सुस्त पुलिसिया सिस्टम और सियासी दबाव में दबती न्याय की उम्मीदें
अजीत मिश्रा
शाहजहांपुर। धर्मांतरण जैसे गंभीर मामले में भी अगर सिर्फ एक गिरफ्तारी से कार्यवाही पूरी मान ली जाए, तो कानून के राज पर बड़ा सवाल खड़ा होता है।
शाहजहांपुर में सामने आए धर्मांतरण और लव जिहाद के संगीन प्रकरण ने एक बार फिर से प्रदेश की पुलिसिया कार्यप्रणाली और न्याय व्यवस्था को कठघरे में खड़ा कर दिया है। चौक कोतवाली क्षेत्र में पकड़े गए मामले में कुल छह आरोपियों के नाम सामने आए हैं, जिनमें मुख्य साजिशकर्ता आकिल, कैफ, आलम, और अन्य शामिल हैं। लेकिन अब तक सिर्फ नावेद पठान को जेल भेजकर पुलिस ने जैसे अपनी जिम्मेदारी पूरी मान ली है।
मुख्य साजिशकर्ता ‘आकिल’ अब भी फरार — कई पुराने आपराधिक मुकदमों का भी आरोपी
मामले में नामजद आकिल पर पहले से ही कई संगीन मुकदमे दर्ज हैं। बावजूद इसके, उसकी गिरफ्तारी के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया। चौक कोतवाली पुलिस के अनुसार, “महिला के बयान दर्ज होने के बाद आगे की कार्यवाही की जाएगी।” लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि महिला पर राजनीतिक दबाव डाला जा रहा है ताकि वह अपने बयान बदल दे।
आरोपियों को राजनीतिक संरक्षण? — क्या यही है गिरफ्तारी में देरी की असली वजह
स्थानीय सूत्रों की मानें तो कुछ आरोपियों को क्षेत्रीय राजनीतिक नेताओं का संरक्षण प्राप्त है। हिंदूवादी संगठनों के कुछ नेता भी कथित रूप से आरोपियों के पक्ष में खड़े दिखाई दे रहे हैं। यह दृश्य चौंकाने वाला है, क्योंकि वही नेता जो आम तौर पर ऐसे मामलों में सड़क से संसद तक आवाज़ उठाते हैं, अब चुप हैं या बचाव में दिख रहे हैं।
सरकार की सख्ती बनाम पुलिस की निष्क्रियता — क्या ज़मीन पर नहीं उतर रही योगी सरकार की मंशा?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लव जिहाद और धर्मांतरण जैसे मामलों पर जीरो टॉलरेंस नीति अपनाने की बात करते हैं। कई मौकों पर उन्होंने पुलिस को कठोर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। लेकिन शाहजहांपुर जैसे मामलों में स्थानीय पुलिस की सुस्ती और निष्क्रियता से सरकार की साख पर भी सवाल उठ रहे हैं।
महिला को धमकी, दबाव और बहकावे में लाने की कोशिशें जारी
सूत्रों के अनुसार, मामले की पीड़िता पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है। बयान बदलवाने के लिए प्रभावशाली नेताओं के माध्यम से दबाव डाला जा रहा है। अगर महिला ने बयान बदला, तो पुलिस आरोपियों को “साक्ष्य के अभाव में” छोड़ सकती है — यह आशंका अब आम चर्चा का विषय बन चुकी है।
धर्मांतरण मामलों में सुस्ती: समाज के लिए गंभीर खतरा
धर्मांतरण कोई साधारण अपराध नहीं है। यह सामाजिक ताने-बाने, धार्मिक सद्भाव और कानून व्यवस्था के लिए खतरा बनता जा रहा है। यदि इस पर समय रहते कड़ी कार्रवाई नहीं हुई, तो समाज में वैमनस्य, अस्थिरता और कानून के प्रति अविश्वास गहराएगा।
धर्मांतरण जैसे मामलों में अगर एक आरोपी पर कार्रवाई कर बाकियों को खुला छोड़ दिया गया, तो यह समाज में एक खतरनाक संदेश देगा — कि अपराधी कानून से ऊपर हैं। अब देखने की बात यह होगी कि क्या पुलिस अपनी छवि सुधारने के लिए आगे क़दम उठाती है, या फिर यह मामला भी फाइलों में दबा दिया जाएगा।