मनुष्य के मस्तिष्क में कई प्रकार की प्रवृत्तियां जन्म लेकर पूरे जीवन काल तक सक्रिय रहती हैं। ऐसा माना गया है कि व्यक्ति के शांत मन में सकारात्मक सोच या कल्पना की ग्रंथि अधिक तीव्र होती है। किसी विषय के बारे में जानने या समझने की मानसिक स्थिति को हम सामान्य रूप में जिज्ञासा मानते हैं। दुनिया में जिस भी विषय पर चिंतन, सिद्धांत, आविष्कार आदि निरूपित किए गए, वे सभी जिज्ञासा की कोख की ही देन कही जा सकती है। व्यक्ति की किसी संदर्भ को गहराई से जानने की आतुरता जिज्ञासा में परिणत हो जाती है। संसार के लेखक, दार्शनिक, कवि, वैज्ञानिकों के मस्तिष्क में जब जिज्ञासा की तरंगों ने अपनी पहचान बनाई होगी, तभी समाज को विभिन्न कोटि के लेख, साहित्य, कविता, दर्शनशास्त्र, वैज्ञानिक आविष्कार आदि ने मूर्त रूप लिया होगा। एक प्रकार से कल्पना के प्रस्थान बिंदु को जिज्ञासा का उदगम स्थल कहा जा सकता है।
जिज्ञासु प्रवृत्ति के व्यक्ति सदैव अपनी सक्रियता बोध के सहारे कुछ न कुछ जानने-सीखने की विधा में क्रियाशील रहते हैं। प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक प्लेटो के अध्ययन कक्ष में हमेशा विद्वानों का जमघट लगा रहता था जो प्लेटो से सदैव कुछ नया विचार ग्रहण करने के लिए तत्पर रहते थे। यह विचित्र है कि प्लेटो कभी अपने को ज्ञानी नहीं समझते थे और वे खुद सदा कुछ नया सोचने-विचारने में व्यस्त रहते थे। कभी-कभी तो वे छोटे बच्चों और युवकों से भी कुछ सीखने के लिए उनमें घुल-मिल जाते थे । प्लेटो की इस आदत पर उनके एक परम मित्र ने उनसे प्रश्न किया कि आप इतने विख्यात दार्शनिक हैं, विश्व के प्रतिष्ठित तर्कशास्त्रियों में आपकी गणना होती है, फिर भी आप किसी भी बड़े या छोटे से गुण ग्रहण करने और कुछ नया सीखने के लिए हमेशा उत्सुक क्यों रहते हैं। आप तो दूसरों का स्वयं मार्गदर्शन करते हैं, फिर आपको सीखने या जानने की भला क्या जरूरत है। कहीं आप लोगों को खुश करने के लिए तो उनसे सीखने का दिखावा नहीं करते। अपने मित्र के भोलेपन पर प्लेटो हंसे फिर उन्होंने कहा- मेरे मित्र, प्रत्येक व्यक्ति के पास कुछ न कुछ ऐसे उत्तम गुण हैं जो अन्य के पास नहीं होता। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति में दूसरे से सीखने की जिज्ञासा होनी चाहिए। जब तक व्यक्ति दूसरों से सीखने-समझने में झिझक या संकोच करेगा तब तक वह बहुत से अच्छे ज्ञान से वंचित ही रहेगा।
विचारणीय है कि जिज्ञासा की उत्पति का स्रोत क्या है। कई चिंतकों का मानना है कि यह प्रवृत्ति ज्ञानकोश से उत्पन्न होती है । जैसा कि विदित हैं कि मनुष्य के लिए ज्ञान उसकी रीढ़ की हड्डी की तरह कार्य करता है, क्योंकि इसे मानव शरीर का तृतीय नेत्र भी कहा गया है। ज्ञान व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश की ओर जब उन्मुख करता है तो उसमें कल्पना और जिज्ञासा जैसी प्रवृत्ति