– सिस्टम की चालाकी ने फिर खोली मनरेगा की पोल
फर्रुखाबाद। सरकार की महात्वाकांक्षी ग्रामीण रोजगार योजना मनरेगा (MGNREGA) का असल चेहरा एक बार फिर जिले में बारिश की कुछ बूंदों में भीगकर सामने आ गया है। बीती रात से लगातार रुक-रुक कर हो रही बारिश ने जिले के खेत-खलिहान, चक रोड और ग्रामीण संपर्क मार्गों को तालाब बना दिया। मगर प्रशासनिक पोर्टल पर नज़ारा कुछ और ही दिखा — जिले के सातों विकासखंडों में 521 मज़दूरों की ‘ऑनलाइन उपस्थिति’ दर्ज कर दी गई।
बारिश रुकी नहीं, मगर काम चलता रहा… सिर्फ कागज़ों पर
सोमवार सुबह 11 बजे तक बारिश की रफ्तार कम नहीं हुई थी। ज़मीनी सच्चाई ये है कि अधिकांश गाँवों में हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि आम लोगों का घर से निकलना भी खतरे से खाली नहीं। लेकिन सरकारी आंकड़ों के अनुसार सैकड़ों मजदूर उसी जलभराव में ‘मजदूरी कर रहे हैं’।
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि एक मज़दूर की तस्वीर पानी से भरे खेत में खड़े होकर अपलोड की गई, ताकि यह संदेश जाए कि मनरेगा का कार्य बारिश में भी जारी है। न मज़दूर के कपड़े गीले, न हाथ में फावड़ा, न मिट्टी से सने जूते — मगर मज़दूरी चालू है।
“फोटो हाजिर है, मज़दूर नहीं” जनता ने किया तंज
गांव वालों का कहना है कि कई इलाकों में तो गलियों से निकलना मुश्किल है, तो मजदूर खेत में जाकर कैसे काम कर रहे? कुछ लोगों ने चुटकी लेते हुए कहा, “मौसम विभाग को भी नहीं पता कि ये फोटो बारिश को चीरते हुए कैसे सामने आया।
जब इस मामले पर जिले के मनरेगा प्रभारी कपिल कुमार से सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “मामले की गंभीरता से जांच की जाएगी। यदि फर्जीवाड़ा पाया गया तो जिम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्रवाई होगी।” हालांकि अब तक कोई ठोस कार्रवाई की बात सामने नहीं आई है।
क्या सिस्टम की यह चालाकी मनरेगा को मज़ाक बना रही है?
यह पहला मौका नहीं है जब मनरेगा के कामों को लेकर सवाल उठे हों। मगर इस बार तो प्रकृति ने खुद गवाही दी है कि ज़मीनी स्तर पर कोई काम नहीं हो रहा। फिर भी, पोर्टल पर काम की मस्टररोल भरी जा रही है, जिससे यह अंदेशा और गहरा हो जाता है कि यह भ्रष्टाचार सिर्फ ब्लॉक स्तर तक सीमित नहीं, बल्कि इसकी जड़ें ऊपर तक फैली हैं।
स्थानीय ग्रामीणों ने डीएम से शिकायत कर मनरेगा के कार्यों की निष्पक्ष जांच की माँग की है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर इस तरह ऑनलाइन फर्जी हाजिरी लगती रही, तो जिनके लिए योजना बनी थी, उन्हें कभी उसका लाभ नहीं मिलेगा।
मनरेगा की यह ‘डिजिटल मजदूरी’ एक ऐसा आईना बनकर सामने आई है, जो सरकारी व्यवस्था के उस चेहरे को दिखा रही है, जिसमें जमीनी सच्चाई को नजरअंदाज कर सिस्टम को सिर्फ फॉर्मेलिटी के आधार पर चलाया जा रहा है। अब देखना यह है कि प्रशासन इस फर्जीवाड़े पर क्या कार्रवाई करता है या इसे भी बीते मौसम के बहाव में बहा दिया जाएगा।