लखनऊ: Lucknow में मंगलवार को बड़ा इमामबाड़ा (Bada Imambara) के प्रांगण में कर्बला (Karbala) के 72 शहीदों की याद में परंपरागत ताबूतों का जुलूस निकाला गया। जुलूस से पहले मजलिस का आयोजन हुआ, जिसमें मौलाना तकी रज़ा ने जनाबे सकीना की शहादत का जिक्र किया। जैसे ही उन्होंने घटना सुनाई, वहां मौजूद लोगों की आंखें नम हो गईं और पूरा माहौल ग़मगीन हो गया। प्रांगण में 72 ताबूत सजाए गए थे। श्रद्धालुओं ने उन्हें छूकर, चूमकर और फूल चढ़ाकर अपनी अकीदत पेश की। अगरबत्तियों की खुशबू और नम आंखों के साथ जियारत का सिलसिला चलता रहा। इसके बाद जुलूस शुरू हुआ, जिसमें हजारों की संख्या में अजादार शरीक हुए।
ताबूतों के साथ हजरत इमाम हुसैन की सवारी का प्रतीक जुलजनाह, हजरत अब्बास का अलम और छह माह के मासूम हजरत अली असगर के झूले की भी जियारत कराई गई। इरम जौनपुरी ने खास अंदाज में सभी 72 शहीदों का परिचय कराया, जिसे उपस्थित लोगों ने बड़े ध्यान से सुना। ताबूतों पर चादरें और फूल चढ़ाते हुए लोग बार-बार यही संदेश दोहरा रहे थे — कर्बला की कुर्बानी केवल धर्म के लिए नहीं, बल्कि इंसानियत की हिफाजत के लिए दी गई थी। शहर की फिज़ा में ग़म, श्रद्धा और अकीदत एक साथ घुली हुई दिखी — कर्बला की शहादत आज भी लोगों को सच, सब्र और इंसानियत का पैगाम देती है।
मौलाना आसिम रिजवी ने कहा- लखनऊ के बड़ा इमाम में यह परंपरागत 72 ताबूतों का जुलूस विगत 45 वर्षों से निकाला जा रहा है। ताबूतों के जुलूस का उद्देश्य है कि कर्बला के मैदान में 10 मोहर्रम को शहीद होने वाले 72 शहीदों की प्रति लोगों को जानकारी दी जाए। मौलाना ने कहा कि कर्बला में हजरत इमाम हुसैन की शहादत इंसानियत को बचाने के लिए थी। हजरत इमाम हुसैन कर्बला के मैदान से यह संदेश दिया कि कभी किसी गलत व्यक्ति का साथ नहीं देना चाहिए। हजरत इमाम हुसैन ने यह संदेश दिया कि जीवन में जब चुनौतियां आए तो हमें घबराना नहीं है बल्कि उसका मुकाबला करना है।