वंदे मातरम् सिर्फ गीत नहीं, भारत का मंत्र व आत्मा है : नरेंद्र मोदी

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नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर एक वर्ष तक चलने वाले स्मरणोत्सव का शुभारंभ किया। राजधानी दिल्ली में आयोजित इस ऐतिहासिक समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि “वंदे मातरम् ये शब्द एक मंत्र है, एक ऊर्जा है, एक स्वप्न है, एक संकल्प है। यह मां भारती की साधना भी है और आराधना भी। ये शब्द हमारे इतिहास की याद दिलाते हैं, वर्तमान को आत्मविश्वास से भरते हैं और भविष्य के लिए नया हौसला देते हैं।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि गुलामी के अंधकारमय कालखंड में ‘वंदे मातरम्’ आजादी का उद्घोष बन गया था। उन्होंने कहा कि यह गीत उस समय के भारतवासियों के लिए मां भारती के हाथों से गुलामी की बेड़ियां तोड़ने का संकल्प था। पीएम मोदी ने कहा, “जिस तरह अंग्रेज भारत को नीचा और पिछड़ा बताकर अपने शासन को सही ठहराते थे, ‘वंदे मातरम्’ की पहली पंक्ति ने उनके दुष्प्रचार को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। यह गीत न केवल स्वतंत्रता का प्रतीक बना बल्कि करोड़ों देशवासियों के लिए ‘सुजलाम सुफलाम’ भारत का सपना भी लेकर आया।”

कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने महात्मा गांधी के 1927 के उस वक्तव्य को भी याद किया जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘वंदे मातरम्’ हमारे सामने अखंड भारत की तस्वीर प्रस्तुत करता है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आज भी जब राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है तो ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम्’ का उद्घोष अपने आप जन-जन के हृदय से निकलता है।

पीएम मोदी ने कहा कि आज का भारत विज्ञान, प्रौद्योगिकी और आर्थिक शक्ति के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों को छू रहा है। उन्होंने कहा, “नया भारत मानवता की सेवा के लिए कमला और विमला का स्वरूप है, तो आतंकवाद के विनाश के लिए दस प्रहर धारिणी दुर्गा भी बनना जानता है।”

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन के अंत में 1937 की घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि “उस वर्ष ‘वंदे मातरम्’ के कुछ पदों को अलग कर दिया गया, जिससे इसकी आत्मा को खंडित कर दिया गया। इसी विभाजन ने आगे चलकर देश के बंटवारे के बीज भी बोए। आज की पीढ़ी के लिए यह समझना जरूरी है कि यह अन्याय क्यों हुआ, क्योंकि वही विभाजनकारी सोच आज भी भारत के लिए चुनौती बनी हुई है।”

प्रधानमंत्री के इस संबोधन के साथ ही देशभर में ‘वंदे मातरम् के 150 वर्ष’ का स्मरणोत्सव वर्षभर मनाया जाएगा, जिसमें देश के विभिन्न राज्यों में सांस्कृतिक कार्यक्रम, छात्र प्रतियोगिताएं और इतिहास से जुड़े प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाएगा।

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