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Monday, October 27, 2025

कोषागारों में भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी, हरदोई-चित्रकूट घोटालों से नहीं ली गई सीख

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लखनऊ।

उत्तर प्रदेश के कोषागारों में एक के बाद एक सामने आ रहे घोटाले सरकार की वित्तीय व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं। हरदोई, लखनऊ और अब चित्रकूट ट्रेजरी में उजागर हुए करोड़ों के घपलों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वर्षों से चली आ रही अनियमितताओं से कोई सबक नहीं लिया गया है।

 

वर्ष 2009 से 2016 के बीच हरदोई कोषागार में 5 करोड़ 3 लाख 11 हजार 722 रुपये का घोटाला हुआ था। इस मामले में 90 फर्जी पेंशनरों के नाम से भुगतान किया गया और कोषागार के एक कर्मचारी ने स्वयं व अपनी पत्नी के खाते में 35 लाख रुपये से अधिक ट्रांसफर किए। तत्कालीन वित्त निदेशक आलोक अग्रवाल की जांच रिपोर्ट में यह पाया गया कि एक ही खाते में अलग-अलग नामों से भुगतान किया गया। मूल रिकॉर्ड — जैसे पीपीओ इंडेक्स पंजिका और कैलकुलेशन शीट — कोषागार में उपलब्ध ही नहीं मिले। जांच में शामिल दो वरिष्ठ कोषाधिकारियों को बर्खास्त किया गया, लेकिन अब तक किसी से वसूली नहीं हो पाई है।

 

चित्रकूट कोषागार में हाल ही में सामने आया करोड़ों का फर्जीवाड़ा भी हरदोई की ही तर्ज पर किया गया। फर्जी पेंशन पेमेंट ऑर्डर (PPO) तैयार कर ऑनलाइन एंट्री की गई और वर्षों तक भुगतान जारी रहा। यह सब तब संभव हुआ जब नियमों के विपरीत कई वरिष्ठ कोषाधिकारी अपने सुपर यूजर कोड अकाउंटेंटों को सौंप चुके थे।

 

जानकार बताते हैं कि पेंशन प्रक्रिया में एक कर्मचारी द्वारा डाटा फीड, दो के वेरिफिकेशन और एक के अप्रूवल के बाद ही भुगतान होता है। इसके बावजूद फर्जी भुगतान होना इस बात का संकेत है कि भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हैं और उच्च अधिकारियों की भी इसमें मिलीभगत है।

 

तत्कालीन वित्त निदेशक ने अपनी रिपोर्ट में हरदोई के डीएम को पर्यवेक्षणीय दायित्व न निभाने और पुलिस अधीक्षक को एफआईआर दर्ज करने में तीन साल की देरी के लिए जिम्मेदार ठहराया था। रिपोर्ट में 61 लोगों से वसूली की सिफारिश की गई थी, जो आज तक अमल में नहीं लाई गई।

 

विशेषज्ञों का कहना है कि कोषागारों को नेशनल पोर्टल से जोड़ना आवश्यक है। यदि पेंशनधारकों के लाइफ सर्टिफिकेट को बायोमीट्रिक सिस्टम से और जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र को राष्ट्रीय पोर्टल से जोड़ा जाए, तो ऐसे फर्जीवाड़ों पर काफी हद तक रोक लगाई जा सकती है।

 

वित्तीय मामलों के जानकारों ने यह भी सुझाव दिया है कि इन ट्रेजरी घोटालों की जांच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत कराई जाए, ताकि भ्रष्टाचार की जड़ तक पहुंचा जा सके और जिम्मेदार अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई हो सके।

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