प्रशांत कटियार
मनरेगा (MNREGA) यानी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम जिसे देश के करोड़ों गरीबों के लिए आजीविका की रीढ़ माना गया, आज भ्रष्टाचारियों की चारागाह बनता जा रहा है। जिस योजना की आत्मा काम के बदले मजदूरी थी, वह अब फोटो के बदले भुगतान की नौटंकी बनकर रह गई है।फर्जी फोटो, झूठी हाजिरी, और अफसरों की नज़रें फेरना यह किसी एक गांव या जिले की समस्या नहीं, बल्कि एक व्यापक सिस्टम की बीमार मानसिकता है। NMMS जैसे ऐप का मकसद पारदर्शिता था, लेकिन चालाक ठेकेदारों और लापरवाह कर्मचारियों ने इसे भी अपनी लूट की मशीन बना डाला।
एक ही फोटो कई मस्टर रोल में, महिलाओं की जगह पुरुषों का काम दिखाना, और दोपहर में फोटो अपलोड ही न करना ये सब महज तकनीकी खामियां नहीं, ये सोची समझी साजिशें हैं। सवाल सिर्फ तकनीक का नहीं है, सवाल नीयत का है। जब सिस्टम के भीतर बैठे लोग ही गरीब मजदूरों का हक मारने लगें, तो योजना की आत्मा को कफन ओढ़ने में देर नहीं लगती। ऊपर से सजा का नामोनिशान नहीं यही कारण है कि यह फर्जीवाड़ा साल दर साल और बेलगाम होता जा रहा है। प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर जिला मुख्यालयों तक अब चेत जाने का समय है।
सिर्फ पत्र लिखना काफी नहीं, जिम्मेदार अधिकारियों और दोषी कर्मचारियों की तुरंत बर्खास्तगी और जेल भेजना ज़रूरी है। यह सिर्फ एक वित्तीय अनियमितता नहीं, बल्कि देश के गरीब श्रमिकों के पेट पर लात मारने जैसा अपराध है। मनरेगा जैसी योजनाएं गरीब की आखिरी उम्मीद होती हैं। अगर वहां भी फर्जीवाड़ा होगा, तो फिर न्याय की उम्मीद कहां से बचेगी? अब लकीर खींचने का वक्त है या तो ईमानदार निगरानी हो, या ये योजनाएं बंद कर दी जाएं। क्योंकि फर्जी रोजगार देकर अगर आंकड़े चमकाए जा रहे हैं, तो ये देश के लोकतंत्र के नाम पर कलंक है।