– वित्त मंत्रालय का बड़ा कदम — पहली बार लोन लेने वालों को सिविल स्कोर के अभाव में बैंक अब नहीं कर सकेंगे मना
– यह बदलाव आर्थिक समावेशन की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल है।
– शरद कटियार
आज के दौर में जब हर व्यक्ति अपने सपनों को साकार करने के लिए आर्थिक सहायता की आवश्यकता महसूस करता है, तब “क्रेडिट स्कोर” यानी सिविल स्कोर (CIBIL Score) किसी की आर्थिक योग्यता का पैमाना बन चुका था। लेकिन हाल ही में केंद्र सरकार के एक अहम फैसले ने इस व्यवस्था में आम नागरिक के पक्ष में बड़ा बदलाव किया है।
वित्त मंत्रालय ने साफ किया है कि पहली बार लोन लेने वाले व्यक्ति को केवल इस आधार पर लोन देने से मना नहीं किया जा सकता कि उसका सिविल स्कोर नहीं है। यह घोषणा आम लोगों, छोटे व्यापारियों, युवाओं और ग्रामीण वर्ग के लिए राहत की खबर है, जो पहली बार बैंकिंग प्रणाली से जुड़ना चाहते हैं।
वर्षों से देखा जा रहा है कि भारत में करोड़ों लोग ऐसे हैं जिनकी कोई “क्रेडिट हिस्ट्री” नहीं है। वे न कभी लोन लेते हैं, न ही उनके पास क्रेडिट कार्ड या कोई उधारी का रिकॉर्ड होता है। बैंकिंग प्रणाली में इस स्थिति को “नो स्कोर” या “थिन फाइल” कहा जाता है। ऐसे लोगों को लोन देने से बैंक प्रायः बचते थे क्योंकि उनके पास उनके भरोसे का कोई आंकड़ा नहीं होता था।
अब सरकार के इस निर्णय से ‘नो स्कोर’ वाले नागरिकों को भी अवसर मिलेगा, जिससे वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकेंगे। अब बैंकों को केवल सिविल स्कोर के भरोसे नहीं रहना होगा। उन्हें आवेदक की आय, रोजगार, व्यवसाय की स्थिरता और पुनर्भुगतान की क्षमता जैसे वास्तविक आधारों पर निर्णय लेना होगा। यह व्यवस्था बैंकिंग प्रक्रिया को अधिक मानवीय और न्यायसंगत बनाती है।
इसके साथ ही, RBI द्वारा क्रेडिट रिपोर्ट में पारदर्शिता बढ़ाने के निर्देश भी जारी किए गए हैं। ग्राहक अब आसानी से अपने स्कोर और उसमें हुई किसी भी गलती को सुधारने का अधिकार रखेंगे — और इसके लिए 30 दिन का सुधार-अवसर भी अनिवार्य किया गया है। हालांकि यह निर्णय यह नहीं कहता कि सिविल स्कोर अप्रासंगिक हो गया है। बल्कि यह स्पष्ट करता है कि स्कोर “एकमात्र आधार” नहीं होगा।
जिनकी पहले से अच्छी क्रेडिट हिस्ट्री है, उन्हें अब भी कम ब्याज दरों और तेज़ अप्रूवल की सुविधा मिलेगी। लेकिन जिनका स्कोर नहीं है — उन्हें भी अब समान अवसर मिलेगा। यह नीति संतुलित है — एक तरफ बैंकिंग अनुशासन बना रहेगा, तो दूसरी ओर आर्थिक न्याय भी सुनिश्चित होगा। यह निर्णय ग्रामीण और लघु उद्यमियों के लिए नए युग का द्वार खोलता है।
कई किसान, महिला स्व-सहायता समूह, छोटे दुकानदार और युवाओं के स्टार्टअप्स अब बैंक के दरवाज़े पर बिना झिझक दस्तक दे सकेंगे। पहले “क्रेडिट स्कोर न होने” के कारण जिनके सपने अधूरे रह जाते थे, अब उन्हें भी वित्तीय स्वतंत्रता की राह दिखाई देगी। बदलते समय में ज़रूरत है कि बैंक और वित्तीय संस्थाएँ डेटा से ज़्यादा व्यक्ति को समझें। सिर्फ मशीनों या स्कोरिंग सिस्टम के भरोसे निर्णय लेने की संस्कृति धीरे-धीरे बदली जानी चाहिए।
भारत जैसे विशाल और विविध देश में हर व्यक्ति की परिस्थितियाँ अलग हैं — किसी ने कभी उधार नहीं लिया, इसका अर्थ यह नहीं कि वह भरोसेमंद नहीं है।सरकार का यह कदम सिर्फ बैंकिंग नियमों का सुधार नहीं, बल्कि आम आदमी के विश्वास का पुनर्स्थापन है। यह निर्णय यह संदेश देता है कि “सिस्टम अब व्यक्ति को नहीं, व्यक्ति सिस्टम को परिभाषित करेगा।” बैंकिंग का यह मानवीय रूप भारत को न केवल “फाइनेंशियल इन्क्लूजन” की दिशा में आगे ले जाएगा, बल्कि करोड़ों सपनों को नए पंख भी देगा।