लखनऊ: उत्तर प्रदेश (UP) में 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (BJP) संगठनात्मक रणनीति को नए सिरे से तैयार कर रही है। प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर पार्टी के भीतर तेज़ हलचल मची है। माना जा रहा है कि भाजपा इस बार पूरी तरह अप्रत्याशित फैसला ले सकती है। ब्राह्मणों को साधने, पिछड़ों को मजबूत करने और पहली बार किसी महिला को अध्यक्ष बनाने तक के विकल्पों पर गंभीर मंथन चल रहा है। पार्टी नेतृत्व अगले सात दिनों में नए प्रदेश अध्यक्ष का नाम तय करने की तैयारी में है।
बीते कुछ समय से भाजपा दलित–पिछड़ा राजनीति में विपक्ष के पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) फॉर्मूले का जवाब तलाश रही है। 2024 में समाजवादी पार्टी द्वारा इस समीकरण के जरिए भाजपा को बड़ा झटका लगा था, जिसके बाद संगठन ने 98 जिलों में 84 जिलाध्यक्ष नियुक्त कर जातीय बैलेंस साधने की कोशिश की है। इनमें 45 सवर्ण, 32 ओबीसी और 7 एससी वर्ग से अध्यक्ष बनाए गए हैं।
अब प्रदेश अध्यक्ष के चयन में जातीय समीकरण और भी संवेदनशील हो गया है। ब्राह्मणों की नाराज़गी को हवा मिलने के बीच इस बात की चर्चा जोर पकड़ चुकी है कि भाजपा सूबे के 12 प्रतिशत ब्राह्मण वोटरों को साधने के लिए 2018 की तरह फिर किसी ब्राह्मण चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष बना सकती है। वहीं पार्टी में यह सुगबुगाहट भी तेज है कि बिहार चुनाव में महिला मतदाताओं की अहम भूमिका से उत्साहित भाजपा उत्तर प्रदेश में पहली बार किसी महिला नेता को कमान सौंप सकती है। इनमें साध्वी निरंजन ज्योति का नाम प्रमुखता से उभर रहा है, जो पिछड़ा वर्ग, हिंदुत्व और महिला वर्ग–तीनों समीकरणों को साधने वाली मजबूत दावेदार मानी जा रही हैं।
इसके साथ ही पिछड़ा वर्ग से धर्मपाल सिंह, बीएल वर्मा और बाबूराम निषाद, जबकि दलित वर्ग से रामशंकर कठेरिया और विद्यासागर सोनकर भी दावेदारों की सूची में शामिल हैं। इसी मुद्दे पर सोमवार शाम लखनऊ में संघ के सह सरकार्यवाह अरुण कुमार, भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री के बीच महत्वपूर्ण बैठक हुई। इसमें 2027 के विधानसभा चुनाव, आगामी पंचायत चुनाव और प्रदेश अध्यक्ष चयन को लेकर विस्तृत समीक्षा की गई।
भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारियों की मानें तो पार्टी जरूरी नहीं कि विपक्ष की पीडीए पिच पर ही खेले। भाजपा को विश्वास है कि मोदी फैक्टर और योजनाओं से लाभान्वित बड़ा वोट बैंक 2027 में भी उसके साथ खड़ा होगा। बावजूद इसके, संगठन जातीय समीकरण को हल्के में नहीं ले रहा है और इसी के तहत नया अध्यक्ष चेहरे का चयन पार्टी की अगली चुनावी रणनीति का महत्वपूर्ण संकेत माना जा रहा है।


