शिक्षा किसी भी समाज के विकास की नींव होती है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में शिक्षा प्रणाली में असमानता ने सामाजिक और आर्थिक खाई को और चौड़ा कर दिया है। गरीब और अमीर के बीच शिक्षा की गुणवत्ता, संसाधनों की उपलब्धता, और अवसरों की समानता में भारी अंतर है। “वन नेशन, वन एजुकेशन” (One Nation One Education) की नीति इस असमानता को खत्म करने और सभी को समान शिक्षा व समान सम्मान प्रदान करने का प्रयास है।
मौजूदा शिक्षा प्रणाली की स्थिति
भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली असमानता से भरी है। ग्रामीण क्षेत्रों में 65% छात्र सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं, जहां संसाधनों की कमी और शिक्षकों की अनुपस्थिति प्रमुख समस्या है। वहीं शहरी क्षेत्र में निजी स्कूलों का दबदबा है, जो बेहतर सुविधाएं और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करते हैं। निजी स्कूलों में वार्षिक शुल्क औसतन ₹50,000 है, जबकि सरकारी स्कूलों में शिक्षा लगभग मुफ्त है। गरीब परिवार निजी स्कूलों की पहुंच से बाहर हैं। अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा को बेहतर माना जाता है, जबकि हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ने वाले छात्रों को अवसरों में कमी का सामना करना पड़ता है। एक समान शिक्षा प्रणाली से छात्रों के बीच आर्थिक, सामाजिक और क्षेत्रीय असमानता खत्म होगी। एक समान पाठ्यक्रम और शिक्षा प्रणाली से छात्रों में राष्ट्र के प्रति एकता और समर्पण की भावना बढ़ेगी। सभी स्कूलों में समान संसाधन और सुविधाएं उपलब्ध कराने से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित होगी। यह नीति पूरे देश में एक समान पाठ्यक्रम, परीक्षा प्रणाली, और शिक्षा के माध्यम का प्रस्ताव रखती है। इसमें निम्नलिखित पहल शामिल हो सकती हैं:
एनसीईआरटी और अन्य शैक्षिक संस्थानों द्वारा एक समान पाठ्यक्रम तैयार करना। निजी और सरकारी स्कूलों को एक ही गुणवत्ता और मानकों के तहत लाना। शिक्षा को मातृभाषा में उपलब्ध कराने के साथ-साथ अंग्रेजी और हिंदी को अनिवार्य करना।
समान शिक्षा प्रणाली से सभी छात्रों को समान अवसर मिलेंगे। इससे गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले बच्चों को भी बेहतर भविष्य की राह मिलेगी। एक समान पाठ्यक्रम से प्रतियोगी परीक्षाओं में छात्रों को समान तैयारी का मौका मिलेगा।
समान शिक्षा प्रणाली से छात्रों की योग्यता और कौशल में सुधार होगा, जिससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। समान शिक्षा प्रणाली से समाज में जाति, धर्म और वर्ग आधारित भेदभाव कम होगा।
2023 में भारत की साक्षरता दर 77.7% थी, जबकि केरल जैसे राज्यों में यह 96.2% है और बिहार में मात्र 61.8%।
शिक्षा मंत्रालय की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी स्कूलों में 25% शिक्षकों के पद रिक्त हैं। निजी स्कूलों में छात्र-शिक्षक अनुपात 1:30 है, जबकि सरकारी स्कूलों में यह 1:60 तक पहुंच जाता है। ग्रामीण स्कूलों में 40% स्कूलों में शौचालय और पीने के पानी की सुविधाएं नहीं हैं।
“वन नेशन, वन एजुकेशन” को लागू करना आसान नहीं है। इसके लिए कई बाधाओं को दूर करना होगा। राज्यों और केंद्र सरकार के बीच तालमेल आवश्यक है। शिक्षा एक समवर्ती सूची का विषय है, इसलिए दोनों स्तरों पर सहमति आवश्यक होगी।
सभी स्कूलों में समान सुविधाएं और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारी निवेश की आवश्यकता है। सरकार को शिक्षा के बजट को जीडीपी के 6% तक बढ़ाना चाहिए।
भारत जैसे बहुभाषी देश में एक ही भाषा में शिक्षा देना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। क्षेत्रीय भाषाओं के साथ हिंदी और अंग्रेजी को समान महत्व देना होगा।
फिनलैंड में सभी स्कूलों में एक समान पाठ्यक्रम और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाती है। वहाँ निजी स्कूलों का अस्तित्व नहीं है। जापान ने शिक्षा में समानता लाकर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत किया है।
“वन नेशन, वन एजुकेशन” भारत को एक समान और समतामूलक समाज बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है। यह नीति न केवल शिक्षा के स्तर को ऊंचा करेगी, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास में भी योगदान देगी। इसके सफल कार्यान्वयन के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति, संसाधनों का प्रबंधन, और समाज के सभी वर्गों का सहयोग आवश्यक है।
शिक्षा को अमीर और गरीब के बीच का पुल नहीं, बल्कि समानता का आधार बनाना चाहिए। “वन नेशन, वन एजुकेशन” की नीति हर बच्चे को समान अवसर और सम्मान प्रदान करने का माध्यम बन सकती है। यह समय है कि भारत शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाए और हर नागरिक को समान अधिकार प्रदान करे।