फर्रुखाबाद। राजेपुर ब्लॉक में बरसों से जमे उर्दू अनुवादक लिपिक निहाल अहमद अब सरकारी ट्रांसफर और व्यक्तिगत लगाव के बीच फंसे नजर आ रहे हैं। जिलाधिकारी व मुख्य विकास अधिकारी के आदेश के बाद उनका तबादला भले ही ब्लॉक बढ़पुर में कर दिया गया हो, लेकिन निहाल बाबू का दिल आज भी राजेपुर की गलियों में ही अटका है।
बताते हैं कि निहाल अहमद साहब का प्रभाव और पहुंच राजेपुर में कुछ खास ही किस्म की थी प्रधानों और ठेकेदारों से कमीशन वसूली, सचिवों से त्योहारों पर चंदा उगाही, और नेताओं को खुश रखने की कला में वो माहिर थे। बढ़पुर ब्लॉक शायद उनके लिए बहुत छोटा साबित हो गया, इसलिए तबादले के बावजूद राजेपुर से कार्यमुक्त नहीं हो रहे थे।
यूथ इंडिया ने जब इस मामले को प्रमुखता से उठाया, तब कहीं जाकर उन्होंने कार्यमुक्ति की औपचारिकता पूरी की, मगर ब्लॉक आना जाना नहीं छोड़ा। हालात तो ऐसे हैं कि मुख्यमंत्री के लाइव टेलीकास्ट कार्यक्रम में भी वे राजेपुर ब्लॉक में हाजिर देखे गए इस पर अधिकारियों ने उन्हें कड़ी फटकार भी लगाई।
सबसे दिलचस्प बात ये है कि आज तक निहाल बाबू ने राजेपुर ब्लॉक के आईजीआरएस पटल का कंट्रोल नहीं छोड़ा, जबकि वे वहां से स्थानांतरित हो चुके हैं। उनके करीबी बताते हैं कि साहब का पैसा ऊपर तक जमा है, बस अब दोबारा कुर्सी मिलने की देर है। सूत्रों के अनुसार, निहाल बाबू इन दिनों विकास भवन की परिक्रमा कर रहे हैं, नेताओं से लेकर अफसरों तक की चरण वंदना में लगे हुए हैं, ताकि एक बार फिर से राजेपुर राज की वापसी हो सके।
सवाल यह है कि जब तबादला हो गया, कार्यमुक्ति हो गई, तो अब भी राजेपुर में क्या कर रहे हैं निहाल बाबू?क्या वाकई सरकारी आदेशों से ऊपर है इनकी सेटिंग की सत्ता?
यूथ इंडिया की नजरें आगे भी रहेंगी इस “बिछड़े बाबू” पर, जिनका दिल कहीं और है, मगर कागज कहीं और बताते हैं