काशी से उठी नई गूँज : भारत–मॉरीशस संबंधों में ऊर्जा और आत्मीयता

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वाराणसी की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक धरती पर गुरुवार का दिन केवल राजनीतिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और कूटनीतिक इतिहास की दृष्टि से भी विशेष रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम की मुलाकात ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत और मॉरीशस का रिश्ता केवल दो देशों का रिश्ता नहीं है, बल्कि यह रक्त, संस्कृति और सभ्यता के धागों में पिरोया हुआ आत्मीय बंधन है।
होटल ताज में हुई इस मुलाकात की शुरुआत जिस आत्मीय आलिंगन से हुई, उसने यह संदेश दे दिया कि रिश्तों की असली मजबूती औपचारिक दस्तावेज़ों में नहीं, बल्कि दिलों में होती है। विकास साझेदारी, क्षमता निर्माण और आपसी सहयोग जैसे मुद्दे निश्चित ही महत्वपूर्ण हैं, किंतु उससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह भाव है कि भारत और मॉरीशस साथ मिलकर भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
यह संयोग नहीं है कि यह भेंट काशी में हुई। काशी, जो भारत की सनातन संस्कृति की धुरी है, जिसने सहस्त्राब्दियों से ज्ञान, अध्यात्म और संस्कृति का संदेश दिया है। यहाँ से यदि कोई कूटनीतिक संदेश जाता है, तो वह केवल शब्द नहीं होता, बल्कि सभ्यता की गहराइयों से निकली गूँज होती है।
काशी की सड़कों पर हुआ प्रधानमंत्री का स्वागत, पुष्पवर्षा, ‘हर हर महादेव’ के उद्घोष और जनता की भागीदारी — यह सब इस मुलाकात को केवल राजनीतिक घटना नहीं, बल्कि सांस्कृतिक उत्सव बना देते हैं।
मॉरीशस के साथ भारत का रिश्ता प्रवासी भारतीयों के इतिहास से गहराई से जुड़ा है। जब भारतीय मज़दूर और साधक समुद्र पार कर मॉरीशस की धरती पर पहुँचे थे, तब उन्होंने केवल श्रम नहीं दिया, बल्कि संस्कृति, भाषा और जीवन मूल्यों के बीज भी बोए। वही बीज आज फल–फूलकर दोनों देशों के रिश्तों को अद्वितीय बनाते हैं। यही कारण है कि मॉरीशस का हर भारतवंशी, हर नागरिक अपने भीतर भारत की परछाई महसूस करता है।
आज जब दुनिया बहुध्रुवीयता की ओर बढ़ रही है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र रणनीतिक महत्व का केंद्र बन चुका है, भारत और मॉरीशस का सहयोग केवल द्विपक्षीय स्तर तक सीमित नहीं रह जाता। यह सहयोग वैश्विक शांति, समुद्री सुरक्षा और विकास के नए आयाम गढ़ सकता है। भारत की “सागर नीति” (Security and Growth for All in the Region) और मॉरीशस की भौगोलिक स्थिति इस साझेदारी को और अधिक महत्वपूर्ण बनाती है।
इस मुलाकात का एक अनूठा पक्ष यह भी रहा कि वाराणसी की जनता ने इसे पूरी आत्मीयता के साथ अपनाया। सड़कों पर उतरे नागरिक, सांस्कृतिक झलकियाँ और गूंजते नारों ने यह स्पष्ट कर दिया कि जनता इन रिश्तों को केवल सरकारी दायरे तक सीमित नहीं मानती। उनके लिए यह अपनों से मुलाकात है, भाईचारे का उत्सव है।
वाराणसी की इस ऐतिहासिक भेंट से जो संदेश निकला है, वह यह है कि भारत और मॉरीशस मिलकर न केवल विकास की नई राहें गढ़ेंगे, बल्कि अपनी साझा विरासत और सांस्कृतिक आत्मीयता को भी आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाएँगे।
यह संबंध आने वाले वर्षों में शिक्षा, तकनीक, व्यापार, समुद्री सहयोग और सांस्कृतिक आदान–प्रदान के क्षेत्र में नए अवसर खोलेगा। काशी की इस गंगा-जमुनी फिज़ा से उठी गूँज हमें यह विश्वास दिलाती है कि भारत और मॉरीशस का रिश्ता किसी कूटनीतिक अनुबंध का नहीं, बल्कि आत्मीयता, संस्कृति और साझा भविष्य का रिश्ता है। यही गूँज आने वाले वर्षों में दोनों देशों को और निकट लाएगी।

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