प्रो.(डा.राजकुमार)
भारत का संविधान (Constitution) न केवल एक कानूनी दस्तावेज़ है, बल्कि यह भारतीय समाज, संस्कृति और सभ्यता का जीवंत प्रतीक है। यह भ्रांति कि हमारा संविधान पाश्चात्य दुनिया से लिया गया है, गलत है। डॉ. भीमराव अंबेडकर, जिन्हें भारतीय संविधान का मुख्य शिल्पकार कहा जाता है, ने इसे भारतीय परंपरा, दर्शन और सामाजिक संरचना के अनुरूप बनाया। उन्होंने आधुनिक और प्राचीन दोनों दृष्टिकोणों का अध्ययन कर इसे तैयार किया।
डॉ. अंबेडकर ने संविधान निर्माण के दौरान कई देशों के संविधानों का अध्ययन किया, लेकिन इसे भारतीय जरूरतों के अनुसार ढाला।
कनाडा: संघीय ढांचा और केंद्र व राज्यों के बीच शक्तियों का बंटवारा।
आयरलैंड: नीति-निर्देशक सिद्धांत, जो समाज और सरकार के लिए मार्गदर्शक हैं।
ब्रिटेन: संसदीय प्रणाली, जिसमें कार्यपालिका विधायिका के प्रति जवाबदेह है।
अमेरिका: मौलिक अधिकार और न्यायपालिका की स्वतंत्रता।
ऑस्ट्रेलिया: समवर्ती सूची का विचार, जिसमें केंद्र और राज्य दोनों को कानून बनाने का अधिकार है।
इन देशों से प्रेरणा लेते हुए भी संविधान की जड़ें भारतीय दर्शन और परंपराओं में गहराई से समाहित हैं।
डॉ. अंबेडकर ने स्पष्ट किया था कि भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली की नींव भगवान बुद्ध के संघ से प्रेरित है। बुद्ध के संघ में लोकतंत्र का आदर्श रूप देखा जा सकता है। बुद्ध के संघ में सभी सदस्यों को समान अधिकार थे। सभी निर्णय सर्वसम्मति या वोटिंग के माध्यम से होते थे। निर्णय लेने की प्रक्रिया में वरिष्ठ व्यक्तित्व जैसे कश्यप ऋषि, सारिपुत्र, मोधगलाना और आनंद शामिल होते थे।
वोटिंग गुप्त और खुली दोनों रूपों में होती थी, जिसे “छंदक” और “सलाका” कहा जाता था।
डॉ. अंबेडकर ने इस व्यवस्था को भारतीय संविधान में पुनः स्थापित किया। उन्होंने इसे पाश्चात्य जगत के संविधानों के माध्यम से आधुनिक संदर्भ में लागू किया। दिल्ली विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में डॉक्टर अंबेडकर ने कहा था कि हमारी प्रजातांत्रिक प्रणाली भगवान बुद्ध के संग से आई है।
भारतीय संविधान न केवल आधुनिक संवैधानिक सिद्धांतों को अपनाता है, बल्कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति के मूल्यों को संरक्षित करता है।
यह सिद्धांत बुद्ध के “बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय” और लोकंतुकम्याए दर्शन पर आधारित है। संविधान का हर प्रावधान समाज के सभी वर्गों की भलाई सुनिश्चित करता है।
संविधान किसी विशेष धर्म का पक्ष नहीं लेता। यह सभी धर्मों के प्रति समानता और सम्मान का भाव रखता है।
संविधान भारत को एक संघीय राष्ट्र के रूप में परिभाषित करता है। राज्यों को शांति काल में अपने कानून बनाने और विकास का मार्ग चुनने की स्वतंत्रता है।
संविधान सामाजिक और आर्थिक समानता पर बल देता है, जो प्राचीन भारतीय परंपराओं और बौद्ध सिद्धांतों में निहित है। बुद्ध के काल में ही संसदीय प्रणाली थी,जो भारत का ही हिस्सा थी,तब भी आज की तरह बिल आते थे, बुद्ध के समय भी पहले से एजेंडा होते थे और अध्यक्ष की अनुमति से चर्चा के बाद फैसले होते थे।उनके संघ में आज जैसी बैठने की,वोटिंग की व्यवस्था थी। बुद्ध की संसदीय प्रणाली और भारत की संस्कृति जो बाहर चली है थी उसे बाबा साहब बापस लाएं ।
डॉ. अंबेडकर ने बुद्ध के लोकतांत्रिक संघ की विलुप्त प्रणाली को पुनर्जीवित किया और इसे आधुनिक भारत के संविधान में शामिल किया। यह संविधान भारतीय सभ्यता, जो कभी विदेशों में खो गई थी, को वापस लाने का प्रयास है।
भारतीय संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है, जिसमें 395 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियाँ और 22 भाग शामिल हैं।
संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई, जिसमें 207 सदस्य थे।
संविधान को तैयार करने में 2 साल, 11 महीने, और 18 दिन का समय लगा और लगभग 64 लाख रुपये की लागत आई।
संविधान की मूल प्रति हस्तलिखित है और इसे भारतीय संस्कृति के प्रतीक रूपों से सजाया गया है।
संविधान को 26 नवंबर 1949 को अंगीकृत किया गया और 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया।
संविधान प्रत्येक नागरिक को मतदान और समान अवसर का अधिकार देता है।
हर व्यक्ति को शिक्षा, समानता, धर्म, और स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है।
सामाजिक और आर्थिक कल्याण सुनिश्चित करने के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत शामिल हैं।
संविधान समय-समय पर आवश्यकतानुसार संशोधित करने योग्य है, जिससे यह आधुनिक जरूरतों के साथ पार्लियामेंट ने आपसी समर्थन से करने की व्यवस्था दी।
भारतीय संविधान पाश्चात्य देशों की नकल नहीं, बल्कि भारतीय परंपरा, बौद्ध दर्शन और आधुनिक संवैधानिक प्रावधानों का उत्कृष्ट मिश्रण है। यह न केवल देश की प्राण व्यवस्था है, बल्कि भारतीय समाज के हर वर्ग के लिए समानता, स्वतंत्रता और न्याय सुनिश्चित करता है।
डॉ. अंबेडकर ने जो संविधान हमें दिया, वह केवल एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता और लोकतंत्र का जीवंत उदाहरण है।