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Friday, December 13, 2024

धूल सरकारी चेहरे पर है, वे आईना साफ कर रहे हैं

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(जीतू पटवारी -विनायक फीचर्स)

भोपाल के कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में गुरुवार को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने प्रदेश में भाजपा सरकार के एक वर्ष पूरा होने के उपलक्ष्य में प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की। इस दौरान उन्होंने सरकार की उपलब्धियों को गिनाते हुए दावा किया कि 1 करोड़ 29 लाख लाडली बहनों (Ladli Behna Yojana) को अब तक 19,212 करोड़ रुपए का अंतरण किया गया। लेकिन, यह अधूरी सच्चाई है सरकार वह तो बता रही है,जो दिया गया, लेकिन यह बताने से बच रही है, जो नहीं दे पाई।

लाडली बहना योजना : वादों और हकीकत का अंतर

मुख्यमंत्री का दावा है लाडली बहना योजना महिला सशक्तिकरण का महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन सरकार यह स्पष्ट करने में विफल रही कि योजना के तहत 3,000 रुपए प्रतिमाह देने के वादे के बावजूद अब तक बचा हुआ करीब 38,424 करोड़ से ज्‍यादा रुपया क्यों नहीं दिया गया? यदि यह रकम लाभार्थियों तक पहुंची होती, तो उनकी आर्थिक स्थिति में बड़ा सुधार हो सकता था। योजना के लाभार्थियों में से कई महिलाओं ने शिकायत की है कि उन्हें नियमित अंतराल पर भुगतान नहीं मिलता। इसके अलावा, कुछ क्षेत्रों में राशि के वितरण में भेदभाव के आरोप भी लगे हैं। बेहतर होता मुख्यमंत्री ऐसे सभी सवालों का भी जवाब देते।

केन-बेतवा परियोजना : देरी और बढ़ी लागत का जिम्मेदार कौन?

मध्य प्रदेश की जनता के लिए केन-बेतवा लिंक परियोजना लंबे समय से प्रतीक्षित है। यह परियोजना न केवल प्रदेश में सिंचाई क्षमता बढ़ाने का दावा करती है, बल्कि जल संकट को कम करने का भी वादा करती है। सरकार यह क्यों नहीं बता पा रही है कि शिवराज सिंह चौहान की पूर्ववर्ती सरकार और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के बीच समन्वय की कमी के कारण इस परियोजना में भारी देरी हुई। अगर इसे समय पर शुरू किया गया होता, तो आज इसकी लागत इतनी न बढ़ती। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर 25 दिसंबर को इस परियोजना का भूमि पूजन करते हैं, तो उन्हें इस बजट वृद्धि और देरी के लिए जिम्मेदार कारकों पर भी चर्चा करनी चाहिए।

बीमार स्वास्थ्य सेवा और कितनी बदहाल होगी?

मुख्यमंत्री ने स्वास्थ्य मंत्रालय और चिकित्सा शिक्षा मंत्रालय को एक करने को अपनी बड़ी उपलब्धि बताया। लेकिन, जमीनी हकीकत इससे काफी अलग है। प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में आज भी एंबुलेंस की भारी कमी है। आज भी कई परिवार शवों को कंधे, ठेलागाड़ी और साइकिल पर ले जाने को मजबूर हैं। डॉक्टरों और अन्य चिकित्सा कर्मचारियों की कमी के कारण मरीजों को अक्सर बड़े शहरों के अस्पतालों में रेफर कर दिया जाता है। हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश में प्रति 10,000 जनसंख्या पर डॉक्टरों की उपलब्धता राष्ट्रीय औसत से भी कम है। ग्रामीण अस्पतालों में दवाओं और उपकरणों की कमी की शिकायतें आम हैं। सरकार द्वारा स्थापित नए मेडिकल कॉलेजों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव और शिक्षकों की कमी भी एक बड़ी समस्या है।

इंदौर-मनमाड़ रेल लाइन : पुरानी योजना पर श्रेय की नई लड़ाई 

इंदौर-मनमाड़ के बीच की रेल लाइन एक ऐसा झुनझुना है, जिसे जो भी मुख्यमंत्री आता है वह अपनी उपलब्धि के रूप में बजाता है। कर्ज लेकर कछुए की गति से चल रही केंद्र और मध्य प्रदेश की सरकार को अब चिंता सिर्फ इस बात की करनी चाहिए कि इस रेल परियोजना को अब बगैर बजट बढ़ाए, तत्काल पूरा किया जाए, ताकि कागजों की घोषणाएं पटरी पर नजर आए।

नदी जोड़ो परियोजना : उद्देश्य केवल भ्रष्टाचार

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संसाधनों के बेहतर उपयोग के लिए नदी जोड़ो परियोजना की कल्पना की थी। लेकिन, भाजपा सरकारों ने इसे भ्रष्टाचार में नहाने का साधन बना दिया। इंदौर से निकलने वाली गंदगी से भरी कान्ह नदी उज्‍जैन की शिप्रा नदी में मिलकर श्रद्धालुओं की धार्मिक आस्थाओं को ठेस पहुंचा रही है। इसे सुधारने के नाम पर करोड़ों रुपए स्वीकृत किए गए, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका कोई असर नहीं दिखता। भाजपा के ढेर सारे नेताओं और नौकरशाही की लंबी जमात की कई पीढ़ियों की आर्थिक स्थिति सुधर गई, लेकिन कान्‍ह नदी की पवित्रता सपना रह गई। सिंहस्थ के नाम पर एक बार फिर नई योजनाओं का प्रस्ताव किया जा रहा है। सरकार को चाहिए कि पुरानी परियोजनाओं के परिणामों का मूल्यांकन करे और उसी के आधार पर नई योजनाएं बनाए।

