शरद कटियार
उत्तर प्रदेश के Farrukhabad में इन दिनों एक अदृश्य लेकिन बेहद खतरनाक युद्ध लड़ा जा रहा है। यह युद्ध न तो किसी रणभूमि में हो रहा है, न ही इसमें तोप और टैंक हैं। लेकिन इसमें गोलियों से भी घातक हथियार शामिल हैं—धमकी, साजिश, फर्जी मुकदमे, पेशेवर बदनामी, राजनीतिक दबाव और यहां तक कि हत्या की कोशिशें। इस जंग का मैदान है Fatehgarh Court और इसके अकेले योद्धा हैं वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव बाजपेई।
राजीव बाजपेई उस रास्ते पर चले हैं, जिस पर कदम रखना खुद को मौत के मुंह में धकेलने जैसा है। उन्होंने वह किया है, जिसकी हिम्मत करने से ज्यादातर लोग कतराते हैं—राज्य के टॉप 10 कुख्यात माफिया और उनके संगठित गिरोहों के खिलाफ अदालत में मोर्चा खोलना। उत्तर प्रदेश के अपराध जगत से ज़रा भी परिचित व्यक्ति यह जानता है कि अनुपम दुबे और उसका परिवार किस कदर भय और असर का पर्याय बन चुका है। अनुपम दुबे के साथ उसका गैंग—अनुराग दुबे ‘डब्बन’, अमित दुबे ‘बब्बन भाई’, मृतक माफिया संजीव परिया का भाई आशीष परिया, सपा नेता शिव प्रताप सिंह ‘चीनू’, कुख्यात आदित्य सिंह राठौर ‘ए.के.’, शैलेंद्र शर्मा—ये सभी ऐसे नाम हैं जिनके आपराधिक इतिहास के पन्ने मुकदमों से भरे हुए हैं।
इन लोगों के खिलाफ गवाही देने, वादी बनने और अदालत में सीधे मुकाबला करने का मतलब है, खुद को खुलेआम निशाना बनाना। लेकिन बाजपेई ने न सिर्फ यह जोखिम उठाया, बल्कि अपराधियों की जड़ तक पहुंचने की कोशिश की। कानूनी दुनिया में यह बात किसी से छिपी नहीं है कि जब अपराधी किसी वकील को अपना दुश्मन मान लेते हैं, तो सिर्फ अदालती तर्कों से बदला नहीं लेते। बाजपेई के खिलाफ झूठी शिकायतें, फर्जी मुकदमे, बार एसोसिएशन में
अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग, और मीडिया में छवि खराब करने के अभियान—सब एक सुविचारित रणनीति के तहत चलाए जा रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि इस पूरे खेल में कुख्यात नॉन-पेटीशनर वकील अवधेश मिश्रा की भूमिका बेहद सक्रिय है। उनका उद्देश्य साफ है—बाजपेई को कचहरी से बाहर कर देना, ताकि माफिया के खिलाफ खड़ा सबसे बड़ा अवरोध खत्म हो जाए।
यह कोई महज़ कोर्टरूम ड्रामा नहीं है। बाजपेई के खिलाफ कई बार हत्या की साजिश रची गई। उनकी सुरक्षा को भी योजनाबद्ध तरीके से कमजोर करने की कोशिश हुई। सूत्रों के मुताबिक, माफिया नेटवर्क ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि पुलिस सुरक्षा हटा दी जाए, ताकि वे आसान निशाना बन जाएं।
मामला इतना गंभीर है कि शिकायतें सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक पहुंचाई गई हैं। लेकिन सवाल यह है—क्या एक वकील की सुरक्षा के लिए हमें हमेशा आखिरी वक्त तक इंतज़ार करना पड़ेगा?
फतेहगढ़ कचहरी का नज़ारा भी किसी सामाजिक आईने से कम नहीं है। यहां जहां एक ओर कई वकील माफिया गिरोहों की पैरवी में लगे हैं, वहीं बाजपेई जैसे गिने-चुने लोग पीड़ित पक्ष की तरफ से खड़े होते हैं। यह सिर्फ पेशे का चुनाव नहीं, बल्कि चरित्र की कसौटी है। बाजपेई ने कई मुकदमों में ऐसे साक्ष्य और तर्क पेश किए हैं, जिन्होंने अपराधियों की कानूनी रणनीतियों को ध्वस्त कर दिया। वे न सिर्फ एक अधिवक्ता हैं, बल्कि जनता के लिए उम्मीद का प्रतीक बन चुके हैं।
यह मान लेना आसान है कि यह जंग सिर्फ राजीव बाजपेई की व्यक्तिगत जंग है। लेकिन सच यह है कि अगर यह लड़ाई हार जाती है, तो यह संदेश जाएगा कि—माफिया तंत्र कानून से बड़ा है, और अदालतें भी उसके सामने बेबस हैं। यह केवल एक व्यक्ति की हार नहीं होगी, यह न्याय व्यवस्था पर अपराध के विजय की मुहर होगी। और यह वह दिन होगा, जब आम आदमी का अदालत से भरोसा उठना शुरू हो जाएगा।
अपराधियों की ताकत सिर्फ उनके हथियारों और पैसों में नहीं, बल्कि समाज की चुप्पी में होती है। फ़र्रुखाबाद का एक बड़ा हिस्सा जानता है कि बाजपेई किस खतरे से खेल रहे हैं, लेकिन खुलकर समर्थन देने की हिम्मत बहुत कम लोग कर पाते हैं। यह डर ही माफियाओं की सबसे बड़ी ढाल है। यह मामला हमें एक गहरे सवाल की ओर ले जाता है—क्या हमारी न्याय व्यवस्था उन लोगों की रक्षा कर सकती है, जो माफिया के खिलाफ खड़े हों? क्या हम ऐसे वकीलों को सिर्फ चुनावी भाषणों में ‘वीर’ कहकर छोड़ देंगे, या उन्हें असल सुरक्षा और समर्थन देंगे?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने माफिया राज को खत्म करने के लिए कई सख्त कदम उठाए हैं, लेकिन इस केस में असली परीक्षा यह होगी कि क्या राज्य सरकार एक ऐसे व्यक्ति को बचा पाती है, जो बिना किसी राजनीतिक पद या सरकारी संसाधन के, अकेले माफिया तंत्र से लड़ रहा। राजीव बाजपेई का संघर्ष इस बात का जीता-जागता सबूत है कि एक व्यक्ति भी अपराध साम्राज्य को चुनौती दे सकता है। लेकिन यह भी सच है कि यह लड़ाई बेहद महंगी है—सिर्फ पैसों में नहीं, बल्कि मानसिक तनाव, सामाजिक दबाव और जान के खतरे में।
फर्रुखाबाद की यह कहानी सिर्फ स्थानीय खबर नहीं है, बल्कि एक चेतावनी है पूरे देश के लिए। अगर हम राजीव बाजपेई जैसे लोगों को अकेला छोड़ देंगे, तो कल जब माफिया हमारे दरवाज़े पर होगा, तब कोई हमारे लिए खड़ा नहीं होगा। हमें तय करना होगा कि हम चुप रहकर अपराधियों की ताकत बढ़ाएंगे या खुलकर कानून की तरफ खड़े होंगे। इतिहास गवाह है—सच की जीत आसान नहीं होती, लेकिन जब समाज किसी सच्चे योद्धा के साथ खड़ा होता है, तो सबसे बड़ा साम्राज्य भी ढह जाता है।
शरद कटियार
ग्रुप एडिटर
यूथ इंडिया न्यूज ग्रुप