जाति-धर्म से ऊपर उठकर युवा पीढ़ी को मानवता का परचम थामना होगा
शरद कटियार
भारत (India), यह केवल एक देश नहीं, बल्कि एक जीवंत विचार है। वह विचार जो कहता है — “वसुधैव कुटुंबकम्”, यानी पूरी धरती हमारा परिवार है। परंतु अफसोस, आज यही देश, जिसने दुनिया को मानवता का पाठ पढ़ाया, उसी की गलियों में जाति और धर्म (religion) के नाम पर नफ़रत के नारे गूंजने लगे हैं। कभी मंदिर-मस्जिद की दीवारें ऊँची हो जाती हैं, तो कभी जाति का अहंकार इंसानियत को कुचल देता है। कोई अपने को ब्राह्मण कहकर श्रेष्ठ समझता है, तो कोई यादव, दलित या ठाकुर बनकर दूसरे को नीचा दिखाने में गर्व महसूस करता है। पर सच्चाई यह है — जब शरीर जलता है, तब राख सबकी एक ही होती है।
धर्म का मूल अर्थ था — “धारण करना”, यानी अच्छाई, करुणा, न्याय और सत्य को अपने जीवन में उतारना। लेकिन आज धर्म “विभाजन” का औजार बन गया है। और सबसे दुख की बात यह है कि युवा पीढ़ी, जो देश का भविष्य है, वह भी इस विषैले प्रचार का शिकार होती जा रही है। हमारे पूर्वजों ने यह देश हजारों बलिदानों से बनाया है। भगत सिंह ने फांसी पर मुस्कान के साथ “इंकलाब ज़िंदाबाद” कहा था — उन्होंने यह नहीं पूछा था कि जेलर की जाति क्या है। चंद्रशेखर आज़ाद ने गोली खाते समय “जय हिन्द” कहा था — उन्होंने यह नहीं सोचा था कि गोली चलाने वाला किस धर्म का है।
आज जब सोशल मीडिया पर धर्म और जाति के नाम पर जहर फैलाया जाता है, तो यह हमारे शहीदों की उस कुर्बानी का अपमान है। अगर हमें सच में उनका उत्तराधिकारी बनना है, तो हमें उस भारत को फिर से खड़ा करना होगा जहाँ पहचान केवल एक हो — “मैं भारतीय हूँ।”
राष्ट्रधर्म — जो सबको जोड़ता है
हमारा असली धर्म कोई मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर या गुरुद्वारा नहीं; हमारा धर्म है — देशभक्ति।
हमारा ईश्वर है — भारत भूमि।
हमारी पूजा है — सेवा, त्याग और सद्भावना।
युवाओं को यह समझना होगा कि देश का विकास किसी जाति की जागीर नहीं है।
अगर कोई किसान खेत में हल चला रहा है, सैनिक सीमा पर खड़ा है, डॉक्टर अस्पताल में रात भर ड्यूटी दे रहा है — तो वे सब राष्ट्रधर्म निभा रहे हैं। यही सबसे बड़ी पूजा है। भारत की सबसे बड़ी ताकत उसकी युवा शक्ति है — जो न किसी जाति से बंधी है, न किसी मजहब से। अगर युवा चाह लें तो नफरत की दीवारें मिनटों में गिर सकती हैं।
जरूरत बस इतनी है कि हम यह तय करें,अब नहीं बांटे जाएंगे जाति के नाम पर, अब नहीं भड़केंगे धर्म के नाम पर। हमें वह मशाल बनना है जो अंधेरों में भी रोशनी दिखाए। हमें वह भारत बनाना है जहाँ हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई सब एक साथ “भारत वर्ष की जय” कहें और किसी के दिल में भेदभाव की जगह न हो। जिस दिन हम यह समझ लेंगे कि “धर्म नहीं, कर्म ही पहचान है”, उस दिन भारत फिर से विश्वगुरु बनेगा।
जाति मिट जाएगी, धर्म की राजनीति खुद बिखर जाएगी।
और जब हर युवा कहेगा —
“मेरा धर्म है मानवता, मेरा मजहब है भारत”
तो उस दिन नफरत की हर आग बुझ जाएगी।याद रखो युवाओं, मंदिर की आरती तभी अर्थ रखती है, जब किसी भूखे को रोटी मिलती है। राष्ट्रधर्म वही है जो सबको जोड़ता है — यही असली भारत है, यही असली श्रद्धा है।


