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Sunday, August 24, 2025

मसेनी चौराहा बना ‘बालू बाजार’: गंगा की छाती छलनी, जिम्मेदारों की चुप्पी बन रही राष्ट्रीय आपदा का कारण

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फर्रुखाबाद | जनपद का मसेनी चौराहा, जो कभी केवल एक सामान्य ग्रामीण चौक था, अब अवैध बालू खनन का खुला केंद्र बन चुका है। हर सुबह यहां बालू से भरी ठेलियाँ, ट्रॉली और ट्रैक्टरों की कतारें सज जाती हैं, जैसे यह कोई सरकारी मान्यता प्राप्त मंडी हो। स्थानीय लोग इस पूरे धंधे को “गंगा माँ की खुली लूट” और “प्रशासनिक मिलीभगत” का नतीजा बता रहे हैं।

प्रति दिन औसतन 150–200 ट्रॉली बालू मसेनी और आसपास के घाटों से उठाई जाती है। प्रत्येक ट्रॉली पर ₹800–₹1200 तक वसूला जाता है, जो सीधे तौर पर खनन माफिया की जेब में जाता है।

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, रोज़ाना करीब ₹2 लाख से ₹3 लाख तक की अवैध बालू बिक्री केवल मसेनी चौराहा क्षेत्र में होती है।

यह पूरा अवैध कारोबार थाना मऊदरवाजा व मोहम्मदाबाद क्षेत्र की सीमा के आसपास होता है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।

स्थानीय निवासियों का आरोप है कि: “खनन माफिया प्रशासनिक अधिकारियों व पुलिस को महीने का ‘हफ्ता’ देते हैं, इसीलिए हर कोई मूकदर्शक बना हुआ है। गंगा के पर्यावरण पर गंभीर खतरा, गंगा के किनारों पर मिट्टी का कटाव तेज हो गया है। बालू निकासी के कारण जलस्तर असंतुलित हो रहा है। कई ग्रामीण घाट धंस चुके हैं, जिससे स्थानीय निवासियों के आवागमन व खेती पर प्रभाव पड़ रहा है।

🔹 विशेषज्ञों का कहना है कि यह गतिविधि भूगर्भीय असंतुलन और बाढ़ संकट को बढ़ावा दे सकती है।

पर्यावरण कार्यकर्ता डॉ. विनीत तिवारी के अनुसार:

“गंगा के पाटों से बालू निकालना, उसके प्रवाह और जलधारा को असंतुलित करना है। इसका असर सिर्फ फर्रुखाबाद पर नहीं, बल्कि पूरे उत्तर भारत के जलवायु संतुलन पर पड़ सकता है।”

खनन पर नजर रखने वाली खनन विभाग की टीम का मसेनी क्षेत्र में पिछले 3 महीनों में एक भी निरीक्षण नहीं हुआ।
SDM मोहम्मदाबाद या जिला खनन अधिकारी की ओर से कोई जवाब नहीं आया जब स्थानीय पत्रकारों ने स्थिति पूछी।
RTI में सामने आया कि 2024–25 मे पांचाल क्षेत्र से सरकारी रूप से एक भी खनन परमिट जारी नहीं किया गया, फिर बालू कहाँ से और कैसे आ रही है?

स्थानीय युवाओं और सोशल एक्टिविस्ट्स ने ड्रोन कैमरा और मोबाइल से कई बार फुटेज रिकॉर्ड किए हैं, जिनमें ट्रैक्टरों की कतारें, माफिया के गुर्गे, और गंगा किनारे बालू खींचती मशीनें साफ देखी जा सकती हैं।

यह केवल एक ‘खनन का मामला’ नहीं, बल्कि गंगा माँ के अस्तित्व पर सुनियोजित हमला है। यदि अब भी सरकार, प्रशासन और जनता ने आंखें मूंदे रखीं तो यह मसेनी नहीं, पूरे क्षेत्र के पर्यावरण, भूजल और समाज के लिए एक स्थायी त्रासदी बन जाएगा।

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