किसानों की ज़मीन और विकास के नाम पर लूट

0
137

आदरणीय अन्नदाता साथियों, विकास होना निश्चित रूप से अच्छी बात है। लेकिन यदि विकास के नाम पर किसानों और मूल निवासियों की ज़मीन लूटी जाए, तो यह अन्याय है और इसका मैं कभी पक्षधर नहीं हो सकता।
फर्रुखाबाद के आईटीआई, राजकीय पॉलिटेक्निक भोलेपुर और आवास विकास की योजनाओं पर नजऱ डालें—इन संस्थानों और कॉलोनियों के लिए आखिर किसकी ज़मीन गई? जिन परिवारों ने अपनी पैतृक भूमि खोई, उन्हें यहां संचालित योजनाओं का कितना लाभ मिला?
क्या उन्हें वाजिब मुआवजा मिला? और यदि मिला भी तो उस मुआवजे से उनका कितना विकास हो सका? यह सोचने का विषय है कि आज वे परिवार किस स्थिति में हैं। क्या अभी भी कई परिवार अदालतों के चक्कर काटने को मजबूर नहीं हैं?
आज स्थिति यह है कि सरकार आवास विकास और योजनाओं के नाम पर किसानों की ज़मीन सस्ते में अधिग्रहित करती है और फिर उसे ऊंचे दामों पर बेचकर लाभ कमाती है। सवाल यह है कि इस तथाकथित धंधे से मूल निवासियों को आखिर क्या फायदा हुआ?
अब एक बार फिर संकट गहरा रहा है।
धंसुआ, विजाधरपुर, पपियापुर, टिकुरियन नगला, उगायतपुर, नगला कलार, देवरामपुर, निनौआ, कीरतपुर, रम्पुरा, बुढऩामऊ, नगला पजावा, जगतनगर, याकूतगंज महरूपुर, कुटरा सहित कुल 61 गाँवों की ज़मीन पर गिद्ध दृष्टि डाली जा चुकी है।
फर्रुखाबाद महायोजना-2031 के तहत औद्योगिक क्षेत्र, आवास विकास और विकास प्राधिकरण की योजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही शुरू हो चुकी है।
ग्रीन बेल्ट के नाम पर आरक्षित भूमि न तो किसान बेच सकता है, न ही उस पर निर्माण कर सकता है।
और इसकी सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इस भूमि का कोई मुआवज़ा भी किसान को नहीं मिलेगा।
बाकी अधिग्रहित ज़मीन का कितना मुआवज़ा मिलेगा, यह भी किसानों को साफ तौर पर नहीं बताया जा रहा।
साफ है कि किसान की ज़मीन लूटने के इस तंत्र में सरकार, नेता और अफसर सभी मौन सहयोगी बने हुए हैं। क्योंकि जब कुछ लुटेगा, तभी तो कुछ बंटेगा।
लेकिन हमें हताश होने की ज़रूरत नहीं है। एक रहेंगे तो शेफ रहेंगे—यह विचार हमें मजबूती देता है। अगर हम सभी मूल निवासी, किसान और अन्नदाता एकजुट हो जाएं तो इस संकट का बेहतर मुकाबला और इलाज संभव है।
सोचिए, विचार कीजिए और इस संघर्ष में साथ दीजिए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here