मूल रूप से प्रभावित करती है। यों कहें कि हमारी उत्कट जिज्ञासा ही ज्ञान का दर्पण तैयार करती है । जिज्ञासा सीखने की सतत प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण जन्मजात प्रवृत्तियों में से यह एक मुख्य है, जिसमें उम्र सीमा बाधक नहीं बनती है। मनोवैज्ञानिकों का कथन है कि जिज्ञासा व्यक्ति के आंतरिक स्वभाव के मनोभावों का वह समूह या उत्सुकता की वह अवस्था है, जिसमें मनुष्य किसी वस्तु या घटना को, जो उसके लिए अप्रत्यक्ष हो, जानने के लिए बेसब्र रहता है।
किसी छविगृह में कोई प्रेरक चलचित्र के प्रदर्शन के बाद उसकी सकारात्मक चर्चा समाज में जब होने लगती है तो सामान्य दर्शक उस चलचित्र के भाव को जानने को उत्सुक हो जाते हैं और उनके कदम चलचित्र गृह की ओर बढऩे लगते हैं । व्यक्ति का अपने निजी विचारों के अनुसार जिज्ञासु होना भी एक गुण है जो अनवरत कल्पनाओं के सृजन डूबा रहता है। कभी-कभी वह ऐसी स्थिति में मग्न हो जाता है कि चिंतनशीलता के चैतन्य में भाव-विभोर हो जाता है। वर्तमान समय में जो प्रतिबद्ध जिज्ञासु हैं, वही भविष्य में किसी सिद्धांत का प्रतिपादन कर सकेंगे या वैज्ञानिक की श्रेणी धारण कर सकते हैं। ऐसा भी देखा गया है कि समाज में अधिकांश व्यक्ति जो जिज्ञासा से मुक्त हैं, वे अपनी दैनंदिनी में एकदम शांत और सरल हैं। ऐसे कई लोग यथास्थितिवाद के राही होते हैं। जो न कुछ सीख सकते हैं और न किसी को कुछ सिखा सकते हैं। शिक्षण संस्थाओं में यह आमतौर पर देखा गया है कि वर्ग में पढ़ा रहे शिक्षकगण से कुछ ही विद्यार्थी प्रश्न पूछते हैं जो उनकी जिज्ञासा भाव का प्रमाण है, जबकि अधिकतर विद्यार्थी शांत रहते हैं । सहज रूप में समझा जा सकता है कि जब शिक्षार्थी अपने शिक्षक से कोई प्रश्न नहीं पूछेंगे तो आखिर उनके पाठयक्रम के अध्याय को सही तरीके से समझने और अच्छी परीक्षा देने का सामर्थ्य कहां से आएगा। हालांकि इस स्थिति के लिए कई बार शिक्षक भी जिम्मेदार होते हैं
जिज्ञासा से ज्ञान और ज्ञान से सामर्थ्यवान होकर व्यक्ति अपनी जीवन यात्रा को सफल कर पाता है। मनुष्य के भीतर की जिज्ञासा ही उसे नूतन पथ पर चलने की प्रेरणा प्रदान करती है । और उसके मन के अंदर कुछ नया करने का जोश एवं जज्बा नहीं होगा तो उसकी जिंदगी एक सामान्य दिनचर्या की परिधि का वाहक होगी।
वर्तमान में डिजिटल इंडिया के संस्करण ने सीखने और जानने का असंख्य ज्ञान मंच उपलब्ध कराया है। आजकल मोबाइल फोन, लैपटाप, टीवी आदि अनेक साधन हैं, जिसके माध्यम से नई-नई चीजें व्यक्ति सीख रहा है, जबकि समाज का एक वर्ग इसके दुरुपयोग में भी सलंग्न है। समय की पुकार है कि जिस ज्ञान पुंज की कडिय़ों ने जगत में जिज्ञासाओं से फलित बौद्धिक क्षमताओं ने समाज को अनगिनत प्रेरक दिशा प्रदान की है, हम सब भी जिज्ञासा की जीवंतता के अनुगामी बने रहें ।
(सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब)