28.4 C
Lucknow
Thursday, July 17, 2025

इंसाफ या नाइंसाफी-“जो लड़ा माफिया से, वही हारा सिस्टम से!”

Must read

– इंस्पेक्टर अमोद कुमार सिंह: जिन्हें जांबाज़ी की मिली सज़ा

फर्रुखाबाद: जिसने जान की परवाह किए बिना माफिया (mafia) से टक्कर ली, जिसने कानून की नाक बचाने के लिए रात-दिन एक किया, जिसने अपने कर्तव्य को कभी बोझ नहीं, बल्कि सेवा समझा –आज वही इंस्पेक्टर अमोद कुमार सिंह (Inspector Amod Kumar Singh) खुद सिस्टम (system) की साजिश का शिकार बन बैठे हैं।जिनकी दम पर आईपीएस अशोक कुमार मीणा, और विकास कुमार ने अभियान चला गुंडों का सफाया किया आज वही कोतवाल सेल मे भेजे जा रहे, अपराधी मिष्ठान वितरण कर रहे।

56 साल की उम्र में जब ज़्यादातर अधिकारी प्रमोशन का इंतज़ार करते हैं या शांतिपूर्ण रिटायरमेंट की योजना बनाते हैं, उस समय आमोद कुमार सिंह जनपद के सबसे खतरनाक माफिया – अनुपम दुबे और उसके दबंग नेटवर्क से भिड़ते रहे। उनके ही नेतृत्व में वह कार्रवाई हुई जिसने माफिया की कमर तोड़ दी। खुद सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में राज्य सरकार और डीजीपी को फटकार लगाई थी, लेकिन अमोद सिंह ने ज़िम्मेदारी उठाई और सिस्टम का सम्मान बचाया।

माफिया को सलाखों के पीछे, खुद को सेल में! कुछ ही हफ्ते पहले जब माफिया अनुपम दुबे के भाई व पूर्व ब्लॉक प्रमुख अमित दुबे उर्फ बब्बन को गिरफ्तार किया गया, तो अमोद सिंह ही वो नाम थे, जिनकी मेहनत और हिम्मत के कारण पुलिस को यह सफलता मिली।

लेकिन इसी कार्रवाई के एक सप्ताह बाद, कादरी गेट थाना प्रभारी के पद से हटाकर उन्हें ‘सेल’ में डाल दिया गया – ऐसा लगा जैसे बहादुरी की नहीं, गुनाह की सजा मिली हो। अब वही माफिया तंत्र जो पहले छुपता फिरता था, आज मिठाइयाँ बाँटता घूम रहा है। अपराधियों के हौसले बुलंद हैं और आम आदमी सदमे में।

क्या यही योगी राज का ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ है?

अमोद सिंह के साथ ही उनके साथी इंस्पेक्टर अमित गंगवार भी उसी माफिया जाल के खिलाफ खड़े हुए थे। उन्होंने भी संजीव परिया, अनुपम दुबे और उनके गुर्गों के खिलाफ कई सफल ऑपरेशन चलाए, लेकिन आज वह भी अधिकारियों के गुस्से का शिकार हैं।

इन दोनों अफसरों की हालत देखकर बाकी पुलिसकर्मियों में निराशा है। एक जवान ने यहां तक कहा –

 

“अगर माफिया से लड़ने के बाद यही हाल होना है, तो बेहतर है चुपचाप नौकरी करो।”

“कर्तव्यनिष्ठा अब सिर्फ ट्रांसफर की गारंटी बनकर रह गई है।”जनता ने बढ़ाया समर्थन, सवाल पूछे जा रहे हैं फर्रुखाबाद की जनता खुलकर इन बहादुर अफसरों के समर्थन में आ गई है।
लोगों का सवाल है –

 

“क्या माफिया पर कार्रवाई करना अब अपराध बन गया है?”
“क्या पुलिस का ईमानदार होना उसके लिए सजा बन गया है?”
“क्या यह वही उत्तर प्रदेश है, जहां ‘माफिया मुक्त प्रदेश’ का नारा दिया गया था?”

जिन्होंने रक्षा की, उन्हीं की गरिमा छीनी गई सिर्फ एक अफसर नहीं, एक सोच को सजा मिली है।कर्तव्यपरायणता को पराजित किया गया है।ईमानदारी को अपमानित किया गया है। और जनविश्वास को चोट पहुँची है। अब सवाल जनता का है,क्या इंस्पेक्टर अमोद सिंह और अमित गंगवार जैसे जांबाज़ अफसरों को उनका सम्मान लौटाया जाएगा?या फिर अपराधियों की मुस्कान और सिस्टम की चुप्पी ही इस दौर की पहचान बन जाएगी?

Must read

More articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest article