शरद कटियार
लोहड़ी (Lohri) उत्तर भारत का एक प्रमुख त्योहार है, जो हर साल मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। यह पर्व फसल की कटाई, समृद्धि, और खुशियों का प्रतीक है। खासतौर पर पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली में धूमधाम से मनाया जाने वाला यह त्योहार न केवल कृषि से जुड़ा है, बल्कि यह सांस्कृतिक और पारिवारिक समृद्धि का भी प्रतीक है।
लोहड़ी की उत्पत्ति कृषि पर आधारित समाज से हुई है। यह पर्व रबी की फसल के तैयार होने और गेंहू की बुवाई के बाद मनाया जाता है। लोहड़ी को फसल कटाई के उत्सव के रूप में देखा जाता है, जहां किसान अपने श्रम का सम्मान करते हैं और प्रकृति का आभार प्रकट करते हैं।
लोककथाओं के अनुसार, यह पर्व दुल्ला भट्टी की कहानी से भी जुड़ा है। दुल्ला भट्टी एक लोकनायक थे जिन्होंने गरीब लड़कियों की शादी में मदद की और समाज में समानता और न्याय का संदेश दिया। लोहड़ी के दौरान गाए जाने वाले गीतों में उनकी वीरता और दानशीलता का जिक्र किया जाता है।
पर्व की परंपराएं और रीति-रिवाज
लोहड़ी के दिन लोग पारंपरिक कपड़े पहनते हैं और शाम को अलाव जलाते हैं। अलाव के चारों ओर परिवार और मित्र इकट्ठा होते हैं, गीत गाते हैं, और नृत्य करते हैं। इस दिन तिल, गुड़, मूंगफली, और रेवड़ी जैसे प्रसाद चढ़ाए जाते हैं और अलाव में अर्पित किए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह प्रक्रिया न केवल प्रकृति को धन्यवाद देती है, बल्कि परिवार में सुख और समृद्धि भी लाती है।
लोहड़ी का मुख्य आकर्षण लोकगीत और नृत्य हैं। भांगड़ा और गिद्धा जैसे पारंपरिक नृत्य इस पर्व को और भी जीवंत बना देते हैं। लोग “सुंदर मुंदरिए हो” जैसे गीत गाते हैं, जो दुल्ला भट्टी की वीरता और समाज के प्रति उनके योगदान का वर्णन करते हैं।
लोहड़ी न केवल किसानों के लिए बल्कि नवविवाहित जोड़ों और नवजात शिशुओं के परिवारों के लिए भी विशेष महत्व रखती है। नवविवाहित जोड़े और नए माता-पिता इस दिन विशेष पूजा करते हैं और अलाव के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। यह उनके जीवन में नई शुरुआत और खुशहाली का प्रतीक है।
आज के समय में, जब पर्यावरण संरक्षण एक बड़ी चुनौती बन गया है, लोहड़ी का पर्व हमें प्रकृति के महत्व की याद दिलाता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि प्रकृति का सम्मान करना और उसके प्रति आभार प्रकट करना हमारी सांस्कृतिक और नैतिक जिम्मेदारी है।
लोहड़ी का आधुनिक स्वरूप
वर्तमान समय में, लोहड़ी केवल पंजाब और हरियाणा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे पूरे भारत और विदेशों में भी मनाया जाता है। शहरों में लोग अपने दोस्तों और परिवार के साथ पार्टी आयोजित करते हैं और पारंपरिक व्यंजनों का आनंद लेते हैं। हालांकि शहरीकरण के चलते कुछ पारंपरिक तत्व कम हो रहे हैं, लेकिन इसकी भावनात्मक और सांस्कृतिक महत्ता बनी हुई है।
लोहड़ी का पर्व केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर और प्रकृति के प्रति आभार का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि मेहनत, समर्पण, और सामूहिकता से जीवन को खुशहाल बनाया जा सकता है। इस पर्व को मनाते हुए हमें अपनी परंपराओं और मूल्यों को संरक्षित रखने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण का भी ध्यान रखना चाहिए।
आइए, इस लोहड़ी पर अलाव के साथ न केवल खुशियां बांटें, बल्कि समाज और प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भी समझें।