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Thursday, August 7, 2025

लीज समाप्त कर LDA ने सहारा बाजार में की सीलिंग कार्रवाई, हाईकोर्ट की अवमानना का आरोप

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– व्यापारियों का प्रदर्शन
– पुलिस से हुई नोकझोंक

लखनऊ: लखनऊ विकास प्राधिकरण ( LDA ) द्वारा गोमती नगर के मूर्ति खंड स्थित Sahara market में मंगलवार देर रात की गई सीलिंग कार्रवाई पर जमकर हंगामा हुआ। रात करीब 1 बजे एलडीए की टीम ने बाजार की दुकानों को टिन की चादरों से सील कर दिया। सुबह जब व्यापारी पहुंचे, तो बाजार बंद मिला। इसके बाद नाराज व्यापारियों ने बाजार के बाहर प्रदर्शन शुरू कर दिया। मौके पर पुलिस से उनकी नोकझोंक भी हुई, जिसके बाद प्राधिकरण की टीम को बैरंग लौटना पड़ा।

व्यापारियों का आरोप है कि एलडीए ने न सिर्फ हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना की, बल्कि लोकतंत्र और कानून की मूल भावना का भी उल्लंघन किया है। एक दुकानदार ने बताया कि वह बीते 25 वर्षों से यहां दुकान चला रहे हैं और इसी से उनके परिवार की रोजी-रोटी चलती है। उन्होंने कहा कि बिना कोई सूचना या नोटिस दिए, पहले भी दुकानें सील की गई थीं, जिसके खिलाफ वे अदालत गए और स्टे ऑर्डर हासिल किया। बावजूद इसके, मंगलवार रात एक बार फिर से दुकानों को सील कर दिया गया। एक अन्य दुकानदार ने बताया कि उनकी दुकान करीब 20 वर्षों से वहीं है और उनके पास रजिस्ट्री भी है। उन्होंने आरोप लगाया कि बिना किसी पूर्व सूचना के दुकानें सील करना न केवल गलत है, बल्कि अवैधानिक भी है।

इस मामले में याचिकाकर्ता मोहम्मद जाइमुल इस्लाम ने हाईकोर्ट में बताया था कि उन्होंने वर्ष 2000 में सहारा इंडिया कॉमर्शियल कॉर्पोरेशन लिमिटेड से विधिवत रजिस्ट्री करवा कर दुकान क्रय की थी। सहारा को यह संपत्ति एलडीए से 30 वर्ष की लीज पर मिली थी, जिसमें यह शर्त थी कि वह दुकान ट्रांसफर कर सकता है, बशर्ते तय ट्रांसफर चार्ज अदा किया जाए। याचिकाकर्ता ने सारे चार्ज जमा कर वैध रूप से दुकान पर मालिकाना हक प्राप्त किया। लेकिन 3 मई को एलडीएने सहारा की लीज समाप्त कर दी और 18 जून को नोटिस जारी कर दुकानों को खाली करने का निर्देश दे दिया।

याचिकाकर्ता का कहना है कि उन्हें कोई व्यक्तिगत नोटिस या सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया और सीधे दुकान सील कर दी गई। इस पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की पीठ ने स्पष्ट कहा कि याचिकाकर्ता के पास वैध दस्तावेज हैं और बिना किसी विधिक प्रक्रिया के दुकान से बेदखल करना संविधान के अनुच्छेद 300A का उल्लंघन है।

कोर्ट ने एलडीए की कार्रवाई को कानून को ताक पर रखने वाला बताया और इसे लोकतंत्र के लिए अस्वीकार्य ठहराया। अदालत ने प्राधिकरण पर ₹50,000 का जुर्माना लगाते हुए दुकानों पर कब्जा तत्काल लौटाने के निर्देश दिए थे। इसके बावजूद एलडीए द्वारा दोबारा सीलिंग की कार्रवाई किए जाने से व्यापारी वर्ग में जबरदस्त नाराजगी है। अब सवाल यह उठ रहा है कि जब उच्च न्यायालय ने स्पष्ट आदेश दे रखा है, तो उसके बावजूद प्रशासनिक स्तर पर ऐसी कार्रवाई क्यों की गई?

इस पूरे प्रकरण से न सिर्फ एलडीए की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं, बल्कि यह मामला सीधे-सीधे न्यायपालिका की अवमानना की दिशा में भी देखा जा रहा है। अब देखना यह होगा कि अदालत इस अवमानना पर क्या रुख अपनाती है और क्या व्यापारियों को दोबारा न्याय मिल पाता है।

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