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Sunday, August 24, 2025

नेता, अफसर और पत्रकार सोशल मीडिया पर सक्रिय, लेकिन ज़मीन पर हालात बदतर

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आजकल का खेल ही अलग है भाई। नेता हों, अफसर हों या पत्रकार सबके सब सोशल मीडिया पर दिन-रात झंडा गाड़े बैठे हैं। सुबह नेता जी मंदिर से फोटो डालते हैं, दोपहर में किसी मीटिंग की चमचमाती कुर्सी पर बैठकर ट्वीट ठोकते हैं और शाम तक जनता को सेवक वाली इमेज सर्व कर देते हैं। अफसर लोग भी कम नहीं, फील्ड में गए या नहीं गए ये तो पता नहीं, लेकिन ट्विटर पर निरीक्षण कर लिया, कार्रवाई हो रही है वाला पोस्ट झट से चिपका देंगे। और पत्रकार साहब? कैमरे के सामने गरजेंगे, सोशल मीडिया पर एक्सक्लूसिव लिख देंगे, लेकिन गांव की टूटी सड़क, अस्पताल में दवा की किल्लत या किसान की बदहाली पर चुप्पी साध जाएंगे।सच्चाई ये है कि अब सिस्टम में काम से ज़्यादा काम दिखाने की होड़ मच गई है। किसका ट्वीट ज़्यादा वायरल हुआ, किसकी फोटो पर कितने हार्ट आए, किस वीडियो पर कितनी रीच मिली यही नई राजनीति, यही नया प्रशासन और यही नई पत्रकारिता हो गई है। जनता की असली समस्या किसी को नजर ही नहीं आती।गांव का आदमी आज भी तालाब का गंदा पानी पीने को मजबूर है, अस्पताल में मरीज बिना इलाज तड़प रहा है, लेकिन अफसर साहब के ऑफिस से बाहर निकलते ही सबसे पहले फोटो खिंचवाने की होड़ है। नेता जी चुनाव जीतने के बाद गांव-गली में झांकना भूल जाते हैं, लेकिन ट्विटर पर जनता की सेवा में हमेशा तत्पर लिखकर आराम से सो जाते हैं। और पत्रकार लोग? उनको अब जनता की चीख से ज़्यादा किसी नेता का बयान सुर्खी देने लायक लगता है।जनता सोशल मीडिया पर शिकायत कर भी दे तो क्या होता है, ट्वीट वायरल हो जाएगा, अखबार में भी छप जाएगा, लेकिन काम वही ढाक के तीन पात। प्रशासनिक अमला इतना स्मार्ट हो गया है कि एकाध फोटो खिंचवाकर दिखा देगा कि सब ठीक है, जबकि असलियत में हालात जस के तस।असल में सोशल मीडिया ने राजनीति और अफसरशाही को एक नया बहाना दे दिया है दिखावे का। अब किसी को काम करने की जल्दी नहीं, बस कैमरे के सामने खड़े होकर मुस्कुरा दो और जनता को लगे कि कुछ हो रहा है। ये सब देखकर लगता है कि हमारे यहां असली काम के बजाय फेसबुकिया ज़्यादा चल रहा है।जनता अब इन सबके चक्कर में ठगी जा रही है। वोट देने के बाद वही टूटी सड़कें, वही अंधेरे मोहल्ले, वही भ्रष्ट अफसर और वही लापरवाह सिस्टम। फर्क बस इतना है कि अब ये सब सोशल मीडिया पर भी दिखने लगा है।हकीकत यही है जनता को ट्वीट नहीं चाहिए, उसे गांव तक पक्की सड़क चाहिए। उसे फेसबुक पोस्ट नहीं चाहिए, उसे खेत तक बिजली चाहिए। उसे वायरल वीडियो नहीं चाहिए, उसे अस्पताल में इलाज चाहिए। लेकिन अफसोस, सिस्टम की आंखों पर सोशल मीडिया का चश्मा चढ़ गया है, असली हालात दिखते ही नहीं।भाई साफ कहें तो ये नेता, अफसर और पत्रकार सब पोस्टों में चमक रहे हैं, लेकिन ज़मीन पर सब सड़ रहा है।

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