प्रशांत कटियार
लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत उसकी पारदर्शिता और निष्पक्षता है, और इस जिम्मेदारी का बोझ भारत में चुनाव आयोग के कंधों पर है। लेकिन हाल के दिनों में जिस तरह से विपक्षी दलों और चुनाव आयोग के बीच मतदाता सूची में गड़बड़ी को लेकर टकराव बढ़ा है, उसने इस संवैधानिक संस्था की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि आयोग के लिए न कोई पक्ष है और न विपक्ष, सभी राजनीतिक दल बराबर हैं। उन्होंने विपक्ष के वोट चोरी जैसे आरोपों को संविधान का अपमान बताया और यह भी कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि दलों ने समय पर सूची की जांच नहीं की और अब आयोग पर आरोप मढ़ रहे हैं। यह बयान विपक्षी दलों कांग्रेस और राजद समेत कई दलों के सीधे आरोपों के जवाब में आया, जिन्होंने कहा है कि मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर नाम काटे गए, फर्जी नाम जोड़े गए और चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश की गई।
असल बहस केवल आरोप प्रत्यारोप तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इस बात पर केंद्रित है कि क्या चुनाव आयोग ने अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी पूरी पारदर्शिता और सक्रियता से निभाई है या नहीं। क्या विपक्ष को शिकायत दर्ज कराने और जांच कराने का पर्याप्त अवसर मिला, और क्या आयोग ने अपने कार्य में ऐसी गुंजाइश छोड़ी जिससे उसकी निष्पक्षता पर संदेह खड़ा हो गया? कांग्रेस ने तो यहां तक कह दिया कि आयोग ने फिर झूठ बोला और अपने आधिकारिक अकाउंट से वीडियो पोस्ट कर सीधा-सीधा आयोग की साख को चुनौती दी। लोकतंत्र में सवाल उठाना अपराध नहीं बल्कि ज़रूरी है, इसलिए इसे संविधान का अपमान करार देना जनता की आवाज़ को दबाने जैसा प्रतीत होता है।आज आम मतदाता यह विश्वास चाहता है कि उसका वोट सही जगह गिना जाएगा और उसकी पहचान किसी सूची की गड़बड़ी में खो नहीं जाएगी। ऐसे समय में आयोग के लिए केवल सफाई देना काफी नहीं है। उसे पारदर्शी जांच करनी होगी, जिसमें विपक्ष और नागरिक समाज की सक्रिय मौजूदगी सुनिश्चित हो। साथ ही डिजिटल निगरानी तंत्र को मजबूत बनाना होगा, ताकि फर्जीवाड़े की आशंका जड़ से खत्म हो सके। आयोग को यह साबित करना होगा कि वह न केवल संविधान के प्रति बल्कि जनता के विश्वास के प्रति भी उतना ही जवाबदेह है।भारत का लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब चुनाव आयोग अपने ऊपर लगे हर शक को मिटाने के लिए साहस और पारदर्शिता दिखाएगा। अगर विपक्ष के आरोप निराधार हैं तो उन्हें खुले तथ्यों के साथ बेनकाब किया जाए, और यदि कहीं गड़बड़ी है तो उसे तुरंत सुधारा जाए। लोकतंत्र केवल वोट देने का अधिकार नहीं है, बल्कि यह विश्वास का अनुबंध है। और यदि यह अनुबंध टूटा तो सबसे बड़ी हार न किसी पार्टी की होगी, न किसी आयोग की, बल्कि भारत के लोकतंत्र की होगी।
लेखक दैनिक यूथ इंडिया के स्टेट हेड है।