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Thursday, August 7, 2025

सिर्फ दूध नहीं, एक विश्वास पिलाया गया — जब जिलाधिकारी की संवेदनशीलता ने प्रशासन को मानवीय रूप दिया

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शरद कटियार

1 जून को विश्व मिल्क डे के अवसर पर फर्रुखाबाद के डॉ. राम मनोहर लोहिया संयुक्त जिला अस्पताल में जो दृश्य सामने आया, वह केवल एक औपचारिक सरकारी आयोजन भर नहीं था। यह दृश्य था – प्रशासनिक दायित्व से ऊपर उठकर संवेदनशीलता और मानवीयता के परचम को लहराने का। जिलाधिकारी आशुतोष कुमार द्विवेदी ने जब अस्पताल के वार्ड में एक मासूम बच्ची को गोद में लिया, प्यार से दूध पिलाया, फिर आत्मीयता से उसका इंटरव्यू लिया — तो यह केवल “दूध वितरण कार्यक्रम” नहीं रहा; यह एक मूक संदेश बन गया कि सरकार केवल शासन नहीं करती, अगर दिल से जुड़ जाए तो समाज को संबल भी देती है।

जब एक बच्ची के चेहरे की मुस्कान पूरे कार्यक्रम का केंद्र बन गई

आमतौर पर सरकारी कार्यक्रमों में शुष्क भाषण होते हैं, औपचारिकताएं निभाई जाती हैं, और अफसर ‘फोटो ऑप’ के लिए कुछ देर रुकते हैं। लेकिन इस आयोजन में कुछ अलग हुआ। जिलाधिकारी न सिर्फ समय पर पहुंचे, बल्कि बच्चों के बीच बैठ गए, उनके साथ संवाद किया, उन्हें उपहार दिए, दूध पिलाया और फिर अचानक एक बच्ची से पूछा — “बिटिया, कहां पढ़ती हो?” और जवाब मिला — “सरकारी स्कूल में।”
फिर जो हुआ, वह अविस्मरणीय था।

जिलाधिकारी ने हर्ष और गर्व से कहा —
“सरकारी स्कूल में पढ़ना शर्म की बात नहीं, गर्व की बात है। मैं भी सरकारी स्कूल से पढ़कर यहां तक पहुंचा हूं।”
सरकारी शिक्षा का आत्मसम्मान — जो खो गया था, उसे जिलाधिकारी ने फिर से लौटाया।

आज के समय में जब निजी स्कूलों की आक्रामक मार्केटिंग, चमचमाते यूनिफॉर्म, विदेशी भाषाओं और मोटी फीस के बीच सरकारी विद्यालयों की छवि धुंधली होती जा रही है, ऐसे में जिलाधिकारी का यह वक्तव्य एक क्रांतिकारी विचार के रूप में सामने आता है।

सरकारी स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा अब खुद को शर्मिंदा नहीं, बल्कि सक्षम और समर्थ महसूस कर सकता है। जिलाधिकारी ने न सिर्फ उसे दूध पिलाया, बल्कि उसे सम्मान पिलाया, गर्व पिलाया, और सबसे बढ़कर, एक सपने को यकीन में बदलने की प्रेरणा पिलाई।

कार्यक्रम केवल एक औपचारिकता नहीं रहा। जिलाधिकारी ने अस्पताल के विभिन्न वार्डों में जाकर मरीजों, विशेषकर वृद्धजनों से संवाद किया। उन्होंने न केवल हालचाल पूछा बल्कि बुजुर्गों के अनुभव सुने, उनकी बातों को गंभीरता से लिया और उन्हें भरोसा दिलाया कि “प्रशासन आपके साथ है, आप अकेले नहीं हैं।”

एक बुजुर्ग महिला ने भावुक होकर कहा —”बेटा, तुम तो हमारे जैसे हो… तुमसे बात कर बहुत अच्छा लगा।”
यह संवाद कोई भाषण नहीं था, यह एक संवेदनशील लोकतंत्र का सजीव चित्रण था — जहां अधिकारी और जनता के बीच कोई दीवार नहीं थी।

