उत्तर प्रदेश की राजनीति में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) अब न केवल संख्या में महत्वपूर्ण है, बल्कि सत्ता के समीकरणों में भी निर्णायक भूमिका निभा रहा है। ऐसे समय में जब कई ओबीसी नेता अपने सामाजिक आधार से कटते जा रहे हैं, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य एक अपवाद के रूप में उभर रहे हैं। उनका नेतृत्व न केवल उनके कार्यक्षेत्र तक सीमित है, बल्कि वह पिछड़े वर्ग—विशेषकर कुर्मी, शाक्य और लोधी समाज—के भीतर एक नई उम्मीद का प्रतीक बन चुके हैं।
केशव प्रसाद मौर्य का राजनीतिक सफर किसी प्रेरक गाथा से कम नहीं। बेहद साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि से आने वाले मौर्य ने हिंदू संगठनों में सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में अपने कदम रखे और धीरे-धीरे जनसंघर्ष के बूते प्रदेश के शीर्ष पदों तक पहुंचे। यह उनकी मेहनत, निष्ठा और जनसरोकारों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
आज जब कई ओबीसी नेता सत्ता में होते हुए भी अपने ही समुदाय के लोगों से संवाद से कतराते हैं, केशव मौर्य ठीक विपरीत राह चलते हैं। वे निरंतर जनसम्पर्क बनाए रखते हैं, जनभावनाओं को समझते हैं और उन्हें नीति निर्माण में स्थान दिलाने का प्रयास करते हैं। उनके व्यक्तित्व में न तो अहंकार है और न ही सत्ता का दिखावा—बल्कि एक सच्चा जननायक बनने की ईमानदार कोशिश झलकती है।
उनकी नेतृत्व शैली स्पष्ट और संवादधर्मी है। वे न सिर्फ मंचों से बोलते हैं, बल्कि गांव-कस्बों की गलियों में लोगों की बात सुनते हुए दिखते हैं। उनकी भाषा आम आदमी की भाषा है और उनका व्यवहार कार्यकर्ता के समान सरल। यही गुण उन्हें भाजपा के अन्य ओबीसी नेताओं से अलग करता है।
2027 के चुनावी परिदृश्य की दृष्टि से देखें तो भाजपा के लिए पिछड़े वर्ग का समर्थन निर्णायक साबित हो सकता है। ऐसे में केशव मौर्य की भूमिका को सीमित रखना रणनीतिक भूल होगी। कुर्मी, शाक्य और लोधी समाज में जो विश्वास उन्होंने अर्जित किया है, वह किसी भी दल के लिए स्वाभाविक समर्थन नहीं, बल्कि वर्षों की मेहनत का परिणाम है। यह विश्वास केवल जातीय पहचान के कारण नहीं, बल्कि निरंतर जनसेवा, सादगी और संवाद के बल पर बना है।
आज जब राजनीति में दिखावे और भाषणबाज़ी का बोलबाला है, केशव मौर्य ‘काम के नेता’ के रूप में खड़े नजर आते हैं। विकास योजनाओं की मॉनिटरिंग हो या विपक्ष को सटीक जवाब देना—वह हर मोर्चे पर सक्रिय दिखते हैं। खासकर युवाओं और शिक्षित वर्ग में उनके प्रति आकर्षण तेजी से बढ़ा है। शिक्षकों, किसानों और युवा कार्यकर्ताओं में उनकी लोकप्रियता भाजपा को नए सामाजिक वर्गों में प्रवेश दिला सकती है।
अब समय है कि भाजपा नेतृत्व केशव प्रसाद मौर्य को केवल एक सहायक भूमिका में न रखे, बल्कि उन्हें ओबीसी चेहरे के रूप में सामने लाकर एक मजबूत संदेश दे। उनका राजनीतिक अनुभव, संगठनात्मक पकड़ और जनसमर्थन उन्हें आने वाले समय का सबसे उपयुक्त ओबीसी नेतृत्वकर्ता बनाते हैं।
कुल मिलाकर, केशव प्रसाद मौर्य ओबीसी राजनीति के उस दुर्लभ उदाहरण बन चुके हैं जो केवल ‘जाति’ से नहीं, बल्कि ‘कार्य’ से नेतृत्व की नई परिभाषा गढ़ रहे हैं। उन्हें यदि केंद्रीय भूमिका दी जाती है, तो न केवल भाजपा को राजनीतिक लाभ मिलेगा, बल्कि एक नया, सशक्त और स्वाभिमानी ओबीसी नेतृत्व भी देश को मिलेगा।
