लखनऊ में 13 साल के छात्र ने फ्री फायर की लत में गवाई जान, 14 लाख रुपये उड़ाने के बाद लगाई फांसी
मोहनलालगंज के धनुवासाड़ गांव की यह घटना पूरे समाज को झकझोर देने वाली है। महज 13 साल का छात्र यश, जिसने अभी जीवन की असली शुरुआत भी नहीं की थी, ऑनलाइन गेम फ्री फायर की लत में फंसकर अपनी जान गंवा बैठा। यश ने अपने पिता के बैंक खाते से 14 लाख रुपये खर्च कर दिए और रकम हार जाने के बाद डर और तनाव में फांसी लगा ली।
यह घटना केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि अभिभावकों, शिक्षा व्यवस्था और सरकार के लिए बड़ी चेतावनी है।
ऑनलाइन गेमिंग अब केवल मनोरंजन का साधन नहीं रह गई है। यह मानसिक और आर्थिक दबाव का बड़ा कारण बन चुकी है। कंपनियां इन गेम्स को इस तरह डिजाइन करती हैं कि खिलाड़ी बार-बार खेलने के लिए मजबूर हो। नतीजा यह है कि बच्चे धीरे-धीरे वास्तविक जीवन से कटने लगते हैं। यश भी इसी खतरनाक लत का शिकार हुआ।
यश की मौत यह सवाल खड़ा करती है कि आखिर परिवार को इतनी बड़ी रकम की निकासी का पता क्यों नहीं चला? बच्चों की मोबाइल गतिविधियों और ऑनलाइन लेन-देन पर नजर रखना हर माता-पिता का कर्तव्य है।
बच्चों से संवाद की कमी भी इस त्रासदी का कारण है। यदि बच्चे को अपने डर और परेशानी को परिवार से साझा करने का साहस होता, तो शायद यह घटना टल सकती थी।
आज स्कूलों और शिक्षण संस्थानों की जिम्मेदारी केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं है। बच्चों को डिजिटल साक्षरता, ऑनलाइन गेम्स की लत के खतरे और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूक करना जरूरी है।
समाज को भी बच्चों के लिए खेल, सांस्कृतिक और रचनात्मक गतिविधियों के अवसर बढ़ाने होंगे, ताकि वे केवल मोबाइल की दुनिया तक सीमित न रहें।
भारत में ऑनलाइन गेम्स पर अब तक ठोस नियंत्रण नहीं है। सबसे बड़ी खामी यह है कि नाबालिग बच्चों से भी सीधे पैसों का लेन-देन हो रहा है। यह व्यवस्था बेहद खतरनाक है।
सरकार को चाहिए कि,
ऑनलाइन गेम्स के लिए उम्र सीमा तय करे।
नाबालिगों के आर्थिक लेन-देन पर रोक लगाए।
गेमिंग कंपनियों पर निगरानी रखे और उनके खिलाफ सख्त कानून बनाए।
कई देशों ने इस दिशा में कदम उठाए हैं। भारत को भी देर किए बिना कड़े फैसले लेने होंगे।
यश की मौत एक चेतावनी है। तकनीक हमारे जीवन का हिस्सा है, लेकिन उस पर नियंत्रण रखना हमारी जिम्मेदारी है। बच्चों को यह समझाना होगा कि हार-जीत सिर्फ खेल का हिस्सा है, जीवन का नहीं।
आज जरूरत है कि हर अभिभावक अपने बच्चों पर नजर रखे, स्कूल और समाज उन्हें सही दिशा दें और सरकार ठोस कदम उठाए। क्योंकि एक भी बच्चे की जान, करोड़ों तकनीकी सुविधाओं से कहीं ज्यादा अनमोल है।