इस आयोजन में “नंदिनी परिवार” संस्था की प्रमुख भूमिका रही, जिसके नेतृत्व में समाजसेवी शैलेन्द्र गुप्ता ने बच्चों के लिए दूध और उपहारों की व्यवस्था की थी। लेकिन प्रशासन की सक्रिय भागीदारी ने इस प्रयास को सामान्य से विशेष बना दिया।

यह आयोजन समाज और प्रशासन के बीच सहयोग की एक मिसाल बन गया — जहाँ सरकार सिर्फ आदेश नहीं देती, बल्कि साथ खड़ी होती है।

यह एक बड़ा प्रश्न है — जिसका उत्तर आज के दौर में अक्सर छूट जाता है। क्या प्रशासन का मतलब केवल कानून-व्यवस्था, बजट पास करना, आदेश जारी करना है?

या फिर वह भी है —

जब एक जिलाधिकारी एक बच्ची की आँखों में झांककर देखता है कि उसमें कितने सपने हैं…
जब वह दूध के गिलास के साथ आत्मविश्वास भी बांटता है…
जब वह बुजुर्ग महिला की झुर्रियों में अकेलेपन की लकीरें पढ़ लेता है…
अच्छा प्रशासन वही है जो तकनीकी दक्षता के साथ मानवीय दृष्टिकोण को भी अपनाए।

इस कार्यक्रम के कई सामाजिक-मनौवैज्ञानिक प्रभाव हैं:

बच्चों के परिजनों ने बताया कि जिलाधिकारी ने जिस आत्मीयता से बच्चों से बात की, उससे उन्हें लगा कि “हमारे बच्चे भी किसी से कम नहीं।”

सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों को अब यह कहने का अधिकार मिला कि “देखो, जिलाधिकारी भी सरकारी स्कूल से पढ़कर आए हैं।”

सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को एक जीवित उदाहरण मिला — कि उनके जैसे बैकग्राउंड से आने वाला बच्चा भी जिले का सबसे बड़ा अधिकारी बन सकता है।

जनता का भरोसा तब बढ़ता है जब अफसर सिर्फ फाइलों तक सीमित नहीं रहते, बल्कि धरातल पर सक्रिय दिखते हैं।ऐसे कार्यक्रम बड़े स्तर पर बिल्कुल हो सकते हैं। बल्कि इस घटना को राज्य स्तरीय मॉडल के रूप में अपनाया जाना चाहिए। जिलाधिकारियों को केवल प्रशासनिक कार्यों तक सीमित न रखकर उन्हें सामाजिक भूमिका निभाने के लिए भी प्रेरित करना चाहिए।

अगर हर ज़िले में ऐसा ही एक दिन निकाला जाए — जिसमें प्रशासन स्कूल, अस्पताल, वृद्धाश्रम, आंगनबाड़ी आदि स्थानों पर जाकर लोगों से संवाद करे, तो न केवल जन विश्वास बढ़ेगा, बल्कि शासन व्यवस्था भी मानवीय स्वरूप ग्रहण करेगी।
दूध केवल पोषण का प्रतीक नहीं है, यह ममता, पवित्रता और विश्वास का भी प्रतीक है। और जब एक अधिकारी उसे प्रेमपूर्वक किसी मासूम को पिलाता है, तो वह केवल एक गिलास दूध नहीं पिलाता, बल्कि सपनों को सींचने का कार्य करता है।

इस आयोजन ने ‘विश्व मिल्क डे’ को केवल कैलेंडर की तारीख से हटाकर एक सामाजिक आंदोलन का स्वरूप दे दिया है।
डॉ. राम मनोहर लोहिया संयुक्त अस्पताल में हुए इस कार्यक्रम को सिर्फ एक “खबर” की तरह देखना इसकी गरिमा को कम करना होगा। यह प्रशासनिक सेवा के भीतर छुपी संवेदना, शिक्षा के सम्मान और समाज के प्रति कर्तव्यबोध का जीवंत उदाहरण है।

जिलाधिकारी आशुतोष कुमार द्विवेदी ने यह दिखा दिया कि अगर इच्छा हो, तो हर पद एक माध्यम बन सकता है — समाज को जोड़ने, सहारा देने और प्रेरणा देने का।

और यही तो है सच्चा नेतृत्व — जो केवल शासन नहीं करता, बल्कि दिलों में स्थान बनाता है।

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