भारत के लोकतंत्र को नई दिशा देने और चुनावी प्रक्रिया को सुगम बनाने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “वन नेशन, वन इलेक्शन” (One Nation One Election) के विचार को आखिरकार केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा 191 दिनों के शोध और 18,626 पन्नों की रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपे जाने के बाद यह विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र में पेश होने को तैयार है। यह विधेयक अपने साथ कई संभावनाएं और विवाद लेकर आया है।
एक राष्ट्र, एक चुनाव: क्या है विचार और इतिहास?
वन नेशन, वन इलेक्शन का मुख्य उद्देश्य लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना है। 1951 से 1967 तक भारत में ऐसा ही हुआ करता था। 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए गए थे। हालांकि, 1968-69 में कुछ विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने और चौथी लोकसभा की समयपूर्व समाप्ति के कारण यह चक्र बाधित हो गया।
तब से लेकर अब तक हर साल कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होते हैं, जिससे सरकारी कार्यों, सार्वजनिक जीवन और वित्तीय संसाधनों पर भारी दबाव पड़ता है। बार-बार चुनाव के कारण सरकारी तंत्र का ध्यान विकास कार्यों से हटकर चुनावी गतिविधियों पर केंद्रित हो जाता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2019 से इस विचार के प्रबल समर्थक रहे हैं। उन्होंने इसे “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” के अपने सपने का हिस्सा बताया है। 2015 में संसदीय स्थायी समिति, 2017 में नीति आयोग और 2018 में विधि आयोग ने भी इस विचार का समर्थन किया था।
वन नेशन, वन इलेक्शन पर देश की 62 राजनीतिक पार्टियों से संपर्क किया गया, जिनमें से 47 ने जवाब दिया। इनमें 32 पार्टियों ने इसका समर्थन किया, जबकि 15 ने विरोध किया। भाजपा, एआईएडीएमके, नेशनल पीपल्स पार्टी और शिरोमणि अकाली दल ने समर्थन जताया। दूसरी ओर, कांग्रेस, आप, बसपा और सीपीआई-एम जैसे दलों ने इसका पुरजोर विरोध किया।
लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने से चुनावी खर्च और संसाधनों की बचत होगी। बार-बार चुनावों के कारण लागू आचार संहिता से विकास कार्य प्रभावित होते हैं। एक साथ चुनाव से यह समस्या खत्म हो जाएगी। हर छह महीने में चुनाव कराने के बजाय एक बार चुनाव कराने से केंद्रीय और राज्य सुरक्षा बलों का अधिक प्रभावी उपयोग संभव होगा। बार-बार चुनाव प्रचार से जनजीवन में होने वाले व्यवधान, जैसे ट्रैफिक समस्या और ध्वनि प्रदूषण, को रोका जा सकेगा।क्षेत्रीय पार्टियों का कमजोर होना: आलोचकों का मानना है कि एक साथ चुनाव में मतदाता लोकसभा और विधानसभा दोनों के लिए एक ही पार्टी को वोट दे सकते हैं। इससे क्षेत्रीय पार्टियां कमजोर हो सकती हैं। राज्य स्तर के मुद्दों पर राष्ट्रीय राजनीति हावी हो सकती है, जिससे स्थानीय समस्याएं उपेक्षित रह सकती हैं। लोकसभा और विधानसभा का कार्यकाल भिन्न-भिन्न कारणों से समाप्त हो सकता है। इसे समकालिक करना संवैधानिक और व्यावहारिक रूप से कठिन है। लोकतांत्रिक जवाबदेही का नुकसान: बार-बार चुनाव होने से नेताओं को जनता के प्रति जवाबदेह रहना पड़ता है। एक साथ चुनाव से यह जवाबदेही कमजोर हो सकती है।
भारत का संविधान अनुच्छेद 83 और 172 के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल का प्रावधान करता है। मौजूदा संवैधानिक ढांचे में लोकसभा और विधानसभाओं के कार्यकाल को बढ़ाना या घटाना केवल आपातकालीन स्थिति में ही संभव है।
वन नेशन, वन इलेक्शन को लागू करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 83, 85, 172, 174 और 356 में संशोधन करना होगा। इसके अलावा, कुछ विधानसभाओं के कार्यकाल को बढ़ाना या कम करना पड़ेगा ताकि उनका चुनाव लोकसभा के साथ कराया जा सके।
चुनाव आयोग को इस योजना को लागू करने के लिए पर्याप्त संसाधनों की जरूरत होगी। वर्तमान में चुनाव आयोग के पास 20 लाख ईवीएम हैं। एक साथ चुनाव के लिए 60 लाख मशीनों की आवश्यकता होगी, जिसे तैयार करने में 3-4 साल लग सकते हैं।
दुनिया के कई देशों में एक साथ चुनाव का प्रचलन है। दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, ब्राजील और कोलंबिया में राष्ट्रीय और प्रांतीय चुनाव एक साथ होते हैं। हालांकि, भारत की विविधता, जनसंख्या और जटिल संघीय संरचना इसे अलग बनाती है। भारत में चुनाव आयोग और सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि चुनावी प्रक्रिया पारदर्शी, निष्पक्ष और समावेशी हो। यह भी जरूरी है कि क्षेत्रीय और राष्ट्रीय मुद्दों के बीच संतुलन बनाया जाए।
वन नेशन, वन इलेक्शन: क्या यह संभव है?
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सभी राजनीतिक दल इस पर सहमत हों, तो यह 2029 तक संभव हो सकता है। हालांकि, इसके लिए व्यापक तैयारी, संसाधनों की उपलब्धता और संवैधानिक संशोधन की जरूरत होगी।
वन नेशन, वन इलेक्शन से भारत को चुनावी खर्च में कमी, प्रशासनिक दक्षता और सुशासन जैसे लाभ मिल सकते हैं। लेकिन, इसके लिए जरूरी है कि यह विचार राजनीति से ऊपर उठकर लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करे।
वन नेशन, वन इलेक्शन भारत के लोकतंत्र के लिए एक बड़ा कदम हो सकता है। यह न केवल चुनावी प्रक्रिया को सुगम बनाएगा बल्कि सरकारी तंत्र को अधिक प्रभावी बनाएगा। हालांकि, इसे लागू करने से पहले सभी राजनीतिक दलों, विशेषज्ञों और जनता के साथ व्यापक चर्चा होनी चाहिए।
लोकतंत्र की सफलता उसकी विविधता और जवाबदेही में निहित है। वन नेशन, वन इलेक्शन को अपनाते समय यह सुनिश्चित करना होगा कि यह हमारे संघीय ढांचे और क्षेत्रीय विविधताओं को कमजोर न करे। यह कदम तभी सफल होगा जब यह भारत के लोकतांत्रिक आदर्शों को और मजबूत बनाए।