प्रशांत कटियार
उत्तर प्रदेश की राजनीति इस समय जिस तूफ़ान से गुजर रही है, उसका केंद्र बिंदु बन चुका है कुर्मी समाज। यादवों के बाद ओबीसी में सबसे बड़ी आबादी रखने वाला यह समुदाय प्रदेश की राजनीति का असली गेम चेंजर है। जनसंख्या में इनकी हिस्सेदारी लगभग 9 फ़ीसदी है और पूर्वांचल, बुंदेलखंड और तराई बेल्ट की विधानसभा सीटों पर इनका सीधा प्रभाव है। ऐसे में इस समाज का नाराज़ होना किसी भी दल की सत्ता की नैया डुबो सकता है।फतेहपुर जिले के अजरौली गांव में 65 वर्षीय किसान केशपाल पटेल की निर्मम हत्या ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया। हमलावरों ने धारदार हथियार से किसान का जबड़ा चीर दिया, आंख बाहर निकाल दी और पूरा चेहरा क्षत-विक्षत कर दिया। यही नहीं, यूपी पुलिस के रिटायर्ड सिपाही और अन्य ग्रामीणों पर भी हमला हुआ। यह कोई सामान्य अपराध नहीं, बल्कि बर्बरता की पराकाष्ठा थी। लेकिन इस निर्मम हत्या से भी बड़ा सवाल प्रशासन का रवैया है।अखिल भारतीय कुर्मी क्षत्रिय महासभा जब पीड़ित परिवार से मिलने जा रही थी तो फतेहपुर में पुलिस ने भारी फोर्स लगाकर उन्हें रोक दिया। सीओ खागा ब्रजमोहन और कार्यकर्ताओं में झड़प हुई और केवल हाथ छू जाने पर एक कार्यकर्ता को गिरफ्तार कर लिया गया। प्रशासन का यह तानाशाही रवैया लोगों के गुस्से में तेल डालने जैसा साबित हुआ।इतना ही नहीं, लखीमपुर खीरी में भाजपा विधायक योगेश वर्मा को खुलेआम थप्पड़ मारा गया जिसका वीडियो भी वायरल हुआ करवाई क्या हुई किसी से छिपी नहीं और तो और शर्म की वजह से एक बार विधानसभा से भी गायब रहे थे विधायक जी मीडिया से रूबरू होने के दौरान उन्होंने बताया था कि उन्हें शर्म आती है विधानसभा जाते हुए कैसे अपने साथी विधायकों को मुंह दिखाएंगे। यह घटना भाजपा के लिए और भी खतरनाक संकेत हैक्योंकि अब यह समाज केवल चुपचाप नाराज़ नहीं, बल्कि खुलकर विरोध और आक्रोश व्यक्त करने के लिए तैयार है।विपक्ष इस मौके को भुनाने से पीछे नहीं हट रहा। सिराथू से सपा विधायक पल्लवी पटेल पुलिस को चकमा देकर 22 किलोमीटर मोटरसाइकिल से अजरौली पहुंचीं और पीड़ित परिवार का दर्द सुना। कुर्मी महासभा के प्रदेश अध्यक्ष पूर्व सांसद बालकुमार पटेल लगातार भाजपा सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं उन्होंने कहा कि आरोपी को बचाने की कोशिश की जा रही है और उसे थाने में वीआईपी ट्रीटमेंट दिया जा रहा है।भाजपा ने बीते चुनावों में अपना दल (एस) के जरिए कुर्मी समाज को साधने का प्रयास किया था। अनुप्रिया पटेल और आशीष पटेल को सत्ता में हिस्सेदारी भी दी, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि कुर्मी समाज तेजी से भाजपा से दूर हो रहा है।तथ्य यह है कि उत्तर प्रदेश की विधानसभा में कुर्मी विधायक संख्या के लिहाज से तीसरे नंबर पर हैं41 विधायक, जिनमें 27 भाजपा गठबंधन से और 13 सपा से हैं। वहीं, लोकसभा में भी 11 सांसद कुर्मी हैं 7 सपा से, 3 भाजपा से और 1 अपना दल (एस) से। ऐसे आंकड़े बताते हैं कि यह समाज किसी भी सरकार की रीढ़ है।
कुर्मी वोटर मिर्ज़ापुर, प्रतापगढ़, फतेहपुर, कौशांबी, प्रयागराज फूलपुर, अम्बेडकर नगर, जौनपुर, भदोही, बस्ती, वाराणसी, संतकबीरनगर, श्रावस्ती, गोंडा, बाराबंकी, सीतापुर, लखीमपुर खीरी, हरदोई, उन्नाव, कानपुर देहात, फर्रुखाबाद, जालौन, कानपुर नगर, बरेली, पीलीभीत जैसे जिलों की राजनीति का सीधा समीकरण तय करता है। यह पूरा क्षेत्र अब कुर्मी बेल्ट के रूप में पहचाना जाने लगा है।यानी साफ है अगर कुर्मी समाज भाजपा से पूरी तरह नाराज़ हो गया तो 2027 के विधानसभा चुनाव और 2029 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की राह बेहद कठिन हो जाएगी। यादव, मुसलमान और कुर्मी यदि एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ खड़े हो गए, तो अजेय किला समझी जाने वाली भाजपा की सत्ता उत्तर प्रदेश में धराशायी हो सकती है।अजरौली की हत्या, प्रशासन की तानाशाही, लखीमपुर खीरी की घटना और विपक्ष की सक्रियता ये सब घटनाएं भाजपा के लिए केवल चेतावनी नहीं, बल्कि खतरे की घंटी हैं। अब भी अगर भाजपा ने कुर्मी असंतोष को गंभीरता से नहीं लिया तो आने वाला चुनाव भाजपा के लिए सत्ता से बेदखली की शुरुआत साबित हो सकता है।
लेखक दैनिक यूथ इंडिया के स्टेट हेड हैं।