प्रशांत कटियार
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को भारत के ग्रामीण इलाकों के लिए एक क्रांतिकारी पहल के रूप में देखा जाता है। 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) के नेतृत्व में शुरू की गई यह योजना आज भी भारत में ग्रामीण रोजगार की रीढ़ बनी हुई है। यह अधिनियम ग्रामीण परिवारों को 100 दिनों का गारंटीकृत रोजगार प्रदान करता है, जिससे न केवल बेरोजगारी का सामना किया गया बल्कि देश के विकास में भी योगदान दिया गया।
मनरेगा का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी और बेरोजगारी को कम करना है। योजना के तहत श्रमिकों को बुनियादी संरचना निर्माण जैसे सड़क, तालाब, और अन्य विकासात्मक कार्यों में रोजगार दिया जाता है। यह न केवल रोजगार का माध्यम बना, बल्कि ग्रामीण भारत के सामाजिक और आर्थिक विकास का आधार भी बना।यह योजना 2 फरवरी 2006 को आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले से शुरू की गई। मनरेगा पहला ऐसा कार्यक्रम था, जिसने रोजगार को कानूनी अधिकार बना दिया।
प्रत्येक ग्रामीण परिवार को न्यूनतम 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराने का प्रावधान है। (2005-2014) में मनरेगा के तहत रोजगार के जो आंकड़े सामने आए, वे इसकी सफलता की कहानी बयां करते हैं। पहले वर्ष (2006-07): योजना के पहले वर्ष में 2.10 करोड़ परिवारों को रोजगार मिला। 2008-09: यह आंकड़ा बढ़कर 4.51 करोड़ परिवारों तक पहुंच गया। 2013-14: मनमोहन सिंह के कार्यकाल के अंतिम वर्ष तक योजना के तहत 5 करोड़ से अधिक परिवारों को रोजगार मिला।
योजना के तहत 50% से अधिक लाभार्थी महिलाएं थीं, जिससे महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ।
मनरेगा ने लाखों ग्रामीण परिवारों को बेरोजगारी से बचाया। श्रमिकों को उनके गांव में ही रोजगार मिला, जिससे पलायन की समस्या पर भी अंकुश लगा।
योजना में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की गई। लगभग 53% श्रमिक महिलाएं थीं, जिन्होंने अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया।
मनरेगा के तहत बनाए गए कुएं, तालाब, सड़कें और अन्य विकासात्मक कार्यों ने ग्रामीण इलाकों की स्थिति को बेहतर बनाया।
विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, मनरेगा ने 2004-2014 के दौरान ग्रामीण गरीबी में 10% की कमी की।आरटीआई और सोशल ऑडिट के माध्यम से योजना में पारदर्शिता बनाए रखी गई। मनरेगा की सफलता के बावजूद, कुछ आलोचनाएं भी सामने आईं।
कई राज्यों में योजना के क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार और अपारदर्शिता की शिकायतें मिलीं।श्रमिकों को समय पर भुगतान न मिलने की समस्या रही।इस योजना का उद्देश्य अस्थायी रोजगार प्रदान करना है, जिससे दीर्घकालिक रोजगार का संकट बना रहा।
डॉ. मनमोहन सिंह ने मनरेगा को लागू करने में एक निर्णायक भूमिका निभाई। उन्होंने इसे न केवल रोजगार प्रदान करने की योजना के रूप में देखा, बल्कि इसे ग्रामीण भारत के समग्र विकास का आधार बनाया।
उनकी दूरदर्शिता ने यह सुनिश्चित किया कि योजना देश के सबसे वंचित और गरीब तबके तक पहुंचे।
उनके नेतृत्व में सरकार ने इसके लिए पर्याप्त बजट सुनिश्चित किया।
मनरेगा ने भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव छोड़ा है।ग्रामीण क्षेत्रों में समृद्धि,योजना ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाई। मनरेगा के तहत जल संचयन और वृक्षारोपण के कार्यों ने पर्यावरण संरक्षण में मदद की।यह योजना वंचित वर्गों को समाज की मुख्यधारा में लाने का माध्यम बनी।
मनरेगा की उपयोगिता आज भी बनी हुई है। 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान इस योजना ने लाखों प्रवासी श्रमिकों को रोजगार प्रदान किया। लगभग 11 करोड़ लोगों को इस योजना के तहत रोजगार मिला।
यह दर्शाता है कि मनरेगा न केवल एक सामाजिक सुरक्षा तंत्र है, बल्कि आपदा प्रबंधन का भी एक सशक्त माध्यम है।
मनरेगा न केवल एक योजना है, बल्कि डॉ. मनमोहन सिंह की दूरदर्शिता का प्रतीक है। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि भारत के सबसे गरीब और पिछड़े वर्गों को आर्थिक सशक्तिकरण का अवसर मिले।
मनरेगा की सफलता इस बात का प्रमाण है कि एक सही नीति और कुशल नेतृत्व किस प्रकार समाज के सबसे निचले तबके को सशक्त बना सकता है। डॉ. सिंह के इस योगदान को भारत हमेशा याद रखेगा। मनरेगा की कहानी सिर्फ रोजगार देने की नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय, आर्थिक समावेशन और विकास की एक अद्वितीय मिसाल है।