फर्रुखाबाद/ कानपुर: वक्फ संपत्ति घोटाले और फर्जी मुकदमों के जरिए राहत पाने की कोशिश कर रहे न्यूज चैनल मालिक (News channel owner) व अधिवक्ता अखिलेश दुबे (lawyer Akhilesh Dubey) को न्यायालय से कोई राहत नहीं मिल सकी है। जिला जज की अदालत ने लंबी बहस के बाद उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी। अभियोजन पक्ष ने अदालत में ठोस सबूत पेश करते हुए बताया कि अखिलेश दुबे ने वक्फ संपत्ति की खरीद-बिक्री में भारी हेराफेरी की और जायदाद की कमाई में गैरकानूनी हिस्सेदारी ली। कोर्ट ने अभियोजन की दलीलों को पर्याप्त मानते हुए कहा कि यह मामला गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है।
जानकारी के अनुसार, दुबे के खिलाफ बेकनगंज थाने में धोखाधड़ी, जालसाजी और वक्फ संपत्ति के दुरुपयोग से संबंधित कई आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि “प्रथम दृष्टया सबूत आरोपी की संलिप्तता को स्पष्ट दर्शाते हैं, अतः न्यायिक हिरासत जारी रखी जाए।” अखिलेश दुबे की ओर से पेश अधिवक्ताओं ने खराब सेहत और झूठे मामलों का हवाला देते हुए जमानत की गुहार लगाई थी, मगर अदालत ने इसे “तथ्यों से परे बहानेबाजी” बताते हुए सिरे से खारिज कर दिया।
अवधेश मिश्रा: कानूनी पेशे में ‘काला अध्याय’ बनता दूसरा चेहरा
कानपुर के अखिलेश दुबे का मामला फतेहगढ़ के अवधेश मिश्रा की याद दिलाता है — जो अपने काले कारनामों और कानूनी पेशे में भ्रष्ट आचरण के लिए कुख्यात रहा है। अवधेश मिश्रा को भी क्षेत्र में “बलात्कार व फर्जी मुकदमों का स्पेशलिस्ट वकील” कहा जाता है। उसके खिलाफ कई आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं, परंतु राजनीतिक संरक्षण और अपने शातिर नेटवर्क के बल पर वह लंबे समय तक बचता रहा। अखिलेश दुबे की तरह ही अवधेश मिश्रा ने भी दलाली, ब्लैकमेलिंग और झूठे मुकदमों के जरिये कानपुर, आगरा और फर्रुखाबाद में बेशुमार संपत्ति अर्जित की।
जहाँ दुबे ने वक्फ संपत्ति के नाम पर कानून को धता बताते हुए जायदाद का साम्राज्य खड़ा किया, वहीं अवधेश मिश्रा ने कानूनी पेशे की आड़ लेकर निर्दोष लोगों को फंसाने, फर्जी मुकदमों से ब्लैकमेलिंग करने और दलाली तंत्र खड़ा करने में अपनी पहचान बनाई। दोनों ही अधिवक्ताओं का मॉडस ऑपरेण्डी एक जैसा रहा — कानून की किताब का उपयोग न्याय के लिए नहीं, बल्कि अपराध के संरक्षण और निजी लाभ के लिए किया गया।
कानपुर के अखिलेश दुबे की तरह फतेहगढ़ के अवधेश मिश्रा का साम्राज्य भी कानूनी चालों, झूठे मुकदमों और भय के माहौल पर टिका था। लेकिन वक्त ने दोनों को एक ही मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया — जहाँ कानून ने उन्हें उनके कर्मों का आईना दिखा दिया।
“पत्रकारिता और वकालत समाज के दो सबसे पवित्र स्तंभ हैं। जब यही पेशे अपराध का औजार बन जाएं, तो न्याय व्यवस्था की आत्मा घायल होती है। अखिलेश दुबे और अवधेश मिश्रा जैसे लोगों की गिरफ्त कानून के प्रति जनता के विश्वास को और मज़बूत करेगी।”


