लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार (Uttar Pradesh Government) ने शिक्षकों के तबादले की व्यवस्था में बड़ा बदलाव करते हुए आगामी सत्र 2026-27 से एडेड इंटर कॉलेजों (aided inter colleges) में तबादलों की प्रक्रिया को पूरी तरह ऑनलाइन करने का निर्णय लिया है। सरकार की मंशा है कि तबादलों (transfers) की प्रक्रिया पारदर्शी, सुविधाजनक और समयबद्ध हो। इसी को ध्यान में रखते हुए माध्यमिक शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार की ओर से विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं, जिसमें न केवल प्रक्रिया को डिजिटल किया गया है, बल्कि तबादलों के लिए मानक और वरीयताओं को भी स्पष्ट रूप से तय कर दिया गया है।
नई व्यवस्था के तहत शिक्षक ऑनलाइन माध्यम से उन विद्यालयों का चयन कर सकेंगे, जहां पद रिक्त हैं। इस संबंध में विद्यालयों के रिक्त पदों का विवरण निदेशालय की वेबसाइट पर 31 जनवरी 2026 तक अपलोड कर दिया जाएगा। शिक्षक वरीयता के आधार पर अधिकतम पांच विद्यालयों का विकल्प चुन सकेंगे।
शासनादेश के अनुसार तबादले में उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी जो गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं, जिनके पति या पत्नी सेना या अर्द्धसैनिक बल में हैं, जो नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तैनात हैं, या जिनके पति-पत्नी अलग-अलग जिलों में कार्यरत हैं। इसके अलावा जिन शिक्षकों की आयु 31 मार्च को 58 वर्ष पूरी हो चुकी होगी, उन्हें भी वरीयता मिलेगी। एक ही विद्यालय के एक से अधिक शिक्षक तबादले के लिए पात्र होने की स्थिति में आयु के आधार पर वरीयता तय की जाएगी। किसी भी संस्था से 20 प्रतिशत से अधिक शिक्षकों का तबादला नहीं किया जाएगा।
सरकार ने यह भी साफ किया है कि राज्य के आठ महत्वाकांक्षी जिलों—सोनभद्र, चंदौली, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, फतेहपुर, चित्रकूट और सिद्धार्थनगर—से शिक्षकों का सामान्य तबादला अन्य जिलों में नहीं होगा। केवल परस्पर सहमति के आधार पर ही तबादले की अनुमति दी जाएगी। इसके साथ ही अन्य सभी तबादलों में भी परस्पर सहमति वाले मामलों को प्राथमिकता देने की बात कही गई है।
सरकार का यह फैसला ऐसे समय में आया है जब इस सत्र में की गई ऑफलाइन तबादला प्रक्रिया अभी तक अटकी हुई है। लगभग 1200 शिक्षक तबादले की राह देख रहे हैं, जिनमें से कुछ ने माध्यमिक शिक्षा निदेशालय पर धरना दे रखा है, जबकि अन्य ने शिक्षा मंत्री से मिलकर मामले के समाधान की मांग की है। नई नीति को लागू करने के पीछे सरकार की मंशा शिक्षकों के तबादलों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है। यह फैसला न केवल शिक्षकों की वर्षों पुरानी शिकायतों को दूर करने की दिशा में एक अहम कदम है, बल्कि इससे स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और सुचारु प्रशासन की उम्मीद भी बढ़ गई है।