कृषि-किसान : घोषणाएं ही घोषणाएं

प्रदेश में किसानों की स्थिति में सुधार के सरकार के दावे भी सवालों के घेरे में हैं। सरकार गेहूं की समर्थन मूल्य पर खरीदी को लेकर 125 रुपए बोनस देने का ढोल बजा रही है, लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव में किए गए 2,700 रुपए प्रति क्विंटल के वादे पर चुप्पी साध रही है। महाराष्ट्र में सोयाबीन को 6,000 रुपए प्रति क्विंटल पर खरीदने का वादा खुद प्रधानमंत्री ने किया गया, जबकि मध्य प्रदेश में केवल 4,892 रुपए प्रति क्विंटल पर सोयाबीन खरीदा गया। धान किसानों को भी सरकार के झूठे वादों का सामना करना पड़ा। 3,100 रुपए प्रति क्विंटल की घोषणा के बावजूद किसानों को अपनी फसल औने-पौने दाम पर बेचनी पड़ी।

औद्योगिक निवेश और बेरोजगारी

मध्य प्रदेश सरकार को इस बात का भी जवाब देना चाहिए कि रीजनल इंडस्ट्रियल समिट के नाम पर कागजी निवेश अब पूरे मप्र में “पर्यटन” कर रहा है। रीजनल इंडस्ट्रियल समिट के नाम पर प्रदेश में निवेश को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं। सरकार का कहना है कि इन सम्मेलनों के माध्यम से प्रदेश में रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे। लेकिन, सरकारी रिकॉर्ड में पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। उद्योगपति, प्रदेश की अस्पष्ट नीतियों और लालफीताशाही के कारण निवेश करने से बच रहे हैं।

उच्च शिक्षा का हाल, बौद्धिक दायरे का पुराना बवाल

डॉ. मोहन यादव ने उच्च शिक्षा में अपने कार्यकाल को उपलब्धि बताते हुए कहा कि उन्होंने “कुलपति” को “कुलगुरु” कर दिया। लेकिन यह बदलाव केवल शब्दों का खेल है। चिंता का एक बौद्धिक दायरा यह भी है कि पुरानी सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री के रूप में काम कर चुके डॉक्टर मोहन यादव विश्वविद्यालयों की राजनीति से बाहर नहीं आ पा रहे हैं। कांग्रेस जानना चाहती है कि क्या इससे शिक्षा में सुधार हो गया? मुख्यमंत्री को यह भी बताना चाहिए कि 55 जिलों में पीएम एक्सीलेंस कॉलेज खोलने की घोषणा से क्या उच्च शिक्षा के स्तर और गुणवत्ता में बदलाव हुआ? जमीनी हकीकत यह है कि पीएम एक्सीलेंस कॉलेज केवल कागजों में ही दौड़ रहे हैं, क्योंकि आज भी पुरानी समस्याओं के ऊपर नई योजना के नामकरण का कागज कोई भी आसानी से पढ़ और समझ सकता है। छात्रों और शिक्षकों की संख्या में असंतुलन, अव्यवस्थित पाठ्यक्रम और बुनियादी ढांचे की कमी शिक्षा व्यवस्था की प्रमुख समस्याएं हैं।

कर्ज-क्राइम की “करप्शन इंडस्ट्री”

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने दावा किया कि मोहन यादव सरकार तुरंत एक्शन लेकर काम कर रही है। सकारात्मक और सार्थक विपक्ष के रूप में हम जनता की तरफ से यह जानना चाहते हैं कि यह तुरंत एक्शन मप्र से क्राइम, करप्शन और कमीशन के कल्‍चर को कम क्यों नहीं कर पा रहा है? क्यों सबसे ज्यादा अपराध मध्य प्रदेश में तब हो रहा है, जब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ही प्रदेश के गृहमंत्री हैं? क्यों तबादला उद्योग के नाम पर सरकार ने देर रात तक चलने वाली “करप्शन इंडस्ट्री” खोल रखी है? क्यों कोई भी योजना अब बगैर कमिशन तय किए कागजों में दर्ज नहीं हो पाती है?

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और भाजपा सरकार का एक साल कुछ और ही कहानी बयां कर रहा है। जनता अब केवल वादों और दावों से संतुष्ट नहीं है। उसे वास्तविक परिणाम चाहिए। अलग-अलग क्षेत्र के विशेषज्ञ भी मुखरता से यह प्रश्न पूछ रहे हैं कि कर्ज में डूबे प्रदेश के संसाधनों का बेहतर उपयोग कैसे किया जाएगा? अंधेरनगरी के मुखिया ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में ‘मौन’ तो तोड़ा, लेकिन, न पुरानी डफली को छोड़ा, न कोई नया राग जोड़ा। संक्षेप में कहा जा सकता है कि धूल सरकारी चेहरे पर है और वे आईना साफ कर रहे हैं। कर्ज, क्राइम और करप्शन सरकार के मुखिया अपने कार्यकाल को बेमिसाल कह रहे हैं। (लेखक मध्‍य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्‍यक्ष हैं।)

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