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Tuesday, August 5, 2025

बंद कोयला खदानों में अब सूरज बोलेगा – मेरी बारी!

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Global Energy Monitor की नई रिपोर्ट में सौर ऊर्जा का 300 गीगावॉट का अपार अवसर सामने आया

अजय कुमार वर्मा

जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण की वैश्विक चुनौतियों के बीच, अब एक नई उम्मीद की किरण उभरी है — वो भी उन्हीं स्थानों से जो कभी प्रदूषण और दोहन के प्रतीक रहे हैं: कोयला खदानें। Global Energy Monitor (GEM) की नई रिपोर्ट में एक चौंकाने वाला, लेकिन उत्साहवर्धक खुलासा हुआ है — अगर बंद हो चुकी या जल्द बंद होने वाली कोयला खदानों को सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए उपयोग किया जाए, तो 300 गीगावॉट की जबरदस्त क्षमता विकसित की जा सकती है। यह क्षमता इतनी है कि इससे पूरा जर्मनी एक वर्ष तक रोशन रह सकता है।

GEM की रिपोर्ट में बताया गया है कि:

312 ओपन-पिट कोयला खदानें 2020 के बाद से बंद हो चुकी हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल 2,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक है।

यदि इन पर सोलर पैनल लगाए जाएं, तो 103 गीगावॉट बिजली का उत्पादन संभव है। 2023 से 2030 के बीच लगभग 3,700 वर्ग किमी क्षेत्र की और खदानें बंद होंगी। इन सब को मिलाकर 300 गीगावॉट की संयुक्त क्षमता हासिल की जा सकती है, जो वर्तमान वैश्विक सौर क्षमता का 15% है।

चीन इस रेस में सबसे आगे निकल चुका है। वहाँ 90 कोयला-सौर परियोजनाएँ शुरू हो चुकी हैं (14 GW), और 46 योजनाएं निर्माणाधीन हैं (9 GW)।

भारत, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, और अमेरिका भी इस बदलाव में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। GEM का मानना है कि इन देशों में नीति और इच्छाशक्ति हो, तो यह बदलाव संभव है।

सिर्फ ऊर्जा ही नहीं, यह परिवर्तन रोज़गार और पर्यावरण सुधार के लिए भी वरदान साबित हो सकता है:
2.6 लाख स्थायी नौकरियाँ, और 3.1 लाख अस्थायी/निर्माण से जुड़ी नौकरियाँ पैदा हो सकती हैं। बंद खदानों की सफाई और पुनः उपयोग, और कार्बन उत्सर्जन में भारी गिरावट संभव है।

चेंग चेंग वू, GEM के प्रोजेक्ट मैनेजर कहते हैं:

“कोयले की विरासत ज़मीन में दर्ज है, लेकिन वही ज़मीन अब जलवायु समाधान की ज़मीन बन सकती है।”

हेली डेरेस, शोधकर्ता GEM:

 “जब नई जमीनों को लेकर झगड़े हो रहे हैं, खदानों जैसी बंजर ज़मीनें क्लीन एनर्जी और क्लीन कम्युनिटी का रास्ता बन सकती हैं।”

रयान ड्रिस्कल टेट, GEM के असिस्टेंट डायरेक्टर:

 “कोयला कंपनियाँ दिवालिया होकर मज़दूरों को छोड़ जाती हैं, लेकिन वही ज़मीन सौर ऊर्जा से फिर रोशन हो सकती है — बशर्ते सरकारें सही नीतियाँ बनाएं।”

भारत में सैकड़ों छोटी-बड़ी कोयला खदानें बंद होने की कगार पर हैं। अगर सरकार और निजी क्षेत्र मिलकर इनका सौर हब में रूपांतरण करें, तो भारत की नेट ज़ीरो लक्ष्य की ओर यात्रा और तेज़ हो सकती है।
यह न सिर्फ ऊर्जा सुरक्षा, बल्कि ग्रामीण भारत में रोज़गार, विकास और पर्यावरण संरक्षण का नया अध्याय लिख सकता है।

सूर्य अब सिर्फ ऊर्जा नहीं, बदलाव का प्रतीक

जहाँ कभी ज़मीन से कोयला निकलता था, अब वहां से सूरज की रोशनी निकलेगी।
यह सिर्फ ऊर्जा की नहीं, सोच की क्रांति है।
अब सवाल ये नहीं कि “हम क्या खो रहे हैं?”
बल्कि ये है कि — हम क्या नया बना सकते हैं?

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