शरद कटियार
मीडिया (Media) लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, लेकिन आज यह स्तंभ कमजोर होता दिख रहा है। देश के विभिन्न हिस्सों में मीडिया संस्थानों पर धन और सरकारी विज्ञापनों की खातिर अपने सिद्धांतों से समझौता करने के आरोप लगते हैं। 2023 में Reuters Digital News Report के अनुसार, भारत में केवल 21% लोग मीडिया पर पूरी तरह भरोसा करते हैं, जबकि 2018 में यह आंकड़ा 42% था।
फेक न्यूज़ का प्रभाव भी लगातार बढ़ रहा है। Pew Research Center के अनुसार, भारत में 64% लोग फेक न्यूज़ का शिकार हो चुके हैं। साथ ही, 2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 34% मीडिया संस्थान सरकार और बड़े उद्योगपतियों के प्रभाव में काम करते हैं। इसका परिणाम यह है कि वास्तविक मुद्दे—जैसे बेरोजगारी, शिक्षा, और स्वास्थ्य—मीडिया कवरेज से गायब होते जा रहे हैं।
देश को बांटने वाली ताकतें और मीडिया की जिम्मेदारी
देश में कुछ मीडिया प्लेटफॉर्म्स राजनीतिक या सांप्रदायिक एजेंडे को बढ़ावा देते हैं, जो समाज में विभाजन का कारण बनते हैं। उदाहरण के लिए, ADR की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, 69% भारतीय राजनीतिक पार्टियों द्वारा मीडिया के दुरुपयोग को लेकर चिंतित हैं। इससे न केवल राष्ट्रवाद की भावना कमजोर होती है, बल्कि देश की अखंडता पर भी प्रश्नचिह्न खड़े होते हैं।
देश की कुल जनसंख्या का 62% हिस्सा 35 वर्ष से कम उम्र के युवाओं का है। लेकिन इनमें से बड़ी संख्या बेरोजगारी, अशिक्षा, और प्रशासनिक लापरवाही का शिकार है। ILO (International Labour Organization) की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 22% युवा बेरोजगार हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा 26% तक पहुंच गया है।
इसके साथ ही, शिक्षा और कौशल विकास के क्षेत्र में भी चुनौतियां बनी हुई हैं। UNESCO की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 18% युवा औपचारिक शिक्षा पूरी नहीं कर पाते हैं। यह आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि युवाओं को अपने अधिकारों के लिए जागरूक होना होगा और बेहतर प्रशासन के लिए सक्रिय भूमिका निभानी होगी।
अगर मीडिया निष्पक्ष होकर काम करे और युवाओं को सही दिशा दिखाए, तो बड़े बदलाव संभव हैं। 2024 में World Bank की एक रिपोर्ट में बताया गया कि 78% लोग सरकारी योजनाओं की जानकारी के लिए मीडिया पर निर्भर हैं।
मीडिया के सहयोग से गुड गवर्नेंस को बढ़ावा देने के कुछ संभावित प्रयास ,सही नीति और उसकी जागरूकता से 3-5% तक बेरोजगारी घट सकती है। मीडिया के माध्यम से प्रचारित शिक्षा योजनाओं से 1.5 करोड़ से अधिक बच्चे स्कूलों में दाखिला ले सकते हैं। मीडिया के जरिए सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं की जानकारी फैलाकर 50 लाख से अधिक लोगों को फायदा पहुंचाया जा सकता है।
एक विकसित राष्ट्र की संकल्पना तभी पूरी हो सकती है जब समाज के सभी वर्ग समान रूप से इसका लाभ उठाएं। 2024 में भारत का मानव विकास सूचकांक (HDI) 0.633 था, जो विकसित देशों की औसत 0.800 से काफी कम है। यह इस बात का संकेत है कि हमें न केवल भौतिक, बल्कि सामाजिक और नैतिक स्तर पर भी विकास करना होगा।
मीडिया को अपने नैतिक मूल्यों को पुनर्स्थापित करना होगा। उसे फेक न्यूज़ और सांप्रदायिकता से बचते हुए, शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
युवाओं को सक्रिय भागीदारी करनी होगी। UNDP की रिपोर्ट के अनुसार, अगर भारत में युवा वर्ग सरकारी नीतियों को सही तरीके से लागू करवाने में सहयोग करें, तो अगले 5 वर्षों में 5% तक गरीबी में कमी आ सकती है।
मीडिया और युवा वर्ग के बीच तालमेल से एक सशक्त भारत का निर्माण संभव है। अगर मीडिया निष्पक्षता और नैतिकता के साथ काम करे और युवा गुड गवर्नेंस के लिए सक्रिय भूमिका निभाएं, तो देश में समानता और विकास की नींव रखी जा सकती है। यह केवल एक चुनौती नहीं, बल्कि हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है।