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Thursday, December 26, 2024

मसूद अजहर पर दिल का दौरा और आतंकवाद का अंतहीन चेहरा

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मसूद अजहर (Masood Azhar) का नाम एक ऐसा नाम है, जो न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में आतंकवाद का प्रतीक बन चुका है। जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख और पुलवामा जैसे घातक हमलों के मास्टरमाइंड मसूद अजहर के दिल का दौरा पड़ने की खबर ने एक बार फिर से आतंकवाद के मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया है। यह घटना आतंकवाद की जड़ों, उसके प्रभाव और इसे बढ़ावा देने वाले देशों की जिम्मेदारियों पर सवाल खड़े करती है।

मसूद अजहर का आतंकवाद के क्षेत्र में उदय 1994 में हुआ, जब उसे भारत में गिरफ्तार किया गया था। हालांकि, 1999 में कंधार हाईजैक के दौरान भारत सरकार को मजबूरी में उसे छोड़ना पड़ा। इस रिहाई ने न केवल भारत बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में आतंकवाद के लिए एक नई चुनौती खड़ी की। मसूद अजहर ने पाकिस्तान में अपनी सुरक्षित पनाहगाह बनाकर जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठन की नींव रखी और इसे भारत के खिलाफ बड़े हमलों के लिए सक्रिय किया।

पुलवामा हमला, पठानकोट एयरबेस हमला और अन्य घातक घटनाओं में मसूद अजहर की भूमिका ने उसे भारत के सबसे बड़े दुश्मनों में से एक बना दिया। उसका संगठन न केवल भारत बल्कि अफगानिस्तान और अन्य पड़ोसी देशों में भी आतंक फैलाने में शामिल रहा है।

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मसूद अजहर को हाल ही में दिल का दौरा पड़ा है और उसे अफगानिस्तान से पाकिस्तान के कराची स्थित संयुक्त सैन्य अस्पताल में लाया गया है। यह खबर कई मायनों में महत्वपूर्ण है। पहला, इससे पता चलता है कि आतंकवादी भी इंसान हैं और प्रकृति के नियमों से परे नहीं हैं। दूसरा, यह सवाल उठता है कि क्या इस घटना के बाद मसूद अजहर और उसके संगठन की गतिविधियां कमजोर होंगी, या यह केवल एक अस्थायी झटका साबित होगा?

मसूद अजहर के स्वास्थ्य को लेकर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन उसकी बीमारी ने आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक प्रयासों को फिर से सोचने का मौका दिया है। क्या यह वक्त नहीं है कि विश्व शक्तियां पाकिस्तान जैसे देशों पर दबाव बनाएं, जो आतंकवादियों को सुरक्षित पनाहगाह प्रदान करते हैं?

मसूद अजहर का पाकिस्तान में सुरक्षित रहना इस बात का प्रमाण है कि पाकिस्तान आतंकवाद का गढ़ बन चुका है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ दिखावे की कार्रवाई करने वाला पाकिस्तान, वास्तविकता में आतंकवादियों को आश्रय और समर्थन प्रदान करता है। जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों की गतिविधियों पर नियंत्रण करने में पाकिस्तान की असफलता उसकी दोहरी नीति को उजागर करती है।

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने बार-बार पाकिस्तान को ग्रे और ब्लैक लिस्ट में डाला है, लेकिन ये कदम पर्याप्त साबित नहीं हुए हैं। मसूद अजहर जैसे आतंकवादियों को बचाने के लिए पाकिस्तान ने हर बार नए रास्ते तलाशे हैं। चाहे वह गुप्त ठिकानों में छिपाना हो या उनके खिलाफ कार्रवाई के नाम पर दुनिया को धोखा देना।
यहां अंतरराष्ट्रीय समुदाय की जिम्मेदारी बनती है कि वह पाकिस्तान पर सख्त प्रतिबंध लगाए और आतंकवादियों को आश्रय देने के उसके रवैये को खत्म करे। संयुक्त राष्ट्र को भी मसूद अजहर जैसे आतंकवादियों को ग्लोबल टेररिस्ट घोषित करने के प्रयासों को तेज करना चाहिए।

मसूद अजहर की बीमारी भारत के लिए कोई राहत नहीं है। हालांकि, यह एक प्रतीकात्मक जीत हो सकती है, लेकिन भारत को आतंकवाद के खिलाफ अपनी रणनीति में किसी तरह की ढील नहीं देनी चाहिए।आतंरिक सुरक्षा को मजबूत करना: भारत को अपने सुरक्षा ढांचे को मजबूत करना होगा ताकि भविष्य में पुलवामा जैसे हमलों को रोका जा सके। खुफिया एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय और आधुनिक तकनीक का उपयोग इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। भारत को पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दबाव बढ़ाना चाहिए ताकि वह मसूद अजहर और अन्य आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए मजबूर हो। भारत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से यह मांग करनी चाहिए कि पाकिस्तान को आर्थिक रूप से कमजोर करने के लिए सख्त प्रतिबंध लगाए जाएं।

मसूद अजहर की बीमारी आतंकवाद की समस्या को हल नहीं कर सकती। आतंकवाद आज भी एक वैश्विक चुनौती है और इसे समाप्त करने के लिए विश्व समुदाय को एकजुट होकर काम करना होगा। केवल मसूद अजहर के जाने से जैश-ए-मोहम्मद या आतंकवाद की विचारधारा खत्म नहीं होगी। इसके लिए आतंकवाद की जड़ों को खत्म करना होगा, जो कट्टरता, गरीबी और राजनीतिक अस्थिरता में निहित हैं।

मसूद अजहर की बीमारी एक प्रतीकात्मक घटना है, लेकिन इसे आतंकवाद के खिलाफ एक बड़ी जीत नहीं माना जा सकता। यह एक ऐसा समय है जब भारत और दुनिया को आतंकवाद के खिलाफ अपने प्रयासों को और तेज करना चाहिए।

पाकिस्तान जैसे देशों को उनकी दोहरी नीति के लिए जवाबदेह ठहराना और आतंकवादियों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करना ही इसका समाधान है। मसूद अजहर का दिल का दौरा आतंकवाद के अंत की शुरुआत नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि हमें इस चुनौती के खिलाफ हमेशा तैयार रहना चाहिए।
भारत को इस घटना से प्रेरणा लेकर आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई को और मजबूत करना चाहिए। यह न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए आतंकवाद-मुक्त भविष्य की दिशा में एक कदम हो सकता है।

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