कटियार

फर्रुखाबाद – एक ओर केंद्र सरकार ‘नमामि गंगे’ योजना को गंगा की धरोहर और सांस्कृतिक पुनरुत्थान का आधार बता रही है, वहीं दूसरी ओर जिले का पांचाल घाट पिछले 8 वर्षों से अधूरे निर्माण और लापरवाही की भेंट चढ़ा हुआ है।
गंगा किनारे स्थित यह ऐतिहासिक घाट जहां हर वर्ष रामनगरिया मेले में लाखों श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने पहुंचते हैं, आज टूटी सीढ़ियों, बिखरी ईंटों, अधूरी दीवारों और गंदगी का नमूना बन चुका है।

सरकार ने वर्ष 2015-16 में नमामि गंगे योजना के तहत पांचाल घाट को पक्का, सुविधाजनक और सुंदर बनाने का खाका तैयार किया था। इसमें सीढ़ियों का निर्माण, महिलाओं के लिए चेंजिंग रूम, शौचालय, पीने के पानी की व्यवस्था, लाइटिंग, बैठने की पक्की जगह और साफ-सफाई की व्यवस्था शामिल थी। पर 8 साल बाद भी नतीजा वही — काम अधूरा, घाट बेजान, श्रद्धालु परेशान।

सात वर्षों में क्या हुआ?

वर्ष बजट स्वीकृत (₹) खर्च (₹ अनुमानित) कार्य प्रगति

2015-16 ₹50 लाख ₹20 लाख 15%,
2016-17 ₹35 लाख ₹10 लाख 10%,
2018-19 ₹30 लाख ₹15 लाख 20%,
2020-22 ₹52 लाख ₹37 लाख 25%,
कुल ₹1.87 करोड़ ₹87 लाख, (अनुमानित) कागजों में 70%, जमीन पर सिर्फ 30% है।

स्थानीय लोगों का आरोप है कि पांचाल घाट के निर्माण में ठेकेदारों और अधिकारियों की मिलीभगत से भारी कमीशनखोरी हुई। किसी ने समय पर निरीक्षण नहीं किया, और न ही निर्माण कार्य की गुणवत्ता की जांच।

नाम ना छापने की शर्त पर एक पूर्व इंजीनियर ने बताया:

“काम का टेंडर हर साल बढ़ाया गया लेकिन न फंड का सही इस्तेमाल हुआ और न ही कार्य पूरा। अधिकारी केवल फ़ाइलों पर संतुष्ट हैं।”

हर वर्ष लाखों लोग रामनगरिया मेला और कार्तिक पूर्णिमा स्नान के लिए यहां पहुंचते हैं। लेकिन उन्हें गंदगी, कीचड़, असुविधा और खतरे के बीच गंगा में स्नान करना पड़ता है।

कल्पवास में आए संतों ने बताया:

“हम गंगा किनारे झोपड़ी बनाकर तपस्या करते हैं, पर इस हालत में कोई व्यवस्था नहीं है। प्रशासन आता है, फोटो खिंचवाता है और चला जाता है।”

अधूरे निर्माण के कारण घाट के आसपास जल निकासी नहीं है, जिससे गंदा पानी गंगा में जा रहा है। स्वच्छ गंगा का दावा करने वाली सरकार की यह अनदेखी अब पर्यावरणीय संकट में बदलती जा रही है।

रीता देवी, ने कहा – “8 साल से सुन रहे हैं कि घाट बन रहा है, लेकिन आज भी वही हालत है। साफ पानी नहीं, सीढ़ियां टूटी, कोई सुविधा नहीं।”राहुल शुक्ला, सामाजिक कार्यकर्ता – “नमामि गंगे के नाम पर करोड़ों खर्च हो गए लेकिन फर्रुखाबाद को सिर्फ झूठे वादे मिले। ये सीधा भ्रष्टाचार का मामला है।”

जनता ने मांग क़ी: 

पांचाल घाट निर्माण की सीबीआई या सतर्कता जांच हो,
जिम्मेदार अफसरों व ठेकेदारों पर एफआईआर दर्ज हो,
कार्य को निर्धारित समय में पूरा कर श्रद्धालुओं को समर्पित किया जाए
घाट को धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया जाए,
पांचाल घाट की दुर्दशा सिर्फ एक घाट की कहानी नहीं है, 

यह प्रशासनिक सुस्ती, व्यवस्था की विफलता और लोक आस्था की उपेक्षा का जीवंत उदाहरण है। नमामि गंगे जैसी योजनाएं अगर कागजों से बाहर नहीं निकलतीं, तो न गंगा बचेगी, न हमारी संस्कृति।

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