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Thursday, September 4, 2025

अर्धनग्न मुजरे के दौर में गुम होतीं साहित्यिक स्त्रियां

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शरद कटियार

आज का दौर अपने आप में एक अजीब विरोधाभास समेटे हुए है। एक ओर समाज महिलाओं को “सशक्त” और “आत्मनिर्भर” बनाने की बातें करता है, वहीं दूसरी ओर वही समाज उन्हें अर्धनग्न मंचीय प्रस्तुतियों (Semi-nude stage productions) और तथाकथित “मनोरंजन” के नाम पर वस्तु की तरह प्रस्तुत करने में भी संकोच नहीं करता। सोशल मीडिया और मोबाइल स्क्रीन पर दिन-रात चलने वाले इस तरह के दृश्य कहीं न कहीं महिलाओं के असली साहित्यिक और बौद्धिक योगदान को हाशिये पर ढकेल रहे हैं।

भारतीय साहित्य की यात्रा में स्त्रियों का योगदान बेहद गहरा रहा है। मीरा, महादेवी वर्मा, अमृता प्रीतम जैसी विभूतियों ने न केवल संवेदनाओं की ऊँचाईयों को छुआ, बल्कि समाज को नई दृष्टि भी दी। इन्होंने शब्दों से स्त्री की अस्मिता को परिभाषित किया। किंतु आज साहित्य की वही स्त्री कहीं गुम होती जा रही है, क्योंकि समाज का ध्यान अब दृश्यात्मक आकर्षण की ओर अधिक है, न कि विचारात्मक गहराई की ओर।

बाज़ारवाद ने मनोरंजन को इस हद तक प्रभावित किया है कि अब “मूल्य” की जगह “माल” को अधिक महत्व मिल रहा है। अर्धनग्न मुजरे, रियलिटी शो और वायरल वीडियो के बीच साहित्य और संवेदनाओं की बातें फीकी पड़ने लगी हैं। स्त्री के व्यक्तित्व का आकलन उसकी वाणी और विचारों से नहीं, बल्कि उसके “प्रदर्शन” से किया जा रहा है। यह प्रवृत्ति साहित्यिक स्त्रियों को और अधिक हाशिये पर धकेल रही है।

आज किसी साहित्यिक मंच पर कवयित्रियों या लेखिकाओं की बात करने वाले लोग कम होते जा रहे हैं। वहीं, सोशल मीडिया पर वायरल हुई किसी नृत्यांगना को रातोंरात “स्टार” बना दिया जाता है। यह विडंबना साहित्यिक स्त्रियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है कि उनके शब्दों का महत्व घटता जा रहा है। जरूरत इस बात की है कि समाज फिर से साहित्य और संस्कृति को महत्व दे।

विद्यालयों, महाविद्यालयों और सामाजिक आयोजनों में साहित्यिक स्त्रियों को मंच दिया जाए। साथ ही, मीडिया और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर ऐसे लेखन और विचारों को प्रमुखता मिलनी चाहिए जो स्त्रियों को “विचारक” और “सृजनकर्ता” के रूप में सामने लाए, न कि केवल “मनोरंजन की वस्तु” के रूप में। अगर यह प्रवृत्ति जारी रही तो आने वाली पीढ़ियाँ मीरा और महादेवी वर्मा को याद करने की बजाय केवल “ट्रेंडिंग डांस वीडियो” ही याद रखेंगी। यह समय है कि हम साहित्यिक स्त्रियों को उनका खोया हुआ स्थान वापस दिलाएँ।

शरद कटियार
ग्रुप एडिटर
यूथ इंडिया न्यूज ग्रुप

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