रोहित श्रीवास्तव
प्रेम (Love) कोई साधारण अनुभूति नहीं, यह आत्मा (soul) की सबसे कोमल, सबसे शुद्ध और सबसे गहन अभिव्यक्ति है। जब हम कहते हैं कि “प्रेम सब्र है, सौदा नहीं,” तो यह केवल एक पंक्ति नहीं होती, बल्कि यह जीवन (Life) के उस दर्शन का सार होता है जो सिखाता है कि प्रेम लेन-देन नहीं, नाप-तोल नहीं, शर्तों और शर्तबंदियों का अनुबंध नहीं होता। प्रेम तो वह सहज स्वीकृति है जो किसी के लिए हृदय खोलकर समर्पण कर देने की साहसिक घोषणा है।
कभी-कभी जीवन में कोई व्यक्ति ऐसा आ जाता है, जिससे जुड़ाव बिलकुल स्वाभाविक होता है — बिना प्रयत्न, बिना पूर्व योजना, और बिना अपेक्षा। ऐसा प्रेम अक्सर नि:स्वार्थ होता है। यह प्रेम मांगता नहीं, केवल देने का आनंद जानता है। यह वह प्रेम होता है जिसमें कोई रणनीति नहीं, कोई ‘फॉर्मूला’ नहीं, कोई शर्त नहीं। ऐसे प्रेम में हम अपनी संपूर्णता लेकर किसी के सामने उपस्थित होते हैं — बिना मुखौटे, बिना संशय।
ऐसा लगता है कि यह प्रेम केवल इस जीवन की घटना नहीं है, बल्कि आत्मा की अनंत यात्रा में किसी अधूरे बंधन की पूर्णता है। कई बार जब हम किसी को पहली बार मिलते हैं, और फिर भी लगता है कि वर्षों से जानते हैं, तो शायद वह किसी जन्म के वियोग की पीड़ा का फलित मिलन होता है। यह वह भावनात्मक गहराई है, जिसमें शब्द बौने पड़ जाते हैं और मौन सबसे प्रभावशाली संवाद बन जाता है।
हमारे जीवन में जो लोग हमसे सच्चा स्नेह और आत्मीयता रखते हैं, वे हमारे जीवन की वास्तविक पूंजी होते हैं। न दौलत, न पद, न शोहरत — केवल वे लोग जो हमें हमारे सबसे कमजोर पलों में भी अपनाते हैं, जो हमारी चुप्पियों को सुन लेते हैं, और जो बिना मांगे हमारे दुःख बाँट लेते हैं — वे हमारे जीवन की सबसे मूल्यवान संपत्ति हैं।
इन लोगों को सम्मान देना, उन्हें बनाए रखना और उनके प्रति आभार व्यक्त करना ही हमारी विलक्षण व्यावहारिक बुद्धि और संवेदनशीलता का परिचायक है। क्योंकि एक सफल जीवन वही नहीं होता जो भौतिक उपलब्धियों से भरा हो, बल्कि वह होता है जो भावनात्मक रूप से समृद्ध हो।
प्रेम जीवन का सबसे सुंदर अध्याय है, जो समय के साथ और भी परिपक्व होता है। यह किसी एजेंडे का हिस्सा नहीं होता, यह आत्मिक सामंजस्य होता है। और जब यह प्रेम नि:स्वार्थ हो, तो यह केवल दो हृदयों का मिलन नहीं, बल्कि भौतिक संसार में आत्मा की पुनःप्राप्ति होता है।
जो लोग इस प्रेम को समझते हैं, अनुभव करते हैं और निभाते हैं, वे ही सच्चे अर्थों में जीवन की उस ऊँचाई तक पहुँचते हैं जहां अहंकार नहीं, केवल समर्पण होता है। प्रेम को समझिए, निभाइए, और जो लोग आपसे सच्चा प्रेम करते हैं — उन्हें जीवनभर संजोकर रखिए, क्योंकि यही वो धन है जो कभी नष्ट नहीं होता। “प्रेम कोई भ्रम नहीं, यह वह सत्य है जिसे महसूस किया जाता है, देखा नहीं जाता।”
– लेखक दैनिक यूथ इंडिया के उप संपादक हैँ।