शरद कटियार
लोकतंत्र की रीढ़ कहे जाने वाले मीडिया (Media) को प्रायः “चौथा स्तंभ” कहा जाता है, लेकिन अगर इतिहास की परतें पलटी जाएं तो सच यह है कि मीडिया देश (country) का पहला स्तंभ है। आज़ादी के महानायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस केवल सैन्य नेतृत्व तक सीमित नहीं थे। उन्होंने 1942 में आज़ाद हिंद रेडियो की स्थापना की थी। यह पहला स्वतंत्र भारतीय मास मीडिया संस्थान था, जिसने 14 भाषाओं में कार्यक्रम प्रसारित कर ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी थी। यही वजह है कि “जय हिंद” का पहला अधिकार मीडिया और पत्रकारों का है।
स्वतंत्रता संग्राम और पत्रकारिता का अटूट रिश्ता रहा है। भारत की आज़ादी की लड़ाई में पत्रकारिता की भूमिका अद्वितीय रही। नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने स्वराज समेत कई अख़बार संचालित किए। डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जो देश के पहले राष्ट्रपति बने, भी एक सक्रिय पत्रकार थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू, देश के पहले प्रधानमंत्री, नेशनल हेराल्ड अख़बार के प्रणेता थे। डॉ. भीमराव अंबेडकर पहले पत्रकार और बाद में वकील थे। उन्होंने कुल 6 अख़बार और 2 पत्रिकाओं का प्रकाशन किया और देश को पहला संविधान दिया।
महात्मा गांधी स्वयं 8 अख़बार और 3 पत्रिकाओं से जुड़े रहे। यंग इंडिया और हरिजन जैसे अख़बार भारतीय समाज में क्रांति के वाहक बने। यह साफ है कि स्वतंत्रता आंदोलन के स्तंभ पत्रकार ही थे, जिन्होंने अपनी कलम और विचारों से अंग्रेज़ी शासन की नींव को हिलाया। इतिहास गवाह है कि आज़ादी की लड़ाई में करीब 70% पत्रकार या तो जेल गए या फांसी चढ़ा दिए गए। कलम और जुबान की ताक़त इतनी बड़ी थी कि अंग्रेज़ सरकार ने इसे सबसे बड़ा ख़तरा माना।
भारत में संविधान 1950 में पूरी तरह लागू हुआ और पहला आम चुनाव 1951 में हुआ। यानी लोकतंत्र की स्थापना उसके बाद हुई। लेकिन उससे लगभग 8 साल पहले (1942 में) ही मीडिया की औपचारिक और स्वतंत्र स्थापना नेताजी बोस कर चुके थे। इस लिहाज से — 1️⃣ पहला स्तंभ : मीडिया 2️⃣ दूसरा स्तंभ : न्यायपालिका 3️⃣ तीसरा स्तंभ : लोकतंत्र (संविधान और चुनाव प्रणाली) 4️⃣ चौथा स्तंभ : विधायिका और सरकार।
आज की स्थिति – उपेक्षित पत्रकार विडंबना है कि जो पत्रकार कभी लोकतंत्र चलाते थे, आज लोकतंत्र ही पत्रकारों को “नपुंसक” बना रहा है। पत्रकारों की गिनती किसी सरकारी आंकड़े में नहीं है। पत्रकारों के लिए किसी भी सरकार के पास बजट के नाम पर एक फूटी कौड़ी नहीं। जाति, अन्याय और शोषण के खिलाफ अब भी सबसे पहले आवाज़ पत्रकार ही उठाता है।
जब देश के पहले प्रधानमंत्री, पहले राष्ट्रपति, संविधान निर्माता और यहां तक कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तक पत्रकारिता से जुड़े रहे, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि हम चौथे नहीं, बल्कि देश के पहले स्तंभ हैं। मीडिया ने आज़ादी दिलाई, लोकतंत्र को खड़ा किया, और आज भी सबसे पहले आवाज़ वही उठाता है। जरूरत है कि पत्रकारिता को उसका सम्मान, स्थान और अधिकार मिले।
अटल जी भी पत्रकार से बने थे राजनेता
अटल बिहारी वाजपेयी, भारतीय राजनीति के लोकप्रिय नेता और पूर्व प्रधानमंत्री, ने अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत अखबारों में संवाददाता और संपादक के रूप में की थी। उनके पत्रकारिता करियर मे प्रताप (हिंदी दैनिक) – अटल जी ने इस अखबार के लिए लिखा और संपादन में भी सक्रिय रहे। हिमालय (हिंदी पत्रिका) – शुरुआती समय में वे यहां लेख लिखते थे। राजस्थान पत्रिका और अन्य क्षेत्रीय अखबार – उन्होंने अपने राजनीतिक विचारों और सामाजिक मुद्दों पर कई लेख प्रकाशित किए।
अटल जी पत्रकारिता में विशेष रूप से लेख और संपादकीय लेखन के लिए प्रसिद्ध थे, और उनका पत्रकारिता अनुभव बाद में उनके राजनीतिक जीवन में विचार और संवाद की शैली को प्रभावित करता रहा।
शरद कटियार
ग्रुप एडिटर
यूथ इंडिया न्यूज ग्रुप