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Sunday, September 14, 2025

ओबीसी की नई उम्मीद बनते केशव प्रसाद मौर्य: जुझारू नेतृत्व और धरातल से जुड़ा अंदाज बना रहा है पहचान

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कुर्मी, शाक्य और लोधी वर्ग के बीच बढ़ा डिप्टी सीएम का प्रभाव; भाजपा के कुछ OBC नेता जहां अपनी ही जातियों से दूर, वहीं केशव मौर्य जमीनी राजनीति के पर्याय

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य एक बार फिर ओबीसी राजनीति के केंद्र में हैं। उनका जुझारूपन, ज़मीनी जुड़ाव और स्पष्ट शैली ने उन्हें पिछड़े वर्ग—विशेषकर कुर्मी, शाक्य और लोधी समुदाय—की नई उम्मीद के रूप में स्थापित किया है। जहाँ कई OBC नेता सत्ता में रहते हुए अपने ही वर्ग से दूरी बना लेते हैं, वहीं केशव मौर्य अपनी सजातीय जनभावनाओं से सीधे संवाद बनाए रखते हैं।

केशव मौर्य का राजनीतिक सफर किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं। बहुत ही सामान्य आर्थिक स्थिति में पले-बढ़े केशव मौर्य ने हिंदू संगठनात्मक आंदोलन से राजनीति की शुरुआत की और धीरे-धीरे जमीनी कार्यकर्ता से उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बने। उनका संघर्ष उन्हें OBC समाज की सबसे बड़ी आवाज़ों में से एक बनाता है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उत्तर प्रदेश में ओबीसी राजनीति निर्णायक होती जा रही है।

भाजपा के कई अन्य ओबीसी नेता, विशेषकर कुर्मी समाज से आने वाले, अपनी ही जाति से संवाद में असहज दिखते हैं।
वहीं, केशव मौर्य समाज के हर वर्ग से—खासकर पिछड़ों से—खुलकर संवाद करते हैं, उनकी समस्याओं को उठाते हैं और उन्हें सत्ता के मंच तक पहुँचाते हैं।

कुर्मी, शाक्य और लोधी समाज के बीच उनके लिए एक विश्वास का भाव बना है, जो 2027 की तैयारियों में भाजपा के लिए महत्वपूर्ण आधार बन सकता है।

केशव मौर्य की पहचान सिर्फ उनके जातीय समीकरण तक सीमित नहीं।

उनकी कार्यशैली उन्हें अन्य नेताओं से अलग बनाती है: सीधा संवाद, जनता से लगातार संपर्क,मीडिया के माध्यम से स्पष्ट संदेश और ट्रैक रिकॉर्ड के आधार पर जवाबदेही।

विकास कार्यों में हो या विपक्ष को आक्रामक जवाब देने में—केशव मौर्य हमेशा फ्रंटफुट पर दिखते हैं।
वे केवल पार्टी के प्रवक्ता नहीं, बल्कि नीति के क्रियान्वयन में सक्रिय भागीदार हैं। युवाओं के बीच केशव मौर्य की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है।

कुर्मी समाज के शिक्षक, किसान और युवा वर्ग में उनका नाम सम्मान से लिया जाता है। शाक्य और लोधी वर्ग, जिनके बीच अब तक भाजपा को सतत संपर्क बनाए रखने में दिक्कत होती थी, वहां अब केशव मौर्य की वजह से सकारात्मक माहौल बन रहा है।

जहां अन्य ओबीसी नेता सिर्फ पहचान के सहारे राजनीतिक टिकाव बनाए हुए हैं, वहीं केशव मौर्य अपनी मेहनत, निरंतर जनसंपर्क और जमीनी मुद्दों पर स्पष्ट वक्तव्य के कारण जनता के बीच लोकप्रिय बने हुए हैं।वो “नाम से नहीं, काम से ओबीसी नेतृत्व” की परिभाषा गढ़ते हैं।

2027 के चुनावी परिदृश्य में यदि भाजपा को पिछड़े वर्ग में मजबूती से अपनी पकड़ बनानी है, तो केशव प्रसाद मौर्य को केंद्रीय भूमिका देनी ही होगी।वे न केवल एक कुशल प्रशासक हैं, बल्कि एक प्रेरणास्पद जननायक भी बनते जा रहे हैं।
उनकी संघर्ष की पृष्ठभूमि, साफ-सुथरी छवि और धरातल से जुड़ी नेतृत्व शैली उन्हें आने वाले समय का ओबीसी चेहरा नंबर-1 बना सकती है।